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हिमायतियों से ही हो गया राजन का नुकसान

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 24 2016 10:39AM | Updated Date: Jun 24 2016 10:39AM
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-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
-विश्लेषक


एक विद्वान का कथन है कि व्यक्ति के विषय में संपूर्ण जानकारी उसके मित्रों या हिमायतियों से मिलती है। इसका मतलब है कि मित्रों के चाल-चलन से किसी व्यक्ति के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की विद्वता में कोई कमी नहीं है। इसी के चलते वह देश के इस अति महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे, लेकिन उनके दूसरे कार्यकाल की जिन लोगों ने हिमायत की उससे उनकी छवि को सर्वाधिक नुकसान हुआ। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा की गई उनकी आलोचना से उनका जितना नुकसान नहीं हुआ, उतना उनके मित्रों व समर्थकों ने कर दिया। सुब्रमण्यम स्वामी ने राजन को रिजर्व बैंक गवर्नर पद से हटाने की मांग की थी। उन्होंने राजन की निष्ठा, व्यवहारिक योग्यता पर सवाल उठाए थे। इसके जवाब में राजन के बचाव में कई लोगों ने मोर्चा संभाल लिया।

इन समर्थकों के नाम देखना दिलचस्प है। इनमें पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम का नाम सबसे ऊपर था। उनका कहना था कि वर्तमान केंद्र सरकार राजन की योग्यता के लायक नहीं है। इसके बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, शेखर गुप्ता, अमर्त्य सेन, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई ने राजन का समर्थन किया। पता नहीं ये मित्र राजन को बचाना चाहते थे या उनके सामने मुसीबत उत्पन्न करना चाहते हैं। कुछ लोगों के समर्थन मात्र में किसी की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। राजन होशियार थे। संयोग देखिए, इधर इन लोगों ने राजन का समर्थन किया, उधर स्थिति को समझते हुए राजन ने गवर्नर पद के दूसरे कार्यकाल को न लेने से इन्कार कर दिया। सुब्रमण्यम स्वामी के विरोध की काट मिल सकती थी, लेकिन समर्थकों ने जो नकारात्मक छवि बना दी थी, उससे निपटना राजन के लिए संभव नहीं था। सुब्रमण्यम स्वामी ने तो राजन के पचास हिमायतियों पर भी आरोप लगाए हैं।

इसलिए तथ्य से कौन इंकार कर सकता है, कि बतौर वित्तमंत्री चिदंबरम देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में विफल रहे थे। संप्रग सरकार में घोटालों का रिकार्ड बना लेकिन बेहद अहम भूमिका में होने के बावजूद राहुल गांधी उस पर खामोश रहे।

जो लोग राजन का समर्थन कर रहे हैं, उन्हें उनके तीन वर्षीय कार्यकाल का मूल्यांकन करना चाहिए। इसमें एक वर्ष संप्रग सरकार के समय का है दो वर्ष राजग काल के हैं। इन दो वर्षों में वित्तीय जगत में जो सफलता मिली उसका श्रेय वर्तमान सरकार को है। इसमें संदेह नहीं कि केंद्र सरकार के आंतरिक सुधारों की वजह से आर्थिक विकास दर सही दिशा में आगे बढ़ रही है। सरकार ने जहां घोटालों पर रोक लगाकर अर्थ व्यवस्था में जहां सकारात्मक माहौल बनाया है, वहीं बिना किसी विवाद के अनावश्यक सब्सिडी कम करने में सफलता मिली है। नीतिगत पंगुता दूर होना भी अर्थव्यवस्था सुधार का बड़ा कारण है। विनिर्माण क्षेत्र में तेजी आई है। बिजली और कोयला आदि उपयोग खनन का उत्पादन बढ़ा है। मौसम की बेरुखी के बावजूद कृषि उत्पादन बढ़ा है। यही सब कारण है कि आर्थिक विकास दर ने पिछले पांच वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है। यह 7.9 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है।

भारत का यह आर्थिक माहौल निवेशकों के लिए भी अनुकूल है। सरकार के निर्णय लेने की क्षमता तेजी से अनुकूलता बढ़ा रही है। भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था से निवेशकों का आकर्षण बढ़ रहा है। कारोबार में सहूलियत के लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि निकट भविष्य में भारत कारोबार में सहूलियत की रैकिंग में तेजी से ऊपर आएगा। वैसे भी सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से भारत को तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाला देश माना जा रहा है। ढांचागत विकास और ग्रामीण खर्च बढ़ने से विकास में तेजी आएगी। आठ कोर सेक्टरों में रिकार्ड उत्पादन बढ़ा है। ऐसे में सरकार के साथ बेहतर तालमेल रखने वाला कोई भी गवर्नर सफल होगा।

इधर, राजन के संप्रग सरकार वाले समय पर विचार करें, तो निराशा हाथ लगेगी। उस समय देश की अर्थव्यवस्था खराब दौर में थी। विश्व की पांच सर्वाधिक नाजुक अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारत की गिनती होने लगी थी। विदेशी निवेश लगभग बंद हो चुका था। आज जो चिदंबरम गवर्नर पद के लिए राजन को एकमात्र योग्य व्यक्ति मान रहे हैं वह अर्थव्यवस्था को सुधारने में विफल थे। आज भारत आर्थिक विकास दर में चीन को पछाड़ चुका है। नरेंद्र मोदी की नीतियों का यह परिणाम है। इसमें राजन की भूमिका सीमित रही। कर्ज न चुकाने वाले बड़े औद्योगिक घरानों के खिलाफ उनकी टिप्पणी सरकार के रुख के बाद ही दिखाई दी।

राजन प्रकरण पर कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए। एक तो देश में रिजर्व बैंक गवर्नर पद के लिए योग्य व उपयुक्त व्यक्तियों की कमी नहीं है। ऐसे कई आरोपों से घिर चुके, दूसरी पारी से उनका इन्कार उचित है। दूसरा राजन की नियुक्ति संप्रग सरकार ने की थी। उस सरकार पर वित्तीय स्थिति सुधारने में विफलता व घोटालों के आरोप थे। उसके द्वारा नियुक्त पदों पर जहां तक बदलाव संभव हो, होना चाहिए। तीसरा भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु जो कदम उठाए गए हैं, उसका श्रेय वर्तमान सरकार को मिलना चाहिए। यदि यह सरकार किसी को गवर्नर पद पर नियुक्त करती है तो बेहतर सामंजस्य बनेगा।
 

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