20 Apr 2024, 10:34:05 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

तीन-चार दिन पहले एक समाचार टीवी चैनल्स पर बहुत दोहराया जा रहा था। दिल्ली के व्यस्त चौराहे से एक युवती का अपहरण कर लिया गया। उसके बाद उसके साथ जो होना था हुआ। उसके बाद उसे सड़क किनारे फेंककर कार अपने रास्ते पर तेजी से दौड़ गई। युवती को इस स्थिति में सड़क पर आने-जाने वालों ने देखा। उसकी सहायता की और बाद में वही प्रक्रिया प्रारंभ हो गई जो ऐसी दुर्घटनाओं में प्राय: अपनाई जाती है।

क्या यह पहली और इकलौती घटना है? क्या अब ऐसी घटनाओं को पढ़कर कंपकंपी छूटती है और मन में यह प्रश्न उठने लगते हैं कि समाज में ऐसा क्यों हो रहा है? इन प्रश्नों के उत्तर यही हैं कि हां! वास्तव में अब भी ऐसी घटनाएं झकझोर देती हैं और हां! अब भी ऐसे प्रश्न उठते हैं कि यह घटनाएं क्यों हो रही हैं? पहली बात तो यही उठती है कि क्या कामंधता इतनी बढ़ गई है कि चलती कार में ही तीन-चार लोग किसी निरीह युवती के साथ ऐसी अशिष्टता करने का सोच भी सकते हैं? यदि मनुष्यों को दी गई बुद्धि और विचार शक्ति के बारे में बात की जाए तो लगता है कि ऐसा तो संभव नहीं हो सकता? आए दिन कारों, बसों में या अन्य यहां तक किसी ऐसे स्थान पर जहां इस तरह का व्यवहार करने की कोई गुंजाइश ही न हो और इसके बावजूद भी काम भावना की ऐसी उत्तेजना प्रकट की जाए-लगभग असंभव व्यवहार लगता है। क्या मनुष्य या व्यक्ति अपनी सुध-बुध खो बैठे हैं। उनकी मानसिकता इतनी निम्न स्तरीय हो गई है कि वह पशुओं से भी गया बीता व्यवहार करने लगे हैं। काम तुष्टि व्यक्तिगत होती है। यह सार्वजनिक (तीन-चार लोगों की उपस्थिति में) कैसे संभव है?

हमारे यहां धर्म, अर्थ और इसके साथ-साथ काम को भी बहुत महत्व दिया गया है। वात्सायन जैसे चिंतक और महीषी ने काम की इतनी व्याख्या की। यह मनुष्य प्रकृति का अभिन्न अंग है और धर्म व अर्थ की भांति काम भी एक कर्म है, जिसे अन्य कार्मों की भांति एक निश्चित अनुशासन में और एक सुव्यवस्थित ढंग से किया जाना चाहिए। उसका एक उदे्दश्य है समाज में परिवारों को गढ़ना और एक स्वस्थ, पुष्ट और उच्च संस्कारित विचारों से संपन्न संतान को जन्म देना और उसे शुभ कार्यों के लिए प्रेरित करना जिस समाज के चिंतकों ने काम पूर्ति का लक्ष्य और उद्देश्य निर्धारित किया हो वहां ऐसी अशिष्टता कैसे की जा सकती है।

चलती कार या बस में अथवा अन्य किसी निर्जन स्थान में एकाएक किसी युवती को देखकर या पाकर उसका सम्मान खंड-खंड करना कामंधता है। किसी बच्ची अथवा किसी महिला को अकेले पाकर उसे अपनी कामेच्छा की निम्न मानसिकता  का शिकार बनाना एक रोगग्रस्त मानसिकता है। यहां तक कि तीन-चार लोग सामूहिक रूप से यह धृतकर्म करें तो और भी निंदनीय है। ऐसा लगता है कि इस निकृष्ट व्यवहार के पीछे महिलाओं के प्रति कहीं न कहीं दुर्भावना काम कर रही है। सामान्य व स्वस्थ विचारों वाला व्यक्ति ऐसा व्यवहार कभी नहीं कर सकता, सामूहिक रूप से कभी भी नहीं। इस दुर्व्यवहार का अर्थ ही महिलाओं के आदर व सम्मान को व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से रौंदना है, उसे तार-तार करना है। कोशिश की जाए पुरुषों की इस कुत्सित मानसिकता को बदला जाए।

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