-वीना नागपाल
महाराष्ट्र शासन ने कुछ रूट्स पर चलने वाली बसों में सीसीटीवी कैमरा और एक पैनिक बटन लगाया है। शासन द्वारा उठाया जाने वाला यह एक ऐसा कदम है जिससे महिलाओं को तसल्ली मिलेगी कि यदि उनके साथ बदतमीजी की गई तो यह दुर्व्यवहार कैमरे में तो कैद हो ही जाएगा, साथ ही यदि यात्री महिला को अधिक अशिष्टता होने का अंदेशा हुआ तो वह बस में लगे पैनिक बटन का प्रयोग कर सकती है जिससे कि उस रूट के सारे थाने अलर्ट हो जाएंगे और पुलिस उस समय उस रूट पर चलने वाली बस का घेराव कर लेगी। कभी तो यह भी होता है कि बस का कंडक्टर तथा ड्राइवर ही ऐसी अशिष्टता करने पर उतारू हो जाते हैं उनके व्यवहार पर भी इससे अंकुश लगेगा।
इतना ही नहीं! शासन ने स्कूलों के प्रशासन से भी अनुरोध किया है कि वह स्कूल बसों में इस तरह की व्यवस्था करें। अभी तो केवल ऐसा करने का परामर्श ही दिया गया है उसके बाद यदि इसका पालन नहीं हुआ तो इसे अनिवार्य किया जाएगा और यहां तक कि स्कूल की मान्यता भी रदद् कर दी जाएगी। यह ऐसा कदम होगा जिससे कम से कम पालक अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर किसी हद तक चिंता मुक्त हो पाएंगे। जहां तक भी हो सके शासन व समाज ऐसे उपाय अपनाए जिनसे कम से कम समाज में यह संदेश तो जा सके ऐसी अशिष्टता करने वालों को यह डर तो बने की वह ऐसा दुर्व्यवहार करके बच तो नहीं सकता। साक्ष्य और प्रमाणों के अभाव में ऐसी दुष्प्रवृत्ति के लोग न केवल बच जाते हैं बल्कि वह बडेÞ हौंसले व दु:साहस से भरे हुए खुले घूमते रहते हैं। इससे समाज में यह पक्का संदेश जाता है कि ऐसे व्यवहार करने वाले दंडित नहीं हो पाते। एक अच्छी व्यवस्था तो यह होती कि समाज में इस तरह की दुर्घटनाएं न हों और न ही महिलाएं इस तरह से उपमानित हों। उनका वजूद इस तरह से आहत न हो, पर समाज की मजबूरी यह है कि जब उसने महिलाओं और युवतियों की स्वतंत्रता को मान्य किया तब उसने कतई यह नहीं सोचा कि समाज के पुरुषों की प्रतिक्रिया ऐसी होगी। वह न तो उनकी स्वतंत्रता के प्रति उदार होंगे और न ही उनके चाहरदीवारी से बाहर आने की व्यवस्था को कबूल करेंगे। महिलाओं के साथ इस तरह की अशिष्टता का बहुत बड़ा कारण यही है कि पुरुष को संस्कारित ही नहीं किया गया कि वह महिलाओं से लेकर बच्चियों तक की बाहर आने की स्थिति सहजता से ले।
जब पैनिक बटन और सीसीटीवी लगाने की व्यवस्था लागू की जा रही है तो यह एक तरह से उस मानसिकता को बदलने की एक ईमानदार कोशिश है जो यह भी संकेत दे रही है कि यह इसे नहीं बदलेगा तो अब ऐसी अशिष्टता करने वाले बच नहीं सकेंगे। आखिर सजा पाने और भुगतने का भी खौफ तो होता ही है। यह भी तो हो सकता है कि ऐसा डर होने का भाव धीरे-धीरे एक आदत बन जाए और ऐसा करने का विचार ही न उठे। यदि पश्चिम मेें अपनी सारी आधुनिकता और खुलेपन के बावजूद इस वृत्ति पर रोक लग सकती है तो हमारा समाज तो मूल्यों पर आधारित समाज है। सवाल केवल इसके पुन: स्मरण का है जिसे दंड के भय से फिर से याद दिलाया जा सकता है।