26 Apr 2024, 02:11:51 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

क्या किसी अति गंभीर व गहरी बात को हल्केपन से लिया जा सकता है? शायद नहीं! पर हो यह रहा है कि नेताओं से लेकर अभिनेता तक बात की गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं या समझ पाने में असमर्थ हैं। ऐसा होना तो नहीं चाहिए, पर ऐसा ही हो रहा है। कल - परसों लोकप्रिय अभिनेता सलमान खान ने कह दिया कि वह फिल्म सुल्तान की शूटिंग के दौरान शारीरिक रूप से इतने भारी-भरकम दृश्य अभिनीत करते हुए इतनी अक्षमता महससू करते थे जैसे कि उनका रेप हुआ है।

सलमान खान का यह व्यक्तव्य समाज में होने वाली महिलाओं के साथ की जाने वाली अमानवीय हरकत के प्रति बहुत सतही नजरिया दिखाता है। कितनी आसानी से उन्होंने ‘रेप’ शब्द का प्रयोग कर लिया, जबकि यह शब्द ही अपने आप में एक भयावह स्थिति का बयान करता है। इसमें जोर-जबरदस्ती ध्वनित होती है और साथ ही किसी की, वह भी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके सम्मान को आहत करने वाला तथा उसके प्रति अनादर किए जाने का व्यवहार है जो पूरी तरह अक्षम्य है। क्या इसे इतनी सहजता से कहा जा सकता है? यह तो पुरुष की बीमार मानसिकता का परिचायक है, जो उसे एक मनुष्य नहीं बल्कि हैवान की श्रेणी में रखता है। जो कुछ आज इस तरह के अप्रिय घटनाएं समाज में हो रही हैं वह विचलित कर रही हैं। सामाजिक चिंतक चिंता में डूबे हुए इनका समाधान ढंूढ रहे हैं और वह चाहते हैं कि ऐसा माहौल बने कि महिलाओं को कभी भी इस व्यवहार का सामना न करना पड़े। सलमान खान ने इसे केवल शारीरिक आघात तक ही सीमित कर दिया, जबकि यह शारीरिक पीड़ा है ही नहीं, यह तो मानसिक आघात है जिसके कारण मन-मस्तिष्क का रेशा-रेशा तक पीड़ा से, अपमान से कराह उठता है। सलमान इसे महसूस ही नहीं कर सकते, क्योंकि पुरुष होने के नाते वह इससे कभी गुजरेंगे ही नहीं। उनके मन में यह तुलना भी कैसे आई? यह समझ से परे है।

प्राय: कभी नेता तथा समाज में पहचाने व जाने-पहचाने लोग इस तरह से अपना मुंह खोलते हैं कि लगता ही नहीं कि कभी उन्होंने इस विषय की गंभीरता व गुरुता को समझा होगा। उन्होंने कभी इसे लेकर चिंतन करना तो  दूर की बात है पर, कभी ठहरकर यह भी नहीं सोचा होगा कि समाज में महिलाओं के साथ होने वाली इस दुर्घटना में केवल एक महिला का ही नहीं बल्कि उस पुरुष का सम्मान भी खंडित होता है-वह इसलिए कि यह कैसा समाज है जहां इस मानसिकता के व्यक्ति न केवल मौजूद हैं और रह रहे हैं। अभी तक भी ऐसे हादसों की विभीषिका को समझ नहीं पाते हैं।

जब तक इस विषय को लेकर एक चिंता के साथ नहीं सोचा जाएगा तब तक इस तरह के सतही व्यक्तव्य दिए जाते रहेंगे। साफ तौर पर यह महसूस हो रहा है कि इस तरह की दुर्घटनाओं को लेकर चाहे कानून बन जाएं और शासन कई कठोर कदम उठा ले पर, बात यहां पर खत्म नहीं होती बल्कि बात तब जाकर खत्म होगी जब समाज का माहौल बदलेगा। इसके बदलाव के संकेत तभी मिलेंगे जब इस तरह की की जाने वाली हैवानियत को उपहास की श्रेणी में न लेकर उसे अतिनिंदनीय और भर्त्सना के दायरे का विषय माना जाएगा। रेप विक्टिम (पीड़िता) का इस तरह से मजाक बनाने वाला व्यक्तव्य बहुत दर्दनाक है, जिसके विरोध में जितना कहा जाए कम है।

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