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भाषा की मर्यादा और हमारे प्रधानमंत्री

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 17 2016 10:54AM | Updated Date: Jun 17 2016 10:54AM
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-राजीव रंजन तिवारी
- समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


बेशक, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत अच्छे वक्ता हैं। उनकी बातचीत, चाल-ढाल, रहन-सहन सब कुछ सर्वोत्तम है।  किन्तु उनके समर्थक जब उनके गुणों की बखान करते हैं तो यह पहले नम्बर होता है कि वे  बहुत अच्छा बोलते हैं।  लच्छेदार और पब्लिक को बांधकर रखने वाले कर्णप्रिय शब्दों का चयन मोदी द्वारा बेहद सावधानीपूर्वक किया जाता है। बावजूद इसके जब उनकी वाणी फिसलती है तो थोड़ा अटपटा लगता है। जरा बंगाल और बिहार के चुनाव प्रचार अभियान को याद कीजिए। उस दौरान चुनावी सभाओं में अपने भाषण के दौरान शायद वे यह भूल जाते थे कि वे केवल भाजपा के नेता ही नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री भी हैं। बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान उनकी फिसलती जुबान ने पता नहीं क्या-क्या कह दिया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह कहना पड़ा कि प्रधानमंत्री (मोदी) को अपनी पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहां मानने वाले हैं। वो तो ओवर कांफिडेंस में बोलते चले जाते हैं और क्या-क्या बोल जाते हैं, पता नहीं उस पर बाद में विचार भी करते हैं या नहीं?  दरअसल, प्रसंग देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है। पिछले दिनों संगम नगरी इलाहाबाद में हुई भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक के समापन भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील की कि वे इस बार यूपी में भाजपा की सरकार बनवाएं।

इसी क्रम में यहां तक कह दिया कि यदि सरकार ठीक से काम नहीं करेगी तो लात मारकर भगा दीजिएगा। प्रधानमंत्री की यह लात वाली बात ही कुछ जमी नहीं। गौरतलब है कि डेढ़ माह पूर्व बंगाल की एक रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को आतंक, हत्या और भ्रष्टाचार जैसे शब्दों से नवाजा था। उसके बाद ममता बनर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री आरएसएस कार्यकर्ता की तरह बात करते हैं। ममता ने कहा कि वो किसी के खिलाफ निजी आरोप नहीं लगाती हैं और प्रधानमंत्री को इसका जवाब देना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बड़ी-बड़ी बातें करना आसान है लेकिन उन बातों पर अमल करना मुश्किल होता है। ममता ने कहा कि जो बात प्रधानमंत्री ने कही वो बातें उठाने में शर्म आती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को संघ के कार्यकर्ता की तरह बात नहीं करना चाहिए। आज तक उन्होंने अटल जी, सोनिया जी और ज्योति बाबू के बारे में ऐसा कुछ नहीं बोला। राजनीतिक बातें अलग होती हैं और निजी बातें अलग। ममता ने प्रधानमंत्री को चुनौती देते हुए कहा कि यह एक अमर्यादित भाषा है और इस पर शर्म करना चाहिए। ममता बनर्जी की पीएम को नसीहत भाषायी मुद्दे पर ही था। कुछ इसी तरह की बातें मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी कही थी। बिहार की एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के डीएनए को ही गड़बड़ बता दिया था। इस पर खासा बवाल हुआ। जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगे। आखिरकार बिहार हो या बंगाल दोनों राज्यों से भाजपा को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। अब यूपी चुनाव की तैयारी है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इलाहाबाद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए चुनावी बिगुल फूंक कर भाजपा के यूपी मिशन की शुरूआत कर दी। पीएम मोदी ने राज्य की समाजवादी पार्टी की सरकार पर जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाई-भतीजावाद और गुंडागर्दी को बढ़ावा देने और मायावती की पार्टी बसपा पर सत्ता में रहने के दौरान भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मायावती सरकार में मुलायम सिंह भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे, लेकिन पांच साल होने वाले हैं लेकिन अब तक कुछ नहीं किया। ऐसा ही मायावती कर रही हैं, रोज आरोप लगा रही हैं, लेकिन जब सत्ता में आएंगी तो कुछ नहीं करेंगी। मोदी ने कहा, जब तक उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की पांच-पांच साल लूट करने की ठेकेदारी बंद नहीं होगी यूपी का भला नहीं होगा। लेकिन समस्या यह है कि जब लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए उतरे थे, तब वे मतदाताओं से किसी भी किस्म का वादा करने के लिए स्वतंत्र थे, और उन्होंने वादे करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी। विदेशों से काला धन वापस लाकर हर देशवासी की जेब में 15 लाख रुपए डालने का वादा, भ्रष्टाचार मिटाने और एक ऐसी साफ-सुथरी पारदर्शी सरकार देने का वादा जो तेजी के साथ देश की अर्थव्यवस्था का विकास कर सकें।  उत्तर प्रदेश का चुनाव आते-आते मोदी सरकार के कार्यकाल के भी लगभग तीन वर्ष पूरे होने वाले होंगे और उनकी सरकार का तीन वर्षों का रिकॉर्ड भी मतदाता के सामने होगा।  कीमतों में वृद्धि भी मतदाता के उत्साह को कम करेंगी। इस मोहभंग का सामना करने के लिए भाजपा उन मुद्दों को उछालेगी जिनसे भावनात्मक आवेश और आक्रोश उत्पन्न हो ताकि लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटा जा सके। इसमें राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की मौन सहमति भी उसके साथ है क्योंकि समाजवादी पार्टी को यह गलतफहमी है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति में उसे भी फायदा होगा क्योंकि सुरक्षा की तलाश में मुसलमान उसकी शरण में आएंगे। इलाहाबाद में भाजपा ने तय किया है कि फिलहाल वह मुख्यमंत्री पद के लिए किसी को अपना उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह के कार्यकाल की तारीफ करके स्पष्ट संकेत दिया है कि इनमें से किसी को फिर से मौका दिया जा सकता है।  यूपी चुनाव में कांग्रेस छुपा रुस्तम साबित हो सकती है। अपनी पारंपरिक चुनावी रणनीति में बदलाव लाते हुए कांग्रेस पार्टी दलित और अन्य पिछड़ी जातियों से किनारा कर इस बार पूरी तरह ब्राह्मण और ठाकुर वोटों को लामबंद करने जा रही है। बहरहाल, चुनाव परिणाम जो हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पद की गरिमा के अनुरूप शब्दों का चयन करना चाहिए।

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