- डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
पर्यावरण डाइजेस्ट के संपादक है
इक्कीसवीं शताब्दी के पहले 16 बरसों में 15 बरस पिछली एक शताब्दी की तुलना में सर्वाधिक गर्म रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण हरियाली में आ रही निरंतर कमी है। पेड़ नदियों और पहाड़ों के अलावा जीव जंतुओं तक की पूजा करने वाले भारतीय समाज में आज इनके विनाश को लेकर गंभीर चिंता नहीं है। तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन हमारी कृषि व्यवस्था, आर्थिक और औद्योगिक नीति तथा जीवनशैली से जुड़ा हुआ है। जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव खेती पर पडेगा। क्योंकि तापमान वर्षा आदि में बदलाव आने से मिट्टी की क्षमता में कमी होगी और कीट पतंगों से फैलने वाली बीमारियां बड़े पैमाने पर होगी। गर्म मौसम होने से वर्षा चक्र प्रभावित होता है इससे बाढ़ या सूखे का खतरा बढ़ने लगा है। इन दिनों गायब होती हरियाली और तेजी से नीचे जा रहे भूजल स्तर के कारण मालवा की वर्तमान पर्यावरणीय स्थिति दयनीय हो गई है।
कृषि वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं यदि तापमान 3-5 डिग्री बढ़ता है तो गेहूं के उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की कमी आ जाएगी। औद्योगिकरण एवं वर्तमान में जीवाष्म इंधनों का अधिकाधिक उपयोग से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। पृथ्वी का औसत वार्षिक तापमान लगभग 15 डिग्री सेंटीग्रेड है। पृथ्वी को गर्म रखने की वायुमंडल की यह क्षमता ग्रीन हाऊस गैसों की उपस्थिति पर निर्भर करती है। इनकी मात्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप ग्रीन हाऊस प्रभाव बढ़ जाएगा, जिससे वैश्विक तापमान में अत्यधिक वृद्धि हो जाएगी। बढ़ते वैश्विक तापमान यानि ग्लोबल वार्मिंग के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। परंतु इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, बढ़ता शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, वाहनों की भीड़, क्लोरोफ्लोरो कार्बन का वातावरण में रिसाव, बढ़ती विमान यात्राएं, प्रकृति के साथ किया जा रहा खिलवाड़ एवं सबसे बढ़कर हमारी विलासितापूर्ण जीवनशैली का असर पूरे विश्व पर पड़ रहा है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वे देश हो रहे हैं जिनकी आबादी ज्यादा है और विकास की दृष्टि से पीछे हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कई देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।
दक्षिणी एशिया के चीन व भारत दो ऐसे विकासशील देश हैं, जहां प्राकृतिक संसाधनों के दोषपूर्ण विदोहन से अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यहां वन क्षेत्र कम हुआ है, बीसवीं सदी में भारत भूमि लगभग 30 प्रतिशत वनाच्छादित थी जो घटकर मात्र 19.4 प्रतिशत ही रह गई है। भारतीय अर्थव्यस्था मुख्यत: कृषि आधारित है, कृषि के लिये जल का महत्व है। मानसून की अनिश्चितता के कारण भारतीय कृषि पहले से ही अनिश्चितता का शिकार रही है। इस कारण विभिन्न फसलों के उत्पादन एवं उसकी उत्पादकता पर प्रभाव पड़ा है। फसलों पर कीटों का प्रकोप बढ़़ा है। कृषि उत्पादन में कमी के कारण कृषि पदार्थों की कीमतों में भारी वृद्धि देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानव का स्वास्थ्य भी अछूता नहीं है। माना जाता है भारत में वैज्ञानिक कृषि का शुभारंभ 16 वीं शताब्दी में हुआ। जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होने के कारण कृषि उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी। नई नीतियों का जन्म हुआ जिनका सीधा प्रभाव कृषि पर पड़ा। नकदी खेती के लिए गन्ना, कपास, तंबाकू, पशु उत्पादन,ऊन और चमड़ा पैदा करने पर ध्यान दिया गया। भारतीय कृषि में किसान और पर्यावरण का सीधा संबंध है तथा किसान कृषि और पर्यावरण के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है। इसलिए किसानों को ऐसी खेती करनी चाहिए जिससे खेती में उन्नति के साथ-साथ पर्यावरण को भी शुद्ध बनाए रखा जा सके। जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में कमी आएगी तथा अनेक फसलों के उत्पादन क्षेत्रों में परिवर्तन होगा। फसलों एवं जीव-जन्तुओं में स्वाभाविक रूप से काफी हद तक अपने ढालने की क्षमता होती है जिसे प्राकृतिक अनुकूलन कहते हैं। हमें फसलों की ऐसी प्रजातियों विकसित करनी होंगी जो उच्च तापमान को सह सकें।
संपूर्ण कृषि विकास के लिए समेकित जल प्रबंधन द्वारा जल की प्रत्येक बूंद का इस्तेमाल कृषि में करने की आवश्यकता है। उन्नत कृषि तकनीकी के प्रचार-प्रसार के लिए कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रम को नया रूप देना होगा ताकि कृषि शिक्षा, अनुसंधान विस्तार और भारतीय कृषि में आवश्यकताओं के अनुरूप जनशक्ति तैयार की जा सके। इससे हमारी कृषि और कृषकों को मजबूती मिलेगी। मानव जीवन में तीन बुनियादी आधार शुद्ध हवा, ताजा पानी और उपजाऊ मिट्टी मुख्य रूप से वनों पर ही आधारित हैं। पेड़ लगाने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए हमारे देश में प्राचीनकाल से ही प्रयास होते रहे हैं जिसमें सरकार और समाज दोनों ही समान रूप से भागीदार होते थे। राजा व साहूकार सड़क किनारे छायादार पेड़ लगवाते थे तो जनसामान्य इनके संरक्षण की जिम्मेदारी निभाता था। इस प्रकार राज और समाज के परस्पर सहकार से देश में एक हरित संस्कृति का विकास हुआ जिसने वर्षों तक देश को हरा भरा रखा। वर्तमान विषम परिस्थिति में इसी विचार से हरियाली का विकास होगा जिसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है।