-रमेश ठाकुर
-विश्लेषक
करीब छह-सात साल पहले किडनी रैकेट का एक सबसे बड़ा पदार्फाश हुआ था। रैकेट का सरगना किडनी कुमार के नाम से कुख्यात डॉ. अमित कुमार को नेपाल से पकड़ा गया था, हालांकि तभी से वह जेल में है। उसने जांच एजेंसियों के समक्ष 300 किडनी प्रत्यारोपण करने की बात स्वीकारी थी, जबकि उसकी गैंग में देश के तकरीबन सभी बड़े अस्पताल शामिल थे। उन अस्पतालों में अस्पताल प्रबंधन के अप्रत्यक्ष सहयोग से धड़ल्ले से किडनी व मानव शरीर के दूसरे अंगों को खरीदने-बेचने का काम होता है। कोई बिरले ही मामले सामने जा जाते हैं। दिल्ली के अपोलो अस्पताल में किडनी को लेकर जो खुलासा हुआ है। ऐसे धंधे सभी अस्पतालों में होते हैं।
विचारणीय पहलू यह है कि जब दिल्ली के बड़े अस्पताल में ऐसा अवैध कृत्य हो सकता है, तो देश के सुदूर अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कितनी गड़बड़ियां की जा रही होंगी। दुख इस बात का है कि किडनी के कारोबार में गाज सिर्फ बाहरी लोगों पर गिर रही है। मसलन, दलाल और बेचने वालों पर नहीं? लेकिन बड़ी मछली पर कोई हाथ नहीं डाल रहा है। यह कैसे संभव है कि बिना अस्पताल प्रबंधन के इजाजत से किडनी का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। इस खेल में मुख्य रोल अस्पताल के अंदरुनी लोग ही अदा करते हैं। उन पर कोई हाथ नहीं डालता। शरीर के अंगों के बेचने का खेल हमारे देश में बुहत पुराना है, लेकिन हाल ही के दिनों में इस खेल ने अपना शिकंजा हर छोटे-बड़े अस्पतालों में जमा लिया है। दूर-दराज के गरीबों को ज्यादा कीमत देकर दलाल उनके अंगों का सौदा करते हैं। उसके बाद उनके अंगों को अमीरों को मनचाही कीमत वसूलते हैं। निजी अस्पतालों में मामूली बीमारी का भी महंगा इलाज होता है। कई तरह की जांच मरीज को करवानी पड़ती हैं। जरूरत न होने पर भी आॅपरेशन कर लाखों का बिल थमा दिया जाता है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, स्टाफ, संसाधनों की कमी और कई अन्य परेशानियों के कारण निजी अस्पतालों का रुख करना ही पड़ता है। मौजूदा समय में अस्पताल कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गए हैं। लोग अब अस्पताल खोल कर अच्छा-खासा मुनाफा डॉक्टर कमाने लगे हैं और अब तो विदेशी मरीजों के कारण चिकित्सा पर्यटन का उद्योग भी खूब फल-फूल रहा है। आम जनता स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर यह ज्यादती निरंतर बर्दाश्त कर रही है, लेकिन मुनाफे के लालच में अंगों का अवैध कारोबार किया जाना चिंताजनक ही नहीं, लोककल्याणकारी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करने वाली सरकार के मुंह पर तमाचा भी है।
स्वास्थ्य व्यवस्था सभी वर्गों के लिए समान हो। इस झूठे जुमले का इस्तेमाल सभाओं में सभी नेता करते हैं, लेकिन सच्चाई उनको भी पता होती है कि यह सब संभव नहीं है। बिना इलाज के एक गरीब अस्पताल की दहली पर दम तोड़ देता है, जबकि पैसे वाले इंसान के लिए अस्पताल किडनी से लेकर हर अंग क्षणभर में मुहैया करा देते हैं। शिमला में पिछले दिनों इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के स्वर्ण जयंती दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों और गरीबों को उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं पर फिक्र करते हुए कहा था कि देश को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी डॉक्टरों की है। उन्हें समाज के प्रति अपने संबंधों को नहीं भूलना चाहिए। गांवों में डॉक्टरों को अपनी सेवाएं देनी चाहिए। एक ओर देश के राष्ट्रपति डाक्टरों को दीक्षित करते हुए उन्हें सेवा का संकल्प याद दिला रहे थे, दूसरी ओर दिल्ली के मशहूर अपोलो अस्पताल के सामने एक दंपति का झगड़ा हो रहा था और जब मामला पास के पुलिस थाने में पहुंचा तो बात किडनी के अवैध कारोबार तक चली गई। राष्ट्रपति का इस विषय पर चिंतित होना स्वभाविक है, लेकिन असल में यह समस्या हमारी सोच से कोसों दूर है।
दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल देश का जाना-माना स्वास्थ्य ब्रांड है। देश-विदेश के कई मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं। मरीजों की बीमारी की जानकारी के साथ-साथ उनकी आधिकारिक सूचनाएं अर्थात उनके जरूरी दस्तावेज भी अस्पताल प्रबंधन की पहुंच में रहते हैं, क्योंकि इलाज की औपचारिकता में इनकी जरूरत पड़ती है। हमारे देश में अंगदान के लिए भी कानून बने हैं, उसमें भी मरीज और परिजनों की आधिकारिक जानकारियां देनी पड़ती हैं। अपोलो जैसे अस्पतालों में तो इसके लिए कुशल और जानकार कर्मचारी नियुक्त होते होंगे, जो इन औपचारिकताओं का कानूनी महत्व जानते-समझते होंगे। इसके बाद भी अगर किडनी के अवैध धंधे में इस अस्पताल का नाम आता है, तो यह समझना कठिन नहीं है कि पांच-सात सितारा होटलों जैसे इन अस्पतालों की चकाचौंध के पीछे कितनी कालिख दबी हुई है। यूं अपोलो प्रबंधन ने इस मामले में किसी तरह की संलिप्तता से इंकार किया है, लेकिन अगर उस परिसर के भीतर यह गैरकानूनी कृत्य चल रहा था, तो वह अपनी जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकता। अस्पताल में कुछ भी गलत होता है उसकी जिम्मेवारी अस्पताल प्रबंधन की ही होती है। लेकिन जब कुछ गड़बड़ी की बात सामने आती है। तो, अस्पताल प्रबंधन पुलिस-प्रशासन को मैनेज करने में ही अपनी भलाई समझता है। फिलहाल पुलिस ने इस मामले में कुछ गिरफ्तारियां की हैं और उसे संदेह है कि इस कारोबार के तार देश ही नहीं विदेश तक फैले हुए हैं। किडनी की खरीद-फरोख्त का कार्य करवाने वाले लोग विदेशों से मरीजों को यहां लाकर उनसे एक किडनी के बदले 25-30 लाख रुपए वसूलते हैं, और देश के गरीब लोगों को बहला-फुसलाकर या कई बार धोखे से किडनी देने पर मजबूर कर देते हैं। बदले में उन्हें कुछ हजार रुपए पकड़ा दिए जाते हैं।
इस कारोबार के आरोपी सारे काम गैरकानूनी ढंग से संपन्न करवाते हैं और खरीदने व बेचने वाले के बीच संबंध के फर्जी दस्तावेज बनवा देते हैं। इतने बड़े पैमाने पर, इतने सारे गलत काम होते रहे और अस्पताल प्रबंधन को इसकी जानकारी नहीं हुई, यह भी आश्चर्य की बात है।