-आर.के. सिन्हा
राज्यसभा सदस्य
संभव है कि नई पीढ़ी ने 1953 में आई बिमल राय निर्देशित कालजयी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ को न देखा हो। दो बीघा जमीन में नायक के रूप में बलराज साहनी की अभिनय कला उच्चतम शिखर तक पहुंची थी। इसमें उन्होंने कोलकाता में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा चालक के चरित्र का गहन, अति मार्मिक और यथार्थ चित्रण किया था। जब भी देश में रिक्शा चालकों के जीवन को बेहतर बनाने को लेकर कोई पहल शुरू होती है तो बलराज साहनी का दो बीघा जमीन में निभाया गया उसका संवेदनात्मक रोल याद आ जाता है।
गांधीजी ने कहा था कि जब तक हमारे देश में मानव को मानव ढोता रहेगा, हम यह कैसे कहेंगे कि स्वराज आ गया। पिछले 65 वर्षों में तो गांधीजी के नाम पर वोट बटोरकर सत्ता की गद्दी पर बैठने वालों को रिक्शेवालों की सुध नहीं आई। अब लगता है कि देश के लाखों रिक्शा चालकों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव की बयार बहने वाली है। अब उन्हें तपती दोपहरी, कड़ाके की सर्दी या फिर बारिश में दम लगाकर रिक्शा खींचने से मुक्ति मिलने वाली है। वे अब रिक्शा के स्थान पर ई-रिक्शा चलाने लगेंगे। ई-रिक्शा चलाने से उनकी आय भी बढ़ेगी और उन्हें कष्टकारी कार्य से राहत भी मिल जाएगी। सरकार इस लिहाज से वास्तव में बहुत गंभीर है। पिछले दिनों केंद्रीय भूतल परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी बता रहे थे कि भारत में लगभग एक करोड़ लोग मानव होते हुए भी मानव को ढोने का कार्य करते हैं, यानी की रिक्शा या ठेला खींचते हैं। भारत का वह स्वर्णिम दिन होगा, जबकि मानव द्वारा मानव का बोझ उठाना बंद हो जाएगा। इलेक्ट्रिक रिक्शा द्वारा आजादी के लगभग 70 वर्ष बाद यह सपना साकार होता दीख रहा है।
सरकार की चाहत है कि अगले चार-पांच वर्षों में देश में मानव द्वारा मानव या सीमेंट, अनाज या आलू-प्याज की बोरी का बोझ उठाना इतिहास की बात हो जाए। सरकार की योजना सही तरीके से चली और इसमें कोई अवरोध नहीं आया, तो इस योजना से लगभग एक करोड़ लोग लाभान्वित होंगे। यह कोई छोटी बात नहीं है। जब कोई रिक्शा चलाता है तो कभी उसके चेहरे के भाव तो देखा कीजिए। तब समझ आता है कि वो शख्स कितना कठिन कार्य कर रहा है, सिर्फ अपनी और अपने परिवार की दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए। जैसा कि दो बीघा जमीन में दिखाया गया था कि बलराज साहनी, जो उस फिल्म में शंभू महतो नाम के रिक्शा चालक का किरदार निभा रहे थे, दिन-रात मेहनत इसलिए कर रहे थे ताकि वह गांव में गिरवी पर रखी हुई अपनी दो बीघा जमीन को पैसे वापस कर जमींदार से छुड़वा ले।
बिहार में अब भी हजारों रिक्शा चलाने वाले अपनी छोटी-मोटी जमीन को जमींदारों या साहूकारों से छुड़ाने के लिए देश के तमाम शहरों में ‘शम्भू महतो’ बनकर रिक्शा चला रहे हैं। अब महतो जैसे असहाय और निरीह रिक्शा चालकों की दारुण-कथा गुजरे जमाने की बातें होने जा रही है। केंद्र सरकार इन सबकी जिंदगी को राज्य सरकारों के सहयोग से सुधारने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नव-उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए ‘स्टैंड अप इंडिया’ स्कीम लॉन्च की। नोएडा में इस स्कीम की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने 5100 ई-रिक्शा बांटने का ऐलान भी किया। ये ई-रिक्शा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत भारतीय माइक्रो क्रेडिट की ओर से प्रदान किए जाएंगे। जिन लोगों को ई-रिक्शा मिलेगा वे प्रधानमंत्री जनधन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना और अटल पेंशन योजना के तहत कवर भी किए जाएंगे। यानी कि ई-रिक्शा लेने वालों को भरपूर लोन मिलेगा और बीमा कवर भी। साथ ही अन्य ईंधन वाहनों की अपेक्षा यह काफी किफायती भी है। इसका एक फायदा ये भी है की जहां परंपरागत रिक्शाओं में इंसान ही इंसान को ढोता है, उस से भी छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा, परंपरागत रिक्शाओं में सिर्फ दो लोगों के बैठने की जगह रहती है, जबकि ई-रिक्शा में एक बार में पांच-छह सवारियां बैठ जाती हैं। केंद्र सरकार ई-रिक्शा चलाने के नियमों को पहले ही अधिसूचित कर चुकी है। इसमें ‘ड्राइविंग लाइसेंस’ को अनिवार्य बनाया गया है और इसकी अधिकतम सीमा 25 किमी प्रति घंटे की तय की गई है। सरकार ने केंद्रीय मोटर वाहन (16वें संशोधन) कानून, 2014 को अधिसूचित किया है जो ‘विशेष उद्देश्यीय बैटरी परिचालित वाहनों’ को चलाने के मार्ग को प्रशस्त करता है। नए कानून में व्यवस्था है कि ई-रिक्शा परचार यात्रियों को बिठाने के अतिरिक्त 40 किलोग्राम के सामान ले जाया जा सकेगा। अच्छी बात ये है कि अब दिल्ली-एनसीआर, इंदौर, जमशेदपुर समेत देश के तमाम शहरों में ई-रिक्शा तेजी से अपनी दस्तक दे रहे हैं। मध्यप्रदेश के कई शहरों में ई-रिक्शा को महिलाएं भी चला रही हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इससे वे स्वावलंबी होंगी। इनमें बहुत सी मुस्लिम महिलाएं भी हैं। मध्य प्रदेश में ई-रिक्शा लेने पर मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत चालक को 45 हजार रुपए की सब्सिडी भी मिलती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अब ई- रिक्शा का वक्त आ गया है। इसे चलाना अपने आप में सामान्य कार्य है। यह अब परंपरागत रिक्शा का स्थान लेने जा रहा है। यानी अब आपको-हमको आने वाले दौर में शंभू महतो जैसे किरदार अपने आसपास नहीं मिलेंगे।