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समुद्र में भी आतंकवाद को कुचलना होगा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 23 2016 10:37AM | Updated Date: Jun 23 2016 10:37AM
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-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक


देश की 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। त्रिस्तरीय तटीय सुरक्षा ढांचा काम कर रहा है, जिसमें राज्यों की समुद्री पुलिस, तटरक्षक दल और भारतीय नौसेना शामिल है। समुद्री पुलिस को प्रशिक्षित करने के लिए गुजरात में नेशनल मरीन पुलिस ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की स्थापना एवं राज्यों तथा केंद्र शासित पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों में यह व्यवस्था शुरू करने पर सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। समुद्री रास्ते से मुंबई पर हुए हमले के आठ वर्ष बाद भी केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को लगता है कि समुद्री मार्ग से ऐसे हमलों का खतरा टला नहीं है। हमारी तटीय सुरक्षा की कमजोरी पहली बार 1993 में सामने आई थी जब तस्करी करके हथियार रायगढ़ के तटों पर पहुंचाए गए। उनका इस्तेमाल 12 मार्च, 1993 को मुंबई में सिलसिलेवार विस्फोटों में हुआ। दूसरी बार हमारे तटों की सुरक्षा को 26 नवंबर, 2008 को भेदा गया, जब समुद्री मार्ग से अजमल कसाब समेत दस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने घुसकर मुंबई पर हमला किया था।

गृहमंत्री का कहना सही है कि हमें अपनी तटीय सुरक्षा को पूरी तरह चाक- चौबंद बनाने की जरूरत है। अब भी कभी-कभी समुद्र में संदिग्ध नौका नजर आती है तो तटरक्षक दल सतर्क हो जाता है। मुंबई हमले के बाद पाकिस्तानी आतंक का खौफ बढ़ गया था। गुजरात के पोरबंदर तट से मछुआरे केवल छोटी नौकाओं को लेकर पोरबंदर के निकट ही मछली मारने लगे थे। अब भी पाकिस्तानी भेदी टाइम बोर्ड के लोग भारतीय मछुआरों को पकड़कर जेलों में डाल देते हैं, बाद में उन्हें छोड़ा जाता है। इसी वर्ष मार्च में जब खुफिया एजेंसियों ने यह खबर दी थी कि समंदर की उफनती लहरों पर सवार होकर सरहद पार से आठ से दस आतंकी गुजरात में घुसपैठ कर चुके हैं, उनका मकसद देवों के देव महादेव के पर्व शिवरात्रि के जश्न में खलल डालना है, तो पूरे गुजरात को किले में तब्दील कर दिया गया था। दिल्ली से तब एनएसजी की चार टीमें गुजरात पहुंची थीं। जिसमें तीन टीमें अहमदाबाद में, एक टीम सोमनाथ में तैनात की गई थी। बार-बार खुफिया एजेंसियां इनपुट देती हैं, तब-तब समुद्र में तटरक्षक और मरीन की गश्त बढ़ाई जाती है। पानी के आतंक की दुनिया केवल तटों तक सीमित नहीं बल्कि इसका दायरा काफी बड़ा है। जल दस्युओं का आतंक भारत समेत विश्व के सभी बड़े देशों के लिए चिंता का विषय बना रहा है। अदन की खाड़ी में जल दस्युओं के आतंक ने जलमार्ग से होने वाले व्यापार और यहां से गुजरने वाले जहाजों को बुरी तरह प्रभावित किया था। इनसे निपटने के लिए भारत और बाकी देशों की नेवी ने अपने युद्धक जहाज अदन की खाड़ी में तैनात किए थे। जल दस्युओं के आतंक की शुरुआत तब हुई थी जब एनबी स्टोल्ट वेलर का अपहरण किया गया। ये एक केमिकल फाइवरशिप था जिस पर 22 लोग सवार थे उनमें से 18 भारतीय थे। अरब सागर में इंडियन नेवी ने गश्त में मदद देकर काफी हद तक जल दस्युओं के आतंक पर काबू पा लिया है। जल दस्युओं की मालवाहक जहाजों का अपहरण कर फिरौती वसूलने की कई कोशिशें भारत ने नाकाम की हैं। भारत को अपनी तटीय सुरक्षा को अभेद्य बनाने की जरूरत है।

यह अच्छी बात है कि सरकार सभी छोटे-बड़े बंदरगाहों का सुरक्षा आॅडिट करा रही है और सुरक्षा की दृष्टि से असुरक्षित बिंदुओं की पहचान कर रही है। अब सरकार रडार और स्वचालित पहचान प्रणाली (एआईएस) रिसीवर शृंखला लगा रही है। महाराष्ट्र सरकार ने तो मछुआरों को बायोमैट्रिक कार्ड जारी करने और सामुदायिक निगरानी का काम शुरू किया है। समुद्री निगरानी एक विशेषज्ञ कार्य है, ऐसे में समुद्र तटों, बंदरगाहों और महत्वपूर्ण संस्थाओं की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय समुद्री पुलिस बल सृजित करने का सुझाव भी आया है। अब क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सागरमाला जैसी परियोजना के जरिए बंदरगाह आधारित विकास पर जोर दिया है। इसलिए जरूरी है कि तटीय सुरक्षा को अगले स्तर तक बढ़ाया जाए। भारत को जल में, नभ में और जमीन पर अपनी सुरक्षा तंत्र को पुख्ता बनाना होगा ताकि देशवासी सुरक्षित रहें। सुरक्षित होने के विश्वास से ही आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी और देश का विकास होगा।

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