-ऋतुपर्ण दवे
बहुआयामी प्रतिभा के धनी, विचारक, भविष्य दृष्टा, युग पुरुष और भी जितनी उपाधियां, अलंकरण, मुहावरे हैं, सब कम पड़ेंगे, उनकी क्षमता, परख और विद्वता को मापने में। ऐसे विरले लेकिन सहज, विनम्र इंसान थे पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास। जानने वाले इन्हें प्रख्यात विद्वान, इतिहासकार, व्यंगकार, लेखक-पत्रकार के रूप में जानते हों, लेकिन इन पर डाक टिकट जारी करते हुए 2 जून 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था ‘जहां तक व्यासजी का प्रश्न है, ज्ञान और कर्म दोनों का अपूर्व समन्वय था। पंडित सूर्यनारायण व्यास का अभिनंदन मालवा भूमि के समस्त सांस्कृतिक अनुष्ठानों का अभिनंदन है। व्यासजी स्वाभिमानी थे। सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए उनके चिंतन में एक स्पष्टता थी। बोल्शेविक क्रांति से उन्होंने विचारों में बाराखड़ी शुरू की थी, लेकिन उनके जीवन के अंत में वो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता प्रस्तुत हो रहे हैं।’
मध्यप्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में 2 मार्च 1902 को जन्मे पं. व्यास ने एक परंपरा का पालन करते हुए विश्वविद्यालय ही बनाकर स्थापित कर दिया। सांदीपनी परंपरा के सूर्यनारायण व्यास के बारे में अनेक किंवदंतियां, कथाएं, कुछ ऐतिहासिक सत्य व तथ्य भी हैं। वे दोनों हाथों से एक समय में एक साथ लिखते। एक हाथ से व्याकरण तो दूसरे से ज्योतिष के बारे में लिखना, विलक्षण क्षमता थी। वे इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, क्रांतिकारी के साथ विक्रम पत्र के संपादक भी रहे। आप विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर, कालिदास परिषद के संस्थापक और अखिल भारतीय कालिदास समारोह के जनक भी हैं। ज्योतिष और खगोल के आप अपने जमाने के सर्वोच्च विद्वान थे। यही कारण था कि तबके लगभग सभी शीर्षस्थ राजनेता उन्हें बहुत सम्मान देते थे। 1947 में जब ये सुनिश्चित हो गया था कि अंग्रेज भारत छोड़ने को तैयार हैं तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गोस्वामी गणेशदत्त महाराज के माध्यम से उन्हें बुलवाया। उन्होंने पंचांग देखकर भारत की कुंडली बनाई और बताया कि आजादी के लिए मात्र दो दिन ही शुभ हैं 14 और 15 अगस्त। स्वतंत्रता के लिए मध्यरात्रि 12 बजे यानी तबके स्थिर लग्न का समय सुझाया। उनका मानना था कि इससे लोकतंत्र स्थिर रहेगा। इतना ही नहीं पं. व्यास के कहने पर स्वतंत्रता के बाद देर रात संसद को धोया गया, बाद में बताए मुहुर्त अनुसार गोस्वामी गिरधारीलाल ने संसद की शुद्धि भी करवाई। उसी समय उन्होंने ये संकेत दे दिए थे कि 1990 के बाद ही देश की प्रगति होगी और 2020 तक भारत विश्व का सिरमौर बन जाएगा। यह सब सच होता दिख भी रहा है। यकीनन भारतीय दर्शन, काल एवं खगोल गणना ने दुनियाभर में अपना परचम लहराया है। शायद यही कारण है कि पं. सूर्यनारायण व्यास जैसे मनीषियों ने इस विद्या के माध्यम से दुनियाभर में भारत की एक अलग और प्रभावी छवि बनाई है।
पं. व्यास इन सबसे बढ़कर क्रांतिकारी और देशभक्त थे, बालगंगाधर तिलक की जीवनी का अनुवाद करते हुए क्रांतिकारी बने जबकि वीर सावरकर का साहित्य पढ़ते हुए अंडमान की गूंज ने बेहद प्रभावित किया। 1930 में ‘अजमेर सत्याग्रह’ में पिकेटिंग करने भी गए और उज्जैन के जत्थों का नेतृत्व किया। अजमेर में लॉर्ड मेयो के स्टेचू को सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर तोड़ा ही नहीं, एक टूटा हाथ बरसों तक उज्जैन में अपने निवास भारती भवन में रख अंग्रेजों को चेताते भी रहे। 1942 में एक गुप्त रेडियो स्टेशन भी चलाया। मात्र 40 वर्ष की आयु में उन्होंने 1942 में विक्रम द्विसहस्त्राब्दी समारोह की परिकल्पना की। राजा विक्रमादित्य की जानकारी और विक्रम संवत् के प्रचार प्रसार हेतु ‘विक्रम’ पत्र का प्रकाशन शुरू किया था। आप एक बेहद सटीक और लोकप्रिय पंचांग भी प्रकाशित करते थे जो उज्जैन में सेंट्रल इंडिया का उस समय के सबसे बड़े ‘विक्रम प्रेस’ से प्रकाशित होता था। इसमें तब 400 कर्मचारी कार्यरत थे। उनकी दूरदृष्टि का आभास इसी से होता है, जब विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही थी, तब इसका नाम पं. सूर्यनारायण व्यास विश्वविद्यालय भी हो सकता था, लेकिन उन्होने भारतीयों के सुप्त स्वाभिमान जगाने, विक्रम के नाम पर रखा। पं. व्यास की सच साबित हुई भविष्यवाणियों में सबसे चर्चित लालबहादुर शास्त्री के ताशकंद जाने से पहले ही एक लेख में कर साफ कर दिया था कि वे जीवित नहीं लौटेंगे। यह बात शास्त्रीजी तक भी पहुंची थी लेकिन उन्होंने हंसकर टाल दिया। इसी तरह 7 दिसंबर 1950 को एक समाचार पत्र में उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्वास्थ्य पर चिंता जताते हुए 17 दिसंबर तक के समय को कठिन बताया था और 16 दिसंबर को आधी रात सरदार पटेल की मृत्यु हो गई।
विलक्षण ज्योतिषीय ज्ञान, काल गणना खगोल शास्त्र की क्षमता इसी से सिद्ध होती है कि 1932 में ही एक अंग्रेजी अखबार में भूकंप पर लेख लिखते हुए भविष्य में आने वाले 300 भूकंपों की सूची प्रकाशित कर दी थी जो कि समय के साथ सच साबित होते रहे। इसी तरह महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, इंंिदरा गांधी सहित कई लोगों के बारे सटीक भविष्यवाणियां काफी पहले कर दी थीं, यहां तक कि स्वयं की मृत्यु को लेकर एक लेख भी लिखा था। 22 जून 1976 को मृत्यु हुई। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें किस रूप में याद किया जाए, अनेक गुणों के इस विद्वान को मानव के बजाय महामानव कहना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।