28 Mar 2024, 16:24:54 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- मृत्युंजय दीक्षित
-विश्लेषक


जब से कैराना से भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने कैराना में पलायन की पीड़ा को उजागर किया है और व्यापक पैमाने पर इस पर चर्चा प्रारंभ हो गई है तब से पता नहीं बिसाहड़ा कांड को लेकर सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता पर बहस करने वाले और पुरस्कार वापसी का नाटक करने वाले लोग कहां गायब हो गए हैं? इस विषय पर जानी मानी फिल्मी हस्तियां और साहित्यकार आदि मौन हैं।  कैराना  पलायन प्रकरण शायद इस प्रकार से जनता व देश के सामने न आता यदि सांसद हुकुम सिंह इस प्रकार से सक्रिय न होते।

यह अलग बात है कि कैराना और कांधला से हिंदू परिवारों के पलायन के कारणों की गहराई से जांच होगी तब सच्चाई सामने आ जाएगी, लेकिन आज प्रदेश में जिस प्रकार की असहिष्णुता की राजनीति खेली जा रही है और अपने - अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए भाजपा विरोधी दलों ने जिस प्रकार की भाषाशैली का प्रयोग किया है वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण, आपत्तिजनक व निंदनीय है। सबसे आपत्तिजनक भाषाशैली पश्चिमी उप्र  की राजनीति में वापसी का मार्ग खोज रहे रालोद नेता अजित सिंह की रही है, जिनको कहीं पर अपना ठौर नहीं दिखाई पड़ रहा है। यह वही अजित सिंह हैं जो अपना राजनैतिक भविष्य सुधारने के लिए भाजपा के साथ आने के लिए उतावले हुए जा रहे थे। बसपा नेत्री मायावती व समाजवादियों ने भी कभी दिल से यह नहीं कहा कि वहां पलायन हुआ है अपितु यह सभी दल भाजपा पर ही आरोप लगाते रहे।

कैराना व कांधला प्रकरण पर समाजवादी सरकार ने जिस प्रकार से रवैया अपना लिया है उसका असर आगामी विधानसभा चुनावों में अवश्य दिखलायी पड़ेगा। जब आईबी की टीम के कैराना पहुंचने की खबर आई और राष्ट्रीय मानवाधिकर आयोग ने सरकार से जवाब तलब कर लिया ,तब प्रदेश सरकार हरकत में आयी। कैराना व कांधला की पलायन की घटना को अब भाजपा व सभी हिंदू संगठनों ने हाथों हाथ ले लिया है। यही कारण है कि भाजपा विरोधी सभी दल एक सोची समझी साजिश के तहत विधानसभ चुनावों के पहले प्रदेश में दंगे कराने की साजिश रच रही है। वहीं प्रदेश सरकार के मंत्रीगण तो अभी से कहने लग गए हंै कि भाजपा ने 2014 क लोकसभा चुनावों में जो वायदे किए थे वह पूरे करने  में नाकाम रही है इसलिए मतों का धु्रवीकरण कराकर तथा जनता का ध्यान बंटाकर वह फिर से सत्ता में आने  सपना देख रही है। भाजपा विरोधियों का मत है कि लोकसभा चुनावों के पहले मुजफ्फरनगर दंगों का पूरा लाभ भाजपा ने उठाया अब वहीं विधानसभा चुनावों के पहले  कैराना के बहाने करना चाह रही है।

बसपा नेत्री  मायावती यह तो मान रही हैं कि कैराना में पलायन हुआ है, लेकिन वह अपराधी तत्वों की गुंडागर्दी के कारण हुआ है, बाकी सब भाजपा अफवाह फैला रही है दंगों की साजिश रच रही है। एक प्रकार से इस मामले में भाजपा व हिंदू  संगठनों को छोड़कर सभी दल पूरी ताकत के साथ सत्य को छुपाने का प्रयास कर रहे हैं और मुस्लिम तुष्टीकरण पूरी बेशर्मी के साथ कर रहे हैं। सपा सरकार को अब किसी भी मामले की जांच में सीबीआई पर भरोसा नहीं रह गया है। साफ है कि चोर की दाढ़ी में तिनका जरूर है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश के भाजपा सांसदों व नेताओं ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग प्रारंभ कर दी है। प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक से रिपोर्ट मांगी गई है। बसपा नेत्री मायावती तो हर क्षण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर रही है, लेकिन उत्तराखंड में मात खा चुकी भाजपा फिलहाल ऐसी कोई हरकत नहीं करने जा रही है। अभी वह और इंतजार करेगी।

फिलहाल आजकल मीडिया जगत में कैराना व कांधला छा गया है। पश्चिमी उप्र का कैराना का ऐतिहासिक महत्व है। कैराना की धरती को महाभारत काल के दानवीर कर्ण की  जन्मभूमि माना गया है। किसी जमाने में पश्चिमी उप्र में कैराना कैराना भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए जाना जाता था, जिसकी स्थापना  महान गायक अब्दुल करीम खां ने की थी। माना जाता है कि एक बार महान संगीतकार मन्ना डे जब किसी काम से कैराना गए थे तब इसी कैराना की धरती पर उतरने पर सम्मान करने के लिए अपने जूते उतारकर हाथ में ले लिए थे और कहा था कि कैराना की धरती महान संगीतज्ञों की धरती है, हम उसका सम्मान करते हैं। भारतरत्न से सम्मानित भीमसेन जोशी का संबंध भी कैराना की धरती से रहा है,  लेकिन आज यही कैराना वीरान सा हो गया है। कहा जा रहा है कि  1990 में यहां पर हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत थी जो अब घटकर  मात्र आठ प्रतिशत रह गई है। आखिर यह सब कैसे संभव हुआ? वहां से जो खबरें छनकर सामने आ रही है कि उससे संकेत मिल रहे हैं कि कश्मीर घाटी में 1990 में जो कुछ हिंदुओें के साथ हुआ वहीं अब 2016 में कैराना व आसपास के इलाकों में हो रहा है। यही कारण है कि समस्त हिंदूवादी संगठन और भाजपा तेजी से सक्रिय हो गए हैं। कैराना की घटनाएं व्यापक पैमाने पर छप रही हैं, लेकिन प्रशासन मौन है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि  यहां पर धर्मविशेष से जुड़े बड़े अपराधियों व गुंडों आदि का जबरदस्त आतंक है।

उत्तरप्रदेश में कैराना के अलावा कई शहर व कस्बे ऐसे हैं जहां से हिंदुआें का पलायन काफी तेजी से हो रहा है। कैराना, कांधला व गंगोह के अलावा पश्चिमी उप्र के कई हिस्सों का बुरा हाल हो रहा है। इसी स्थिति को देखते हुए पूर्व राज्यपाल राजेश्वर राव ने चेतावनी दी थी कि प्रदेश में कई पाकिस्तान पनपते हुए दिखाई दे रहे हैं। आज यह दुर्भाग्यपूर्ण हालात निश्चय ही मुस्लिम तुष्टीकरण और विकृत मानसिकता की राजनीति का ही परिणाम है। अगर अभी पूरी निष्पक्षता के साथ इस प्रकरण का समाधान नहीं किया गया तो आगे आने वाला चुनाव समाजवादियों और बसपाइयों के लिए वाटरलू साबित हो सकता है। इस प्रकार की सभी समस्याओं का अंत तभी हो सकता है, जब प्रशासन पूरी तरह से निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ अपना काम करे। इसके बाद ही विकास की गंगा बहेगी और जनता को उचित न्याय मिल सकेगा। 

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