-डॉ. ब्रह्मदीप अलूने
विश्लेषक
रामजन्मभूमि, बाबरी मस्जिद विवाद की अदालती लड़ाई के प्रमुख पक्षकार हाशिम अंसारी नहीं रहे। वे भारत ही नहीं विदेशों में भी चर्चित रहे हैं, जब वे हज के लिए मक्का की यात्रा पर गए और धार्मिक कट्टरपंथियों ने सांप्रदायिकता का जहर घोलने के लिए उन्हें तकरीर के लिए बुलाया तो हाशिम अंसारी ने कहा कि मुसलमानों को भारत में जितनी आजादी है उतनी और किसी मुस्लिम मुल्क में भी नहीं है। जाहिर है उन्होंने धार्मिक आकाओं और कट्टरपंथियों के उस मुगालते को दूर कर दिया, जिसके जरिए वे भारत को सांप्रदायिकता की आग में झोंकना चाहते थे। आज भारत में यह विवाद सबसे चर्चित है और राजनीतिक उथल-पुथल भी मचा देता है लेकिन हाशिम अंसारी के लिए यह विवाद दो पक्षों के बीच था।
वे कहते थे- मैं सन् 1949 से मुकदमे की पैरवी कर रहा हूं लेकिन आज तक किसी हिंदू ने हमको एक लफ्ज गलत नहीं कहा, हमारा उनसे भाईचारा है, वो हमको दावत देते हैं, मैं उनके यहां सपरिवार दावत खाने जाता हूं। हाशिम अंसारी ने इस विवाद को अदालत में प्रभावी तरीके से रखा अवश्य लेकिन उन्हें साथ ही साथ सदैव यह अफसोस होता था कि इस विवाद ने इस देश की राजनीति के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और गंगा-जमुनी तहजीब को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया। इस विवाद से जुड़े हाशिम का चरित्र इस देश की धर्म निरपेक्षता की मिशाल है और उन्होंने यह बताया कि किसी भी धर्म से बढ़कर राष्ट्रधर्म होता है।
पिछले कुछ दशकों से भारत की राजनीति में सांप्रदायिकता का जहर घुल चुका है। असहिष्णुता की जमीन तैयार कर राजनीति की रोटियां सेंकने वाले तथाकथित राजनेता इस शख्स की सहिष्णुता से इतने हैरान थे कि वे हाशिम अंसारी को इस विवाद से दूर कर देना चाहते थे। राम जन्म भूमि- बाबरी विवाद को इस देश में आतंक का सबसे बड़ा कारण बताने वाले राजनेताओं और कट्टरपंथियों की आलोचना करने में भी अंसारी को कोई गुरेज नहीं था। एक बार उन्होंने एक समाचार पत्र को इंटरव्यू देते हुए देश की सभी राजनैतिक पार्टियों के मुस्लिम नेताओं की आलोचना भी की। एक धार्मिक स्थल के विवाद से देश की एकता एवं अखंडता बाधित होना सदैव उन्हें सालता रहा। इस विवाद के केंद्र में रहने के बावजूद राजनैतिक दलों और कट्टरपंथियों से उनकी दूरिया बनी रही। उन्होंने कानूनी लड़ाई में भी इसका पालन किया। हिंदू परिवारों के चाचा मुकदमे की सुनवाई के समय भी हिंदुओं के साथ ही होते थे। उन्होंने इसे अस्मिता या धार्मिक पागलपन से जोड़ने की कभी हिमायत नहीं की। विवादित स्थल पर आंतकवादी हमले की भी उन्होंने आलोचना की और सदैव इसे दो धर्मों के विवाद से दूर रखने का प्रयास किया। जाहिर है इस देश में आतंकवाद पनपने और बढ़ने का एक प्रमुख कारण रामजन्मभूमि विवाद को बताने वाले तथाकथित धर्मगुरु, बुद्धिजीवी और राजनेता इस शख्स को अवरोध समझते थे और इसीलिए हाशिम अंसारी ने अपनी निजी सुरक्षा की मांग करते हुए यह कहा था कि मुझे अयोध्या नहीं बाहर के लोगों से खतरा है, जो माहौल बिगाड़ने के लिए कुछ भी कर सकते है। वे कहते थे कि कुछ लोग खुद-ब-खुद बाबरी मस्जिद के मुद्दई बने बैठे हैं और उनकी आमदनी और राजनीति इसी के भरोसे चलती है।
धार्मिक विवाद को लेकर दुनिया भर में चर्चित और सांप्रदायिकता को लेकर कुख्यात हो चुके इस मुकदमे के पक्षकार हाशिम अंसारी, दूसरे पक्ष के निर्मोही अखाड़ा के रामकेवलदास, और दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस में अंत तक गहरी दोस्ती रही। एक-दूसरे पर भरोसा इतना कि मुकदमे की पैरवी के लिए हाशिम और परमहंस एक ही रिक्शे या कार में बैठकर अदालत जाते थे।
1992 के दंगों में जब पूरा देश जल रहा था और अयोध्या में भी हालात खराब थे, अयोध्या में सांप्रदायिक माहौल खराब करने के लिए हाशिम के घर पर दंगाइयों ने धावा बोलकर उनके घर को जला दिया, तो अयोध्या के हिंदुओं ने ही उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षित बाहर निकाला और अपने यहां शरण दी। यह एक संयोग था कि 1949 में जब रामजन्मभूमि, बाबरी मस्जिद विवाद की शुरुआत हुई थी तो वहां पर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए हाशिम अंसारी को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद वे इस विवाद के प्रमुख पक्षकार हो गए, लेकिन तमाम घटनाओं के बावजूद उनके रहन-सहन में कोई फर्क नहीं आया, यहां तक कि उनका बेटा मो. इकबाल अयोध्या आने वाले तीर्थयात्रियों को अपनी टैक्सी से अयोध्या के मंदिरों के दर्शन कराता रहा है।
एक धार्मिक स्थल के स्वामित्व को लेकर लड़े जा रहे इस मुकदमे के कई प्रमुख पड़ाव रहे हैं और इसने राजनीतिक उथल-पुथल मचाई है, लेकिन हाशिम अंसारी ने जिस प्रकार इस मुकदमे को लड़ा एवं उन्होंने नेताओं से लगातार दूरी बनाए रखी। अयोध्या में हिंदू और मुसलमानों का एक-दूसरे पर इतना भरोसा है कि अदालत में जब इस विवाद की सुनवाई चल रही थी, तो मुस्लिम पक्ष ने अपने समर्थन में 12 हिंदुओं को भी गवाह के तौर पर पेश किया था। हाशिम अंसारी अदालत के साथ ही दूसरे पक्षों से बातचीत कर इस समस्या का समाधान करना चाहते थे। उन्होंने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास से भी बात की और वे इस बात से बहुत चिंतित थे कि यह मुकदमा यदि सर्वोच्च न्यायालय में चलेगा तो राजनीति एक बार फिर जोर पकड़ेगी, जो देश के लिए अच्छा नहीं होगा। हालांकि वह मरने से पहले इस विवाद का समाधान चाहते थे लेकिन राजनीति से बुरी तरह से प्रभावित इस मुद्दे का हल एक दु:स्वप्न ही बनकर रह गया है। पिछले कुछ दशकों में इस विवाद को लेकर कई राजनीतिक पार्टियों के नेता अपनी बद्जुबानी से देश का सांप्रदायिक माहौल खराब करने से कभी गुरेज नहीं करते, हाशिम अंसारी स्पष्ट कहा करते थे, हर हालत में हम अमन चाहते हैं, मस्जिद तो बाद की बात है उन्हें अपने मुल्क के हिंदुओं पर इतना भरोसा था कि वे कहते थे, अगर हम मुकदमा जीत गए तो भी मस्जिद निर्माण तब तक शुरू नहीं करेंगे जब तक कि हिंदू बहुसंख्यक हमारे साथ नहीं आ जाते।
धार्मिक कट्टरपंथ के पागलपन से पूरी दुनिया हैरान है। कट्टरपंथियों और मौलवियों के जेहाद और फतवों से मानवता शर्मसार हो रही है। ऐसे समय में हाशिम का चला जाना राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। जो लोग धर्मस्थलों को अपने अस्तित्व से जोड़कर एक-दूसरे की जान के प्यासे हो जाते हैं, उन्हें अंसारी से सीखना चाहिए कि कोई भी धर्म राष्ट्र और मानवता से बढ़कर नहीं हो सकता। इस देश की पहचान साझा संस्कृति है और उसे हमें सहेज कर रखना चाहिए।