-अश्विनी कुमार
-पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक
वैसे तो राजनीति और समाज में शब्दभेदी बाण जहरीले हो चुके हैं। ऐसा लगता है कि शब्दों में सायनाइड घुल चुका है, क्योंकि राजनीति और समाज का अटूट संबंध है इसलिए रोज-रोज वक्तव्य सुनते कई बार ऐसा लगता है कि किसी ने गर्म सीसा पिघला कर कानों में डाल दिया हो। कोई शालीनता नहीं बची, कोई मर्यादा नहीं बची। बड़े लोग उद्दंड व्यवहार करते नजर आते हैं। बालीवुड के ‘दबंग’ स्टार सलमान खान, जो चुलबुल पांडे और बजरंगी भाईजान के नाम से लोकप्रिय हैं, ने सुल्तान फिल्म की प्रमोशन के दौरान अपनी मेहनत का बखान कुछ इस तरह से किया ‘जब मैं उस रिंग से बाहर निकलता था तो मुझे किसी बलात्कार पीड़ित महिला जैसा महसूस होता था-मैं चल नहीं पाता था।’ यह अपने आप में बेहूदा मिसाल है।
हो सकता है कि सलमान खान के प्रशंसकों को मेरी बात अच्छी न लगे और उनके फैन मुझे भी निशाना बनाने लगें, लेकिन मैं हर तरह की प्रतिक्रिया का स्वागत ही करूंगा। हो सकता है सलमान ने इन शब्दों को जुमले की तरह इस्तेमाल किया हो, क्योंकि वह सेलिब्रिटी हैं, इसलिए उनसे यह आशा तो की ही जानी चाहिए कि उन्हें तोल-मोल के बोलना चाहिए। जो कुछ भी उन्होंने कहा उससे स्पष्ट है कि वह कुश्ती या पहलवान की भूमिका के लिए किए गए श्रम और बलात्कार पीड़िता के दर्द का अंतर नहीं जानते। सलमान को शायद फिल्मी पर्दे पर दिखाए जाने वाले बलात्कार के दृश्य ही याद रहे होंगे जिसमें पीड़ित युवतियों को लडखड़ाते चलते दिखाया जाता है। सलमान शायद बलात्कार का दंश नहीं जानते, जानते होते तो वह इन शब्दों का कभी इस्तेमाल नहीं करते। फिल्मी पर्दे पर वह कुछ भी बन सकते हैं, अब की बार वह सुल्तान बने हैं लेकिन आम जिन्दगी में वह क्या हंै, यह तो वही जानते होंगे। अब तो यह लगता है कि उनका बीर्इंग ह्यूमन होना उनके पीआर नेटवर्क का कमाल है ताकि खुद को कानून की नजर में दिखाया जा सके कि सलमान काफी संवेदनशील और मानवीय हैं।
यह सही है कि उनका एनजीओ मानवता के कल्याण के लिए काफी काम कर रहा है, लेकिन आम जिन्दगी में सलमान ने कोई कम खुराफातें नहीं की हैं। उसने अपनी करीबी अभिनेत्रियों की पिटाई की, सड़क पर सो रहे लोगों पर गाड़ी चढ़ाई (हालांकि इस केस में वे बरी हो चुके हैं), शूटिंग के दौरान हिरन का शिकार किया, इसके बावजूद वह देश के नायक हैं। क्या ऐसे शख्स को ‘नायक’ मान लेना चाहिए? किसी की 25 फिल्में सुपर हिट भी हो जाएं तो इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती कि आम जिंदगी में हीरो एक बेहतर इंसान होगा। वैसे तो फिल्म इंडस्ट्री के खान आमिर खान और शाहरुख खान भी अपनी टिप्पणियों पर विवाद होने की वजह से काफी चर्चित हैं।
अब तो सलमान खान की टिप्पणी पर फिल्म उद्योग के जाने-माने चेहरों ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे सोच की कमी और मूर्खता बताया है। साथ ही पत्रकारों पर भी सवाल उठाया है जो सलमान के जवाब पर हंसते नजर आए। अगर दोषी सलमान हैं तो उनसे बातचीत करने वाले पत्रकार भी जिम्मेदार हैं। दोनों ही तरफ से विचार शून्यता ही रही। ऐसी टिप्पणियों से कोई बेहतर संदेश नहीं जाता बल्कि बलात्कार का ग्लैमराइज ही हुआ है। सोशल मीडिया काफी संवेदनशील है, आज के दौर में लोग अपना विरोध और समर्थन व्यक्त करने में जरा भी देरी नहीं लगाते। सो तूफान तो उठना ही था। राजनीतिक दलों, सोशल मीडिया और महिला आयोग द्वारा अभिनेता से माफी मांगने के स्वर उठने के बाद सलमान के पिता सलीम खान ने अपने बेटे की तरफ से माफी मांगते हुए स्वीकार किया कि उनके बेटे की टिप्पणी गलत थी। दिल्ली में हवस के दरिन्दों का शिकार हुई ‘निर्भया’ की मां भी सलमान खान के बयान पर काफी व्यथित हुईं। निर्भया की मां ने कहा है कि अगर वे निर्भया से मिले होते तो उन्हें पता चलता कि रेप विक्टिम की क्या हालत होती है।
सलमान खान के विरोध और समर्थन के बीच मेरी यह स्पष्ट राय है कि क्षेत्र कोई भी हो लेकिन सेलिब्रिटीज को बोलते समय तुलना, उदाहरण और संदर्भ का ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि उनका समाज में काफी प्रभाव होता है और उनकी किसी भी गलत टिप्पणी पर बवाल मच सकता है। भले ही उनके समर्थक यह मानते हैं कि सलमान ने तो एक उदाहरण दिया है, उसे इस तरह से परिभाषित करना गलत है। अभिनय के सुल्तान को शब्दों का ‘सुल्तान’ बनना चाहिए। अगर सलमान माफी मांग लेते हैं तो इससे भी वह जनता की नजर में सुल्तान बनेंगे। माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता।