25 Apr 2024, 15:52:33 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

कनाडा के ट्रोन्टो विश्वविद्यालय में एक अध्ययन हुआ। युवक व युवतियों ने 198 छात्र-छात्राओं पर एक अध्ययन किया। जबसे स्मार्ट फोन आए हैं तबसे सेल्फी लेने का चलन (जिसे महारोग भी कहना चाहिए) बहुत बढ़ गया है। तरह-तरह के कोणों से केवल अपने चेहरों पर ही नजरें टिकाकर सेल्फी लेने में यह युवा एक आत्म मोह से ग्रस्त रहते हंै। फिर अपने चेहरे को सोशल मीडिया पर अपलोड कर इतना प्रसन्न होते हैं कि उन्हें यह भ्रम होने लगता है कि वह इतने आकर्षक हंै कि उन्हें देखकर कितने ही उनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। दूसरे शब्दों में उन्हें अपनी तुलना में और कोई नहीं दिखता। इस अध्ययन में यह भी शामिल किया गया कि जो युवा अपनी सेल्फी लेने के इतने आदि थे कि उनके चेहरों को दूसरे फोटोग्राफर्स से भी क्लिक कराया गया। पता यह चला कि वह स्वयं को जितना आकर्षक समझ रहे थे वह अतने आकर्षक नहीं थे। एक स्वतंत्र पैनल ने निर्णायक नियुक्त कर इन सेल्फी लेने वालों की जब रेटिंग की तब वह एक सामान्य चेहरा साबित हुआ। अपने चेहरे की अधिक सेल्फी लेने वाले अपने बारे में मुगालते में थे कि वह बहुत आकर्षक हैं।

दरअसल अपने बारे में बहुत अधिक सोचने और उस पर मनुष्य होने का बहुत बड़ा कारण यह ‘सेल्फी’ हो गई है। जो होता नहीं उसके बारे में मन में बहुत खुशनुमा विचार पनपने लगते हैं। ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति केवल अपने को ही लेकर तथा स्वयं को केंद्र में ही रखकर सोचने लगा है। वह किसी भी सुंदर प्राकृतिक स्थान पर जाए और वहां जाकर इतने सुरम्य दृश्य देखे पर वह उसके प्रति कम ध्यान देता है बल्कि अपना चेहरा उस पर आरोपित कर अपनी सेल्फी लेने में व्यस्त हो जाता है। उसे उस दृश्य को अपने मन-मस्तिष्क पर अंकित कर तथा उसकी स्मृति को अपने ह्दय में समाने के स्थान पर इस बात में अधिक दिलचस्पी होती है कि उस दृश्य की पृष्ठभूमि में उसका अपना चेहरा कितना आकर्षक और मोहक लगता है इसके अतिरिक्त वह इसे केवल अपने तक ही सीमित नहीं रखता बल्कि उसे अपलोड भी करता है।

स्वयं के प्रति इतना मोह व मुग्धता उसे नितांत स्वार्थी और आत्म केंद्रित बनाती जा रही है। किसी और के प्रति उसके मन में कोई भावनाएं ही नहीं उठतीं और पनप पातीं। जो व्यक्ति केवल अपने को ही लेकर निरंतर सोचता रहे उसकी अपने ही प्रति निरंतर सोच बनी रहेगी। उसे अपनी तुलना में और कोई ठहरता दिखाई ही नहीं देगा। ऐसा आत्म केंद्रित व्यक्ति किसी दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई महसूस करता है। सेल्फी लेते-लेते उसे धीरे-धीरे केवल अपने अतिरिक्त और कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं मिलती। अपनी सेल्फी देखकर खुश होते रहने वाले अन्य की प्रशंसा न तो सहन कर पाते हैं बल्कि वह अपने सामने अपने तुल्य किसी अन्य को समझते तक नहीं। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि जब इन युवाओं को उनकी सेल्फी तथा अन्य फोटोग्राफर द्वारा ली गई फोटो के कारण उनके चेहरे को सामान्य और साधारण चेहरे के रूप मे अंक दिए गए तो वह उन्हें एक शॉक सा लगा और उनके चेहरे पर उदासी की लकीरें खिंच गई। इस अध्ययन में यह तथ्य उजागर हुआ कि युवाओं में सेल्फी लेना एक मनोवैज्ञानिक समस्या बनता जा रहा है। इतनी आत्ममुग्धता मित्र बनाने और मित्रता निभाने में भी बाधक बनती है। अपने अलावा किसी और को महत्व न देना सामाजिकता में सबसे अधिक दूर करता है। सेल्फी अपने प्रति तो आत्मकेंद्रित बनाती ही है पर इसके साथ ही यह अपनों के निकट आने के अवसर भी छीन लेती है, स्मार्टफोन ने और भी कठिनाइयां तो खड़ी की ही हैं, इसके साथ ही स्वयं के प्रति तीव्र आकर्षण ने उस विचार से भी दूर कर दिया है जिसके कारण दूसरों की प्रशंसा में कम से कम दो शब्द तो कहे जाते थे।

सुंदरता की प्रशंसा पहले दूसरे करते थे तो लगता था कि वास्तव में सुंदरता का कोई अर्थ है। उन शब्दों को सुनते ही मन ही मन एक आत्मिक संतोष व सुख मिलता था पर, आज तो अपनी ही सेल्फी लेकर अपने ही द्वारा प्रशंसा के सागर में गोते लगाए जाते हैं। कभी तो इतना समय भी निकाला जाए कि अपने अतिरिक्त भी किसी दूसरे की प्रशंसा करने का भी सोचा जाए। स्वयं को ही इतना ओवर एस्टीमेट करने की प्रवृत्ति से कुछ देर के लिए मुक्त होकर न केवल दूसरे के गुणों पर ध्यान दिया जाए बल्कि प्राकृतिक दृश्यों को भी सेल्फी में अपने चेहरे के साथ कैद करने के स्थान पर उनमें डूबकर व उनमें पूरी तरह सम्मिलित होकर उन्हें देखा जाए और अपने स्मृति पटल पर अंकित कर लिया जाए।

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