20 Apr 2024, 09:02:45 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

एक जमाना बीत गया है जब प्राय: मांएं यह धमकी भरा वाक्य बोलटी थीं। शाम को खेलकर देर से घर में घुसो या आस-पड़ोस के बच्चों के साथ किसी शरारत में शामिल हो जाओ या उनसे कोई झगड़ा कर लो- उसकी शिकायत मां तक पहुंची नहीं कि मां के मुंह से यह ब्रह्म वाक्य निकल पड़ता था- आने दो तुम्हारे बाबूजी को...। यह वाक्य केवल बाहर से आने वाली शिकायतों पर ही नहीं, बल्कि जब घर में भी भाई, बहनों के परस्पर झगड़े टंटों को लेकर मां इस वाक्य को जहर उढालती। हालांकि कई बार बाबूजी के आने से पहले वह बच्चों की ठुकाई-पिटाई कर चुकी होतीं, पर उन्हें लगता कि यह दंड देने के लिए पर्याप्त नहीं हो पाई है और तब उनकी यह धमकी सुनाई पड़ती। इसका अच्छा-खासा असर होता। प्राय: मां बाबूजी तक बात नहीं पहुंचाती थीं पर, यह भी बच्चों को पता होता कि जिस दिन भी अति परेशान होकर मां शिकायत कर देती थीं उस दिन भीतर-भीतर बहुत भय समाया रहता। बाबूजी ने शायद ही कभी हाथ उठाया हो पर, उनके सामने आना और उनसे कुछ वाक्य सुनना गाल पर पड़ने वाले तमाचों से भी बढ़कर पीड़ा पहुंचाता था।

यह भी एक और बड़ा सच था कि घर के बेटों की शिकायत तो बाबूजी से होती और उनकी डांट भी सहना पड़ती थी पर, घर की बेटी पर बाबूजी कभी गुस्सा नहीं करते और न ही उन्हें कभी कुछ कहते बल्कि घर में घुसते ही पहली आवाज वह घर की बेटी को ही लगाते। फादर्स-डे बीत गया है और उस गुजरे हुए समय की बात भी बीत गई है। फादर्स डे पर खूबसूरत कार्ड्स देकर अपनी भावनाएं प्रकट करने का दिन भी बीत गया है पर, क्या एक कार्ड में अपने पिता के लिए सब कुछ कहा जा सकता है? आज ‘बाबूजी’ पापा हो गए हैं या और आधुनिकता दिखाने के लिए ‘डैड’ भी हो गए हैं, पर भावनाओं का जो ज्वार ‘बाबूजी’  के साथ उठता था उसकी लहरों का उछाल भी उतना नहीं उठ पा रहा पर, ‘पापा’ की छवि मौजूद है। पापा के साथ रिश्ता दूर नहीं लगता। अपनी इच्छाओं और कामनाओं के द्वार की कुंजी अब पापा या डैड के पास है। लैपटॉप, मोबाइल और बाइक सभी कुछ देने के स्त्रोत अब पापा हो गए हैं। यहां तक कि पापा की उदारता इतनी बढ़ गई है कि नवधनाढ्य घरों में तो वह अपने अवयस्क बच्चों के हाथ चार पहिया वाहन की चाबियां तक सौंप देते हैं और जब उनके लाड़ले कोई दुर्घटना कर देते हैं तो वह उसके कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं-फिक्र नॉट बेटा।

अपनी दूर तक पहुंच है, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। पापा और बच्चे दोनों अपनी भूमिका भूल रहे हैं। माना कि पापा ने अपने कंधे बहुत मजबूत कर लिए हैं और वह भी केवल इसलिए कि वह अपने बच्चों को कोई कमी महसूस न होने दें। पापा के लिए यह भी आवश्यक है कि बच्चों की शिक्षा के प्रति सजग व सचेत हों। वह उनके मन में सफल भविष्य के सपनों का संसार भी रचें। उनसे जीवन में बेहतर करने के अवसर देने के लिए उनके सहायक बनें। पर, इसमें कहां यह शामिल हो जाता है कि बच्चों के ‘डैड’ उन्हें जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों के प्रति सजग करने की बातें न करें। उनसे संवाद करें, उन्हें एक श्रेष्ठ मानव बनने के बारे में न बताएं। यदि एक सफल भविष्य का सपना उनके मन में बनने के बारे में न बताएं। यदि एक सफल भविष्य का सपना उनके मन में जगाया है तो साथ-साथ यह भी बताएं कि इसका कोई शॉर्टकट नहीं होता। इस पर सुदृढ़ कदम रखकर ही इसे पाया जा सकता है। फादर्स डे कोई एक दिन का सेलिब्रेशन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा गुरुत्तर उत्तरादायित्व है जो ‘फादर’ होने की पात्रता सिद्ध करता है।

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