19 Apr 2024, 08:01:22 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

किसी समाचार-पत्र के एक कोने में एक खबर छपी थी। नजर पड़ गई तो पढ़ने में आ गई। पढ़ते-पढ़ते लगभग आश्चर्य से विचारों में तूफान सा आ गया। ऐसा तो नहीं हो सकता कि परस्पर विश्वास करने की नींव की र्इंटें ही इस हद तक खिसकने लग जाएं। यह तो एक छोटी-सी खबर है, पर अगर इस खबर की बात आम होने लगी तो समाज के सारे ढांचे और व्यवस्था का क्या होगा?

खबर गुजरात से संबंधित थी। उसमें बताया गया था कि वहां दंपतियों में परस्पर विश्वास की दीवारें इतनी कमजोर हो गई हैं कि उनकी दरारें उनके बच्चों तक पहुंचने लगी हैं। वहां कई कपल्स अपने बच्चों के डीएनए टेस्ट करवा रहे हैं कि वास्तव में यह संतान उन्हीं की है। इस जांच को करवाने के लिए दंपतियों की संख्या इतनी बढ़ रही है कि पता चला है कि इस प्रकार की लगभग 22 क्लिीनिक्स अहमदाबाद में अभी शुरुआत ही हुई है, पर इसका परिणाम कहां-कहां तक जाकर पहुंचेगा कुछ कह नहीं सकते। दंपतियों में परस्पर विश्वास का रिश्ता ही मौजूद नहीं है और अविश्वास की यह आंच बच्चों तक पहुंच रही है तो यह बहुत खतरनाक संकेत हैं, जिन्हें अभी से पहचान कर इन पर रोक लगाने की जरूरत है। दंपति यदि इस तरह परस्पर रिश्ते को अविश्वास के साथ जी रहे हैं और डीएनए टेस्ट करवाए बगैर उन्हें चैन नहीं आ रहा तो वैवाहिक संस्था को बहुत चोट पहुंचेगी और हो सकता है कि उसके बिखरने या टूटने की नौबत आ जाए।

पति-पत्नी तो परस्पर विश्वास के साथ जीते हैं। उनमें कोई खून का रिश्ता तो नहीं होता पर उससे भी आगे बढ़कर प्र्रेम का रिश्ता ऐसा होता है कि इसकी मजबूती बड़े-बड़े संबंधों को भी मात दे देती है। प्रश्न यह है कि जो दंपति एक परिवार को बनाने के लिए एक होते हैं, वे अपने रिश्ते को चलाना चाहते हैं, बनाएं रखना चाहते हैं तो उसमें दूर-दूर तक अविश्वास की कोई बात ही नहीं उठ सकती। पति-पत्नी साथ-साथ रहते हुए अपना सुख-दुख बांटते-बांटते इतने समीप हो जाते हैं, इतने आत्मीय हो जाते हैं कि उनके बीच किसी तीसरे की गुंजाइश ही नहीं बचती। जीवन के एक मोड़ पर आकर शेष सभी रिश्ते दोयम हो जाते हैं। केवल पति-पत्नी ही अपना विचार तथा अपनी सोच एक-दूसरे से साझा करते हैं। यहां तक कि वह अपनी संतान को लेकर भी जो निर्णय लेते हैं, वह भी उन दोनों के द्वारा एक साथ लिए जाते हैं।

समाज में आई तथाकथित आधुनिकता ने जिस संस्था को सबसे अधिक चोट पहुंचाई है, वह वैवाहिक संस्था ही है। जितना अविश्वास हो सकता था वह विवाह को लेकर ही पनप चुका है। एक-दूसरे से जुड़ने और घनिष्ठ होने के स्थान पर एक-दूसरे से दूरी और अविश्वास की बातें अधिक शामिल हो गई हैं। आजकल तो विवाह पूर्व ही एक-दूसरे को जानने व समझने की सारी कवायदें बहुत विस्तार से की जाती हैं। अरेंज्ड मैरिज लगभग खत्म है और लव मैरिज में भी बहुत अधिक गहरी जान-पहचान कर ली जाती है, तब विवाह के बाद यह अविश्वास का बीज कहां से लाकर बो दिया जाता है? यदि समाज को स्वस्थ और सशक्त रहना है तो पति-पत्नी एक-दूसरे का विश्वास करें और शक को अपने संबंधों के बीच न आने दें।

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