-राजीव रंजन तिवारी
विश्लेषक
महाराष्ट्र की सियासत में तेज हुई गर्मी थमने का नाम नहीं ले रही है। भाजपा को लग रहा था कि के राजस्व एवं कृषि मंत्री एकनाथ खड़से के इस्तीफे के बाद उस पर पड़ रहा विपक्षी दलों का चौतरफा वार कुछ थम जाएगा, मगर उसकी मुश्किलें इतनी जल्दी कम होती नहीं दिख रही है। दरअसल, खड़से के इस्तीफे के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार इस पिछड़ी जाति के नेता से ही पहले इस्तीफा क्यों लिया गया, जबकि महाराष्ट्र सरकार में और भी कई कथित रूप से दागदार मंत्री हैं। उन मंत्रियों से अब तक इस्तीफे की मांग क्यों नहीं की गई। यानी एकनाथ खड़से के इस्तीफे से भाजपा को पिछड़ा विरोधी बताने की कोशिश चल रही है। स्थिति ये है कि अपने इलाके में व्यापक जनाधार वाले नेता के रूप में पहचान रखने वाले एकनाथ खड़से के समर्थकों में भाजपा के प्रति गुस्सा बढ़ गया है। सूत्रों का कहना है कि खड़से के समर्थन और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के विरोध में लगातार उनके क्षेत्र में आंदोलन चल रहा है। और तो और खड़से के समर्थक भाजपा प्रमुख अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले तक फूंक रहे हैं। यही वजह है कि खड़से के इस्तीफे के कई दिन बाद भी महाराष्ट्र में सियासत गर्म है। राजनीति के जानकार इसी गर्मी का मतलब खोजने में जुटे हैं।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार दावा करते रहे हैं कि उनकी पार्टी की सरकारें किसी भी रूप में भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। इस तरह खड़से प्रकरण को मोदी सरकार के समय भाजपा पर भ्रष्टाचार के पहले कलंक के रूप में देखा जा रहा है। यद्यपि पार्टी के केंद्रीय कमान ने मुस्तैदी दिखाते हुए खड़से का इस्तीफा लेकर साबित करने का प्रयास किया कि वह भ्रष्टाचार के मामले में सख्त है। हालांकि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं, पर बहुत-से लोगों को उसे लेकर आशंका है कि सही तस्वीर सामने आ पाएगी। ऐसे में भाजपा और महाराष्ट्र सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्ष जांच होने दे। खड़से महाराष्ट्र में भाजपा के अन्य पिछड़ी जाति के बड़े जनाधार वाले नेता हैं। सरकार में वे दूसरे नंबर के ताकतवर नेता माने जाते थे। मगर उन पर महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम की भूमि खरीद में गड़बड़ी करने, रिश्वतखोरी और दाऊद इब्राहीम से संबंध रखने के आरोप लगे। महाराष्ट्र में भाजपा ने पहली बार अपने बल पर सरकार बनाई है। इसलिए न सिर्फ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उसे घेरने में जुटी थी, बल्कि बरसों तक उसकी दोस्त रही शिवसेना ने भी तीखे वार शुरू कर दिए थे। शिवसेना को सरकार में मनचाही हैसियत न मिल पाने के कारण वह शुरू से भाजपा से नाराज चल रही है। इसलिए खड़से के मामले को वह अभी और भुनाने की कोशिश करेगी। कांग्रेस अब पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े आदि पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को रेखांकित कर राजनीति का रुख मोड़ने की कोशिश में है। उसका कहना है कि भाजपा ने क्यों सिर्फ बहुजन समाज के नेताओं को दंडित करना मुनासिब समझा, दूसरी जाति के नेताओं पर लगे आरोपों को उसने अनदेखा क्यों कर दिया। हालांकि खड़से लगातार तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने जमीन खरीद में कोई गड़बड़ी नहीं की। मगर भाजपा के लिए कठिनाइयां कम होती नहीं दिख रही हैं। दाऊद कॉल कनेक्शन से लेकर एमआईडीसी लैंड विवाद में घिरे महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री एकनाथ खड़से की मुसीबतें चौतरफा बढ़ने लगीं। आरएसएस से भी खड़से को झटका लगा। संघ विचारक राकेश सिन्हा ने इस्तीफा देने को कहा। संघ के ही मनमोहन वैद्य ने कहा कि इस मामले में संघ की तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं है। आम आदमी पार्टी की पूर्व नेता अंजलि दमानिया ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे से मुलाकात कर खड़से के खिलाफ कार्रवाई को लेकर आवाज उठाने की मांग की थी। इस मुलाकात के बाद अन्ना ने कहा था कि दमानिया ने खड़से के भ्रष्टाचार के सबूतों की 200 पन्नों की एक फाइल दी है, अगर उसमें कुछ तथ्य पाए गए तो खड़से के विरोध में आंदोलन करूंगा। फाइलों की पहले वो जांच करेंगे और जरूरत पड़ने पर और कागजात मांगे जाएंगे। जांच पूरी होने के बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी। उधर, इस्तीफे का ऐलान करने बीजेपी प्रदेश मुख्यालय पहुंचे खड़से ने महाराष्ट्र कैबिनेट के बाकी दागदार मंत्रियों के बचे होने पर भी सवाल उठाया।
अब भाजपा को 'विरोधी पार्टी' और ‘पार्टी विरोधी’ नेताओं से कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। राज्य विधानसभा का मानसून सत्र जल्द ही शुरू होने वाला है। तब खड़से की कमी खलेगी, जब विपक्ष सरकार को हर मुद्दे पर घेरने की कोशिश करेगा। उस वक्त सरकार के बचाव की जिम्मेदारी अकेले फडणवीस पर होगी। पूरे विवाद में ये ध्यान देने वाली बात ये है कि भाजपा के सभी वरिष्ठ नेता इससे दूर ही रहे। कोई भी खड़से की मदद के लिए आगे नहीं आया। यहां तक कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने इन आरोपों की जांच के आदेश दे दिए। उधर, खड़से खुद को बेगुनाह साबित करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। बहरहाल, महाराष्ट्र के इस मसले को राष्ट्रीय विपक्षी दल पूरे देश भर में फैलाने की कोशिश करेंगे, ताकि न सिर्फ महाराष्ट्र सरकार बल्कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की भी फजीहत हो। देखना है कि विपक्ष का प्रयास कितना कामयाब होता है।