-वीना नागपाल
पाकिस्तान की चर्चित मॉडल कंदील बलोच की उसके भाई ने हत्या कर दी। इसे आॅनर किलिंग कहा गया और इसकी तुलना भारत की आॅनर किलिंग से की गई। बलोच के अब्बाजी का एक स्टेटमेंट प्रकाशित हुआ है जो जोर-जोर से रोते-रोते हुए उन्होंने पत्रकारों को दिया है। उस वक्तव्य में वह सिसकते कह रहे हैं- वह मेरी बेटी नहीं, बेटा थी अर्थात कमाऊ पूत थी। वह सारे परिवार को पालती थी। उसके भाई भी उससे जब-तब पैसे मांगा करते थे। वह उनको भी बहुत पैसे देती थी। वह सुबकते हुए बोले - ‘‘अब, हमें कौन खिलाएगा? वह तो बहुत अच्छी थी।’’ समझ नहीं आया कि जिस बहन की कमाई पर भाई ऐश कर रहे थे और उससे पैसे मांगते रहते थे और उन्हें उड़ाते थे उन्हें अचानक ‘आॅनर किलिंग की बात कहां से सूझ गई? और उन्हें ऐसा क्यों लगने लगा कि बहन की वजह से परिवार के सम्मान को बट्टा लग रहा है और अब उसे मार डालना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने भाई को बार-बार पैसे मांगने के लिए मना किया हो, कुछ खरी-खोटी सुनाई हों और वहीं भाई जान बिफर गए हों और इस फैसले पर पहुंच गए हों कि अब तो खानदान की इज्जत के कारण बहन को मार डालना चाहिए। खैर! भारत के पत्रकारों ने कंदील बलोच के नाम पर बहुत उत्साह जागा और उन्होंने तुरंत उसकी हत्या की तुलना भारत में की जाने वाली आॅनर किलिंग से कर डाली। इस उत्साह में वह यह भूल गए कि भारत में तो कंदील बलोच जैसी कई मौजूद हैं और वह तो जमकर खुले वक्तव्य देती हैं और दनदनाती हैं। राखी सांवत, पूनम पांडेय के वक्तव्य और आजकल चर्चित सन्नी लिओनी क्या-क्या नहीं करतीं। पूनम पांडेय के वक्तव्य क्या कहीं से भी कंदील बलोच से कम हैं राखी सांवत की बेबाकी क्या हम भूल सकते हैं? इनकी तो किसी ने आॅनर किलिंग नहीं की। आज भी यह पूरी स्वछंदता से बोलती हैं और दिखती भी हैं। यहां तो उन्हें कोई कुछ नहीं कहता।
दरअसल कंदील बलोच की हत्या को न तो भारत की और न ही पाकिस्तान की आॅनर किलिंग से जोड़कर देखा जाना चाहिए। आॅनर किलिंग के नाम पर तो दोनों ही देशों के समाजों में गरीब, मध्यम वर्गीय और उन मासूम लड़कियों व युवतियों की हत्या कर दी जाती है, जो केवल थोड़ी भोली कोशिश करके अपने जीवन को लेकर स्वनिर्णय ले लेती हैं। वह न तो बेबाकी से वक्तव्य देती हैं और न ही समाज में किसी प्रकार का खुलापन तथा स्वछंता दिखाती हैं।
उनका एक मासूम सा भोला-भाला निर्णय होता है कि वह अपना जीवन अपनी मर्जी से जीने के लिए एक ऐसा कदम उठा लें, जो उन्हें आनंद व सुख दे सकें। वह अपने जीवनसाथी के साथ अपनी मर्जी व अपने चुनाव के कारण रह पाएं। उसमें किसी अन्य का हस्तक्षेप न हो। उनके इस निर्णय को स्वीकारा जाए और इसे लेकर कोई इतना बड़ा अपराध न मान लिया जाए कि उनकी हत्या तक कर दी जाएं। वह तो अपने परिवार का सम्मान छीन नहीं रही हैं बल्कि वह उनका सहयोग व साथ चाह कर उनकी सहमति पाना चाहती हैं। पर परिवार तो केवल उस पर यही थोपना चाहता है कि वह केवल उसके निर्णय के अनुसार विवाह करे नहीं तो वह आॅनर किलिंग के लिए तैयार रहे। कंदील बलोच की हत्या का पाकिस्ताान की साधारण लड़कियों की आॅनर किलिंग से कुछ लेना-देना नहीं है और न ही इसकी भारत से तुलना की जा सकती है क्योंकि यह समाज जिनको छूट देता है उनको आॅनर किलिंग से मुक्त रखता है। यहां आॅनर किलिंग बहुत सापेक्ष है।
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