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चुनाव में फिर चेतेगा मथुरा कांड

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 16 2016 11:19AM | Updated Date: Jun 16 2016 11:19AM
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-कृष्णमोहन झा
-विश्लेषक


उत्तरप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। अब तक राज्य के सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी ने यह उम्मीद पाल रखी थी कि जब चुनावों में जनता से सपा सरकार द्वारा कराए गए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांगेगी तो जनता उसे निराश नहीं करेगी। उसे एक बार पुन: राज्य में सत्ता की बागडोर थामने का मौका मिलेगा परंतु पिछले दिनों आर्थिक नगरी मथुरा में जो कुछ घटित हुआ उसके बाद तो अखिलेश सरकार एकदम बैकफुट पर आ गई है। उसे यह चिंता सताने लगी है कि राज्य में कानून व्यवस्था पर काबू पाने में सरकार की असफलता कहीं उसके द्वारा कराए विकास कार्यों पर भारी न पड़ जाए। पहले ही राज्य में बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था को लेकर विरोधी दलों ने सरकार को आरोपों के कठघरे में खड़ा कर रखा था। अब तो मथुरा की इस भयावह घटना ने विरोधी दलों को एक ऐसा मुद्दा उपलब्ध करा दिया है जिसका राजनीतिक लाभ लेने से कोई विरोधी दल आगले चुनावों में पीछे नहीं हटेगा।

मुख्यमंत्री अखिलेश ने जनता के आक्रोश को शांत करने एवं विरोधी दलों के आक्रमण की धार को कुंद करने के उद्देश्य से भले ही जवाहर बाग कांड की न्यायिक जांच की घोषणा कर दी है और आयोग को अपनी रिपोर्ट दो माह के अंदर सरकार को सौंपने के निर्देश दिए है परंतु यह तो एक तात्कालिक उपाय भर है जिसके जरिए मथुरा कांड को रोकने में अपनी प्रशासनिक असफलता पर पर्दा नहीं डाल सकती। असली प्रश्न तो यह है कि अगर समय रहते ही सरकार ने कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए रामवृक्ष यादव के आपराधिक संगठन से जवाहर बाग को खाली कराने की इच्छाशक्ति दिखाई होती तो क्या मथुरा के एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी एवं एसओ संतोष यादव को असमय उपद्रवियों के हाथों दुखद मृत्यु का शिकार बनने से नहीं बचाया जा सकता था परंतु हमारे देश में तो मानों पानी सिर से ऊपर गुजर जाने पर ही जिम्मेदारी का अहसास जागने की मानसिकता बन चुकी है। यह कई मामलों में पहले भी देखा जा चुका है और मथुरा के जवाहरबाग की घटना ने भी यही साबित किया है।

अखिलेश सरकार के पास आखिर इस सवाल का क्या कोई संतोषजनक जवाब हो सकता है कि अदालत के हस्तक्षेप के बिना उसने जवाहरबाग को उन आपराधिक प्रवृत्तियों के सत्याग्रहियों के कब्जे से मुक्त कराने की तत्परता दो साल में पहले कभी क्यों नहीं दिखाई, जिनके मुखिया राम वृक्ष यादव पर बरेली और मथुरा सहित कई जिलों में 20 से अधिक मुकदमे दर्ज थे। रामवृक्ष यादव के कथित सत्याग्रही ने 270 एकड़ क्षेत्र में फैले इस विख्यात पार्क के एक बड़े भू भाग पर न केवल अवैध कब्जा कर लिया था वरन ऐसे ऐसे हथियार और बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री जमाकर रखी थी कि बाग को खाली कराने पहुंचा पुलिस बल उसके आगे असाह साबित हो गया। आश्चर्य की बात यह है कि मात्र दो दिन के धरने की अनुमति लेकर रामवृक्ष यादव ने धीरे-धीरे वहां अपनी समानांतर सरकार तक बना डाली और पुलिस व जिला प्रशासन आखिर जानबूझकर अनभिज्ञ क्यों बना रहा? ऐसे में यह धारणा बनना स्वाभाविक है कि क्या रामवृक्ष यादव को कहीं से कोई राजनीतिक संरक्षण तो प्राप्त नहीं था। यह भी सुनने में आया है कि जवाहर बाग में स्थित सरकारी दफ्तरों में आने वाले लोगों तथा सरकारी दफ्तरों के अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ आए दिन रामवृक्ष यादव के तथा कथित अनुयायी दुर्व्यवहार करते थे और जिला प्रशासन ने इसकी खबर ऊपर के स्तर तक भी पहुंचाई थी परंतु प्रदेश सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया और इधर रामवृक्ष यादव अपनी ताकत में इजाफा करता रहा। सरकार के खुफिया तंत्र ने आखिर यह जानने की आवयकता समय रहते क्यों महसूस नहीं की कि आखिर इतने हथियारों और विस्फोटक सामग्री का भंडार जमा करने के पीछे रामवृक्ष यादव का असली इरादा क्या है? यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि मथुरा के जवाहर बाग को रामवृक्ष यादव के अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए जो पुलिस बल वहां पहुंचा उसमें शामिल अधिकांश पुलिस कर्मचारी प्रशिक्षणार्थी स्तर के थे जिन्हें इस तरह की विषम परिस्थितियों से निपटने का कोई पूर्वानुभव नहीं था।

मथुरा के जवाहर बाग में हुई भयावह घटना को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा बता रहे हैं परंतु क्या मुख्यमंत्री स्वयं इस सच्चाई से इंकार कर सकते हैं कि दो साल तक आखिर इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने का विचार सरकार के मन में पहले कभी क्यों नहीं आया। अगर अदालत अवमानना का मामला मानकर जवाहर बाग को अवैध कब्जे से मुक्त कराने का दोबारा आदेश नहीं देती तब भी क्या रामवृक्ष यादव के कथित सत्याग्रही संगठन से जवाहर बाग को मुक्त कराने सरकार अपनी जिम्मेदारी मानकार उसका ईमानदारी से निर्वहन करती। भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों ने मथुरा कांड के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए यदि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस्तिफा मांगा है तो उनसे यही अपेक्षित भी था। भाजपा और बसपा दोनों ही राज्य में सत्ता के प्रमुख दावेदार के रूप में अगले विधानसभा चुनाव में उक्त कांड को सपा सरकार के विरुद्ध मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने में सफल हो जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। राज्य में बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था की स्थिति ही एक ऐसा मुद्दा है जिसके बल पर विरोधी दल अगले विधानसभा चुनावों में सपा सरकार को मुश्किल में डाल सकते हैं। भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने पर सारे अवैध कब्जे हटा दिए जाएंगे। केंद्रीय गृह मंत्रालय भी अखिलेश सरकार से मथुरा कांड पर दोबारा रिपोर्ट मंगाने पर विचार कर रहा है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी मथुरा कांड का मुद्दा प्रमुख रूप से उठाया जा सकता है।

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