-रवीश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार और समीक्षक
देर से ही सही कई बार कोई काम ठीक भी हो जाता है। पिछले दिनों दिल्ली में जब प्रधानमंत्री ने अंतरराज्यीय परिषद की बैठक बुलाई, तो संख्या के हिसाब से तो ये ग्यारहवीं बैठक थी, मगर हुई दस साल बाद। पिछली बार केंद्र और राज्यों के मुख्यमंत्री दिसंबर, 2006 में मिले थे। इससे आप समझ सकते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों ही अंतरराज्यीय परिषद को लेकर कितने गंभीर हैं, जबकि बैठक में जिस तरह से खुलकर बातें हुईं, उससे लगता है कि केंद्र और राज्यों के संबंधों को मजबूत करने के लिए कितना जरूरी और गंभीर मंच है।
भारत के संविधान के आर्टिकल 263 में लिखा है कि इंटर स्टेट काउंसिल का गठन हो। ये कोई स्थायी संस्था नहीं है। जब भी राष्ट्रपति को लगे कि यह जनता के लिए जरूरी होगा तो इसका गठन कर सकते हैं। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री सदस्य। केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल भी इसके सदस्य होते हैं। प्रधानमंत्री से मनोनीत कैबिनेट रैंक के छह मंत्री भी इसके सदस्य होते हैं। परिषद राज्यों से संबंधित किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर सकती है।
बैठक के दौरान केंद्र के सामने राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जो बातें कही हैं उससे अंदाजा लगता है कि राज्य और केंद्र के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। सहयोगी संघवाद कहिए या टीम इंडिया कहिए, इन नारों से अलग हकीकत कुछ और है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की बातों में जमीन-आसमान का अंतर बता रहा था कि कई राज्यों का केंद्र के प्रति राजनीतिक अविश्वास कितना गहरा है।
कुछ के असंतोष का आधार आर्थिक भी था और कुछ का नीतिगत भी। इस बैठक में मुख्यमंत्री की कही कुछ बातों को यहां रखना चाहता हूं, ताकि पता चले कि राज्यों के पास केंद्र को लेकर क्या शिकायतें हैं, अपेक्षाएं हैं और केंद्र, राज्यों से क्या चाहता है।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने पन्नीर सेल्वन ने उनका भाषण पढ़ा और कहा कि एनडीए का सहकारी संघवाद का नारा खोखला रह जाएगा, अगर राज्यों को समुचित शक्तियां और वित्तीय संसाधन नहीं दिए गए। एक सशक्त केंद्र सशक्त राज्य से ही बन सकता है।
जयललिता की टिप्पणी से अंदाजा मिल सकता है कि राज्य, केंद्र से क्या चाहते हैं और केंद्र के टीम इंडिया की बात को लेकर उनका अनुभव कैसा है। यह भी कहा गया कि केंद्र लगातार राज्यों की सूची से विषयों को निकाल कर समवर्ती सूची में डाल रहा है। जैसे शिक्षा को राज्य की सूची से निकालकर समवर्ती सूची में डाला गया है। केंद्र को शिक्षा के मामले में राज्यों को अधिकार वापस करना चाहिए। तमिलनाडु महसूस करता है कि केंद्र राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का अतिक्रमण कर रहा है।
इंटर स्टेट काउंसिल के बारे में भी तमिलनाडु का कहना है कि यहां चर्चा तो होती है, मगर कार्रवाई नहीं होती है। इस संस्था को और मजबूत किया जाना चाहिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि आपने दस साल बाद अंतर राज्यीय बैठक का आयोजन किया है, तो आपने ही राज्यों से पूछा तक नहीं कि एजेंडा क्या होना चाहिए। योजना आयोग में हमें बोलने का मौका मिलता था, मगर खत्म हो गया है।
नीति आयोग में भी हम एक बार बैठक में हिस्सा लेते हैं। वे हमारी नहीं सुनते, नीति आयोग में कुछ भी नहीं है। पंजाब में अकाली दल बीजेपी की सरकार है। वहां के उप मुख्यमंत्री को भी केंद्र से तमाम शिकायतें रहीं। उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने कहा कि राज्यों की स्थिति भिखारियों जैसी हो गई है। राज्यों को और ज्यादा शक्तियां मिलनी चाहिए।
प्रधानमंत्री यानी केंद्र की बात कुछ और, मुख्यमंत्री यानी राज्यों की बात की दिशा कहीं और। प्रधानमंत्री ने धारा 356 के बेजा इस्तेमाल, राष्ट्रपति शासन को लेकर राज्यों की आशंका को लेकर कुछ नहीं कहा। यह जरूर कहा कि खुले माहौल में चर्चा हो और सभी अपना सुझाव दें। प्रधानमंत्री द्वारा कोआॅपरेटिव फेडरलिज्म पर जब अच्छी अच्छी बातें कही जा रही थी, उसी वक्त अरुणाचल में एक बर्खास्त सरकार फिर से बहाल हो रही थी।