- श्रीपाद धर्माधिकारी
जल एंव ऊर्जा संबंधित विषयों के विशेषज्ञ
कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को पानी की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। एक यूनिट बिजली बनाने में 3 से 5 लीटर तक पानी लगता है। 1 हजार मेगावाट का संयंत्र 5 लाख की आबादी वाले शहर की आवश्यकता जितना पानी गटक जैसे -जैसे गर्मी बढ़ती है वैसे-वैसे अकाल और पानी की बढ़ती कमी के समाचार भी निरंतर बढ़ते हैं। ज्यादातर किस्से किसानों, पशुओं,परिस्थितियों और गांवों, कस्बों, और शहरों में पीने के पानी की बढ़ती किल्लत पर एकाग्र हैं। परंतु सामान्यत: उद्योगों खासकर कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों की स्थिति सामने नहीं आ रही है। देश में पानी की कमी का ताप विद्युत संयंत्रों पर भी अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इनके परिचालन में पानी की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। पानी की आवश्यकता मुख्यत: उस भाप को ठंडा करने के लिए जिससे विद्युत उत्पादन होता है और कोयला जलने से पैदा हुई राख के निपटान के लिए पड़ती है। एक सामान्य ताप विद्युत संयंत्र जिसकी उत्पादन क्षमता 1 हजार मेगावाट की हो, को प्रतिवष 2.80 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। जिससे कि 5,600 एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई हो सकती है। और इतना पानी करीब 5 लाख लोगों की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पर्याप्त है।
पानी की इतनी आवश्यकता के चलते स्थानीय जल प्रणाली पर दबाव पड़ता है खासकर कम वर्षा वाले वर्षों में। इसके अलावा जिन क्षेत्रों में एक से अधिक विद्युत सयंत्र हैं वहां पर अक्सर स्थितियां प्रतिकूल बनी रहती हैं। अतएव पानी की वजह से या तो विद्युत संयंत्र बंद हो जाते हैं अथवा इसके अन्य प्रयोग एवं उपभोक्ताओं पर असर पड़ता इस वर्ष पानी की कमी की वजह से बंद हुए ताप विद्युत संयंत्रों को अभी तक 8.7 अरब यूनिट विद्युत उत्पादन का नुकसान हो चुका है। यह आंकड़ा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण विद्युत संयंत्रों द्वारा प्रतिदिन किए गए उत्पादन को सार्वजनिक करने से ज्ञात हुआ है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र के बीड़ जिले में स्थित पारली ताप विद्युत संयंत्र का है जो कि पिछले कई वर्षों से पानी की कमी के कारण बंद है। यदि हम पारली को छोड़ भी दें तो पानी की कमी की वजह से संयंत्रों को 582 मिलियन यूनिट बिजली का नुकसान झेलना पड़ा है। यह आंकड़े 1 दिसंबर 2015 से 24 अप्रैल 2016 के मध्य के हैं और इसमें पारली संयंत्र शामिल नहीं है, जो कि 1 अप्रैल 2015 से बंद है। अन्य प्रभावित ताप विद्युत संयंत्रों में कर्नाटक के रायचुर एवं महाराष्ट्र के ईमको वारोरा ताप विद्युत संयंत्र शामिल हैं। गौरतलब है कि वास्तविक हानि तो और अधिक होगी क्योंकि आंकड़़ों में अप्रैल के आखिर तक की गणना है और पानी की वास्तविक कमी तो इसके बाद होती है जो मानसून की शुरूआत अर्थात जून के दूसरे हफ्ते तक जारी रहती है। वैसे देश में सन 2015-16 के दौरान कुल 1107 अरब यूनिट विद्युत उत्पादन हुआ। इसका अर्थ हुआ यह नुकसान देश के कुल उत्पादन का महम 0.7 प्रतिशत होता है। कुल उत्पादन के अनुपात में यह काफी कम है लेकिन किसी एक संयंत्र पर इसके अत्यन्त विपरीत वित्तीय इसके अलावा इन आंकड़ों से इतर पानी की कमी से होने वाली वास्तविक हानि बहुत अधिक होती है। इसक े दो कारण हैं। पहला यह कि तमाम प्रस्तावित एवं उत्पादन के लिए पूरी तरह से तैयार संयंत्र भी पानी की कमी से प्रभावित होते हैं। इसका कारण यह है कि संयंत्र के आस-पास का क्षेत्र प्रभावित हो चुका होता है और वहां के जलस्त्रोतों पर दबाव पड़ना प्रारंभ हो जाता है।
उदाहणार्थ एन टी पी सी के कर्नाटक स्थित 2400 मेगावाट के कुडगि ताप विद्युत संयंत्र की पहली इकाई के मार्च 2016 में प्रारंभ होने की संभावना थी। लेकिन कृष्णा नदी बेसिन में पानी की कमी के चलते और चूंकि पानी कृष्णा नदी एवं अलमाट्टी बांध से लेना था और इनमें पानी की कमी का प्रभाव पहले ही रायचुर ताप विद्युत संयंत्र झेल रहा है, ऐसे में पानी की कमी के चलते इस संयंत्र को चालू नहीं किया जा सका। इसी तरह एन टी पी सी के शोलापुर में स्थित 1320 मेगावाट के ताप विद्युत संयंत्र की पहली इकाई का संचालन मई 2016 से प्रारंभ होना था, को मार्च 2017 तक के लिए टाल दिया गया है। हालांकि इसका आधिकारिक कारण निर्माण में देरी बताया गया है लेकिन पानी की उपलब्धता भी एक गंभीर मुद्दा है। पानी के कमी के चलते अनेक मामलों में ताप विद्युत संयंत्र बंद तो नहीं हुए लेकिन वे अपनी क्षमता से कम विद्युत उत्पादन कर पा रहे हैं। कम उत्पादन का कारण नहीं दिया जाता। हमारा अंदेशा है कि वहां इतना पानी नहीं होता कि अधिकतम उत्पादन किया जा सके। इस वर्ष अभी तक पिछले वर्ष से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। सीईए द्वारा ताप विद्युत संयंत्रों की कार्यक्षमता समीक्षा रिपोर्ट 2011-12 में बताया कि कितनी बार संयंत्र बंद हुआ1 3901.03 मिलियन यूनिट और सन् 2011-12 में 10 आउटेजेस में पानी की कमी की वजह से 725.03 मिलियन यूनिट का नुकसान हुआ है। दीर्घकालिक समस्याएं-सामान्यतया प्रतीत होता है कि समस्या किसी विशिष्ट वर्ष में आई वर्षा में कमी से संबंधित है। लेकिन यह एक व्यापक मूलभूत समस्या है। पानी को गटक जाने वाले इन ताप विद्युत संयंत्रों को न केवल अकाल प्रभावित क्षेत्रों में स्थापित किया गया है बल्कि इन्हें समूहों में स्थापित किया गया है। उदाहरण के लिए कर्नाटक के रायचुर में स्थित ताप विद्युत संयंत्र को इस वर्ष पानी की कमी की वजह से बंद करना पड़ा। एक अन्य उदाहरण उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित सिंगरौली क्षेत्र का है। वहां बड़ी संख्या में ताप विद्युत संयंत्र स्थापित हैं। इनमें से अधिकांश रिहंद जलाशय से पानी लेते हैं। केंद्रीय जल निगम के आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले 10 साल में मानसून के समाप्त होने पर रिहंद जलाशय में औसत भंडारण केवल 47 प्रतिशत ही हो पाता है। इस तरह के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ताप संयंत्रों की स्थापना से पैदा होने वाले जल अकाल से पानी के अन्य उपयोगकर्ताओं जैसे घरेलू उपभोक्ता और कृषि क्षेत्र का विद्युत उत्पादन क्षेत्र से संघर्ष का खतरा पैदा हो रहा है।