20 Apr 2024, 05:22:45 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-राजीव रंजन तिवारी
विश्लेषक

ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कहा कि यूरोपीय संघ से बाहर होने के फैसले के बाद ब्रिटेन दुनिया में अपने लिए एक बड़ी साहसी भूमिका गढ़ेगा। उनकी सरकार सिर्फ कुछ विशेष लोगों के लिए नहीं बल्कि सभी लोगों के लिए काम करेगी। अपनी पार्टी का पूरा नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि कंजरवेटिव एंड यूनिअनिस्ट पार्टी की होने के नाते वे यूनाइटेड किंगडम के सभी भागों को साथ लेकर चलेंगी। थेरेसा मे ने वर्ग और युवाओं के साथ होने वाले भेदभाव, नस्ल भेद और लिंग भेद से लड़ने का वादा भी किया। थेरेसा मे ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद कहा कि उनकी सरकार अन्याय के खिलाफ लड़ेगी और ब्रिटेन को अधिक बेहतर बनाने की कोशिश करेगी। उन्होंने डेविड कैमरून के इस्तीफा देने के बाद यह पद संभाला है। उनकी औपचारिक रूप से नियुक्ति के बाद विश्व नेताओं ने उन्हें बधाई दी है।

अक्टूबर 1956 में जन्मी थेरेसा मे पहली बार 1997 में मेडन हेड क्षेत्र से सांसद चुनी गई थीं। 2002 में कंजरवेटिव पार्टी की पहली महिला चेयरपरसन चुनी गईं। 2010 में गृह मंत्री बनी। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद कैबिनेट मंत्रियों का चुनाव किया है। यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में प्रचार में अहम भूमिका निभाने वाले बॉरिस जॉनसन को विदेश मंत्री बनाया है। फिलिप हैमंड पहले ब्रिटेन के विदेश मंत्री थे उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया है। वहीं ब्रेक्जिट के पक्ष में प्रचार करने वाले डेविड डेविस को ब्रेक्जिट मंत्री बनाया गया है। इससे पहले डेविड कैमरन ने महारानी को अपना इस्तीफा सौंपा। प्रधानमंत्री पद छोड़ने से पहले कैमरन ने कहा कि उन्होंने देश को उससे कहीं ज्यादा मजबूत छोड़ा है जितना उन्हें छह साल पहले मिला था। डेविड कैमरन ने यूरोपीय संघ के मुद्दे पर हुए जनमत संग्रह के बाद अपना पद छोड़ने का फैसला किया था। 59 साल की थेरेसा मे मारग्रेट थैचर के बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने वाली दूसरी महिला हैं। वो 1997 से लगातार ब्रिटेन की संसद की सदस्य हैं और अपने स्टाइल और फैशन के लिए भी खूब मशहूर रही हैं। उन्होंने कहा है कि यूरोपीय संघ की सदस्यता के मुद्दे पर अब दूसरा कोई जनमत संग्रह नहीं होगा। थेरेसा मे के यूरोपीय संघ पर दिए गए बयान के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं।

ब्रिटिश राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषक उन्हें एक मुश्किल महिला मानते हैं। मार्गेट थैचर की तरह ही उन्हें काफी कठोर माना जाता है। हालांकि इतने लंबे सार्वजनिक जीवन के बाद भी थेरेसा मे अपनी निजी जिंदगी के बारे में कम ही बोलती नजर आईं। 2013 में उन्होंने बताया कि वे डायबिटीज की मरीज हैं और उन्हें हर दिन इंसुलिन की दो सूई लेनी पड़ रही है। जहां तक भारत का संबंध है तो थेरेसा मे 2012 में एक बार भारत आ चुकी हैं। डेविड कैमरन का जोर भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने में था, ऐसी उम्मीद की जा रही है कि थेरेसा मे उसी रास्ते को अपनाएगीं। वैसे भी यूरोपीयन संघ से अलग होने की प्रक्रिया में ब्रिटेन भारत के साथ अपने कारोबारी संबंधों को बढ़ावा देगा। वैसे 2013 में गृह मंत्री के तौर पर वे भारत को तब नाराज कर चुकी हैं, जब उन्होंने भारत को उन पांच देशों में शामिल किया था, जिनके लोगों को वीजा हासिल करने के लिए 3000 पाउंड जमा करना था, जो लौटते वक्त वापस हो जाता था। हालांकि ये प्रावधान समाप्त हो गया, लेकिन अप्रवासन के मुद्दे पर वह सख्त रवैया भी अपना सकती हैं। अप्रैल, 2012 में उन्होंने पोस्ट स्टडी वर्क वीजा समाप्त कर दिया था, जिसका भारतीय छात्रों को काफी नुकसान हुआ था। जहां तक नीतियों की बात है तो वे ब्रेक्जिट पर हुए फैसले के साथ हैं और वे इस मुद्दे पर दूसरा जनमत संग्रह नहीं कराना चाहती हैं। उन्होंने ये कहा है कि यूरोपीय संघ को छोड़ने के मसले पर आधिकारिक फैसला 2016 के समाप्त होने से पहले संभव नहीं होगा। इसके अलावा वे कंपनियों के बोर्डरूम में कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व भी चाहती हैं। वह समलैंगिक विवाह का समर्थन कर चुकी हैं। इसके अलावा 2012 में उन्होंने कानूनी गर्भपात करने की सीमा को 24 सप्ताह से घटाकर 20 सप्ताह करने का विचार दिया था।

गौरतलब है कि डेविड कैमरन ने पिछले साल हुए चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को चुनावी जीत दिलाई थी, लेकिन उम्मीद के उलट देश की जनता ने यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहने के सवाल पर हुए जनमत संग्रह में कैमरन का साथ नहीं दिया। कैमरन के इस्तीफे के बाद थेरेसा मे लगभग सर्वसम्मति से देश की बागडोर संभाली। उनके पिता चर्च में पादरी थे, जिनकी कार दुर्घटना में मौत हो गई थी। तब थेरेसा मे केवल 25 साल की थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति आम मध्यमवर्गीय परिवारों जैसी थी। सरकारी प्राथमिक स्कूल के बाद उनकी पढ़ाई हुई। इसके बाद वे कान्वेंट स्कूल में भी पढ़ीं, फिर व्हीटली गांव के ग्रामर स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की। तब थेरेसा का पूरा नाम थेरेसा ब्रेजिÞयर था, वे गांव में रह रही थीं, मूक नाटकों में हिस्सा ले रही थीं और हफ्ते में एक दिन बेकरी में काम करती थीं ताकि जेब खर्च निकाल पाएं। थैचर के बाद ही सही, थेरेसा मे के बचपन के दिनों का सपना अब पूरा हो रहा है। वे थैचर की तरह आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ाई करने पहुंची और यहीं से उनके करियर और जीवन को नई दिशा मिली। 1976 में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात फिलिप मे से हुई, जो उस वक्त आॅक्सफोर्ड यूनियन के अध्यक्ष थे। कहा जाता है कि इन दोनों की मुलाकात बेनजीर भुट्टो ने कराई थी। दोनों ने 1980 में शादी कर ली। भूगोल में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मे ने बैंक आॅफ इंग्लैंड में काम  किया। बाद में थेरेसा में एसोसिएशन फॉर पेमेंट क्लियरिंग सर्विसेज के यूरोपीयन अफेयर्स यूनिट की प्रमुख बनीं। लेकिन तब तक उन्होंने राजनीति को अपना करियर बनाना तय कर लिया था।  वैसे 1976 में जेम्स कैलाघन के बाद वह डाउनिंग स्ट्रीट पहुंचने वाली सबसे ज्यादा उम्र की प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं और टेड हीथ के बाद पहली ऐसी पीएम हैं, जिनके बच्चे नहीं हैं।

उल्लेखनीय है कि जनमत संग्रह में ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन (ईयू) से बाहर जाने के फैसले के बाद ब्रितानी प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपने पद से हटने की घोषणा की थी। डेविड कैमरन ब्रिटेन के ईयू में बने रहने के पक्ष में प्रचार कर रहे थे, कैमरन ने कहा कि वे अक्टूबर में नए नेतृत्व के सामने आने के बाद अपने पद से हट जाएंगे। आने वाले हफ़्तों और महीनों में वे ब्रिटेन को स्थिरता देने की कोशिश करेंगे। ब्रिटेन के ईयू में बने रहने की वकालत करते हुए कैमरन ने कहा था कि ब्रिटेन के बाहर निकलने के गंभीर आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होंगे। थेरेसा मे ने इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के बीच एकता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता जताई है और कहा है कि वह ईयू से निकलने की चुनौती से निपटेंगी और दुनिया में ब्रिटेन के लिए साहसिक एवं नई सकारात्मक भूमिका तैयार करेंगी। बेहद खरी बातें करने वाली इस नेता ने ऐसे वक्त में पद संभाला है, जब ब्रेक्जिट वोट के कारण प्रधानमंत्री पर काम का बोझ बहुत ज्यादा है। बहरहाल, अब देखना यह है कि थेरेसा दुनिया के अन्य देशों के साथ किस प्रकार तालमेल बैठा पाती हैं।

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