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चिरायु होना सिखा गए बाबा मनोहर आईच

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 7 2016 11:06AM | Updated Date: Jun 7 2016 11:06AM
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-गौरीशंकर दुबे
दैनिक दबंग दुनिया के वरिष्ठ पत्रकार


आप-हम जब बुजुर्गों के चरण छूते हैं, तो ‘चिरायु भव:’ आशीर्वाद मिलता है। धर्म शास्त्र कहते हैं कि जीवन-मरण ऊपर से निर्धारित होता है, लेकिन हकीकत यह भी है कि जापानी लोगों की औसत आयु दुनिया के बाकी हिस्से के मुकाबले कहीं अधिक है। वे 100, यहां तक कि सवा सौ साल तक भी जिंदगी को खींच ले जाते हैं। जापानी उबला खाना ज्यादा खाते हैं। सी फूड भी। बहुत से काम पैदल चलकर या साइकिल चलाकर पूरे करते हैं। समय पर सोते हैं। समय पर जागते हैं। जापान तो दूर की बात है, भारत को ही ले लीजिए। मैराथन धावक फौजा सिंह ने जिंदगी का शतक पूरा किया और 105 पर नाबाद भी हैं। ऐसे नामी चिरायु लोगों में मनोहर आईच का नाम हमेशा सम्मान से लिया जाता रहेगा। दो दिन पहले 104 साल की उम्र में उनका निधन हुआ।

मनोहर आईच भारत के अलग -अलग प्रांतों में बॉडी बिल्डिंग शो करते आ रहे थे। इंदौर को आईरन गेम्स से परिचित कराने वाले मोहनसिंह राठौर ने उन्हें 1987 में देवी अहिल्या की नगरी में लाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी कारणवश वे नहीं आ सके थे। राठौर ने उन्हें नईदिल्ली में शो करते देखा, आईच साहब पूरे पांच मिनट अपने शरीर पर लगे तेल से चमक उठीं मासपेशियों से लोगों को हैरत में डालते रहे। एक विदेशी भी आया था, लेकिन दो मिनट में सुस्त पड़ गया। दोनों को बोलने का मौका दिया गया, तो विदेशी पांच मिनट तक सांस भरकर दो मिनट भी नहीं बोल सका। फिर आईच साहब ने बोलना शुरू किया और आधे घंटे तक एक -एक लाइन ऐसी बोलते रहे कि सुनने वालों ने जीवन में उतार लिया। वे प्राकृतिक खाद्य पदार्थों दूध, दही, घी, छाछ, चक्का, पनीर, मक्खन, फल, सब्जियों और अनाजों से शरीर बनाने के पक्षधर थे। वे कहते थे -भेड़ चाल मत चलो। विदेशी स्टेराइड्स लेते हैं। प्रोटीन पावडर के नाम पर स्लो पाइजन खाते हैं। शरीर रातों रात तो बन जाता है, लेकिन किडनी, लीवर, हार्ट यहां तक कि माइंड भी फेल हो जाता है। लेकिन आज के युवा कहां मानते हैं। रातों रात सलमान खान, सुनील शेट्टी, आमिर खान, रितिक रोशन और जॉन अब्राहम जो बनना चाहते हैं। आईच साहब बांग्लादेश से बंगाल आए थे। वे खुद को हिंदी-बांग्ला ही बोलते थे। बोलते कम थे, लेकिन बात पते की बोलते थे। उन लोगों की तरफ तो देखना भी पसंद नहीं करते थे, जो कुदरती चीजों के बजाय आलतू-फालतू दवाओं से शरीर को फुग्गे की तरह फुला लेते हैं।

हर्क्यूलिस बहुत ताकतवर इंसान था। समझा जा सकता है कि आईच साहब को 1950 के दशक में यह उपाधि दी गई, तो वे क्या चीज रहे होंगे। तब उन्होंने मिस्टर हर्क्यूलिस टाइटल जीता था और उसके बाद भारत के पहले मिस्टर यूनिवर्स बने। पिछले साल जब उन्होंने अपने जीवन के 103 वसंत पूरे किए थे, तो एक रोड एक्सीडेंट में कमर में चोट लग गई और वे बिस्तर के होकर रह गए। वहां पड़े -पड़े अपने श्रवण कुमार की तरह पुत्र विष्णु से उस जिम्नेशियम और देशी अखाड़े में आने वाली प्रतिभाओं का हालचाल पूछते थे। उन्होंने पूरी उम्र लोगों को फिटनेस के प्रति जागरूक किया। कई नामी बिल्डर पैदा किए। एक वचन पूरा न करने का मलाल रहा कि डेढ़ सौ साल नहीं जी पाए, क्योंकि 20 साल पहले एक शो में उन्होंने कहा था कि जब डेढ़ सौ साल का हो जाऊंगा, तो यहां आकर शो जरूर करूंगा। आईच साहब यह कर सकते थे, लेकिन कमर की चोट ही ऐसी थी।

आईच साहब से यह तो सीखा जा सकता है कि यदि समय पर सोएंगे, समय पर जागेंगे, समय पर संतुलित आहार खाएंगे, समय पर व्यायाम करेंगे, तो जिंदगी को सौ पार ले जाएंगे। इसके लिए जापानियों से प्रेरणा लेने की जरूरत नहीं है। एक और काम हो जाएगा, जो बुजुर्ग हमें चिरायु होने का आशीर्वाद देते हैं, वे भी सही साबित हो जाएंगे। कुदरत ने इंसानी शरीर के लिए तंबाकू और भी कई नशीली वस्तुएं नहीं बनाई, लेकिन वह सेवन करता गया, तो शरीर उसे मजबूरी में ग्रहण की ओर ले जाता रहा। आईच साहब ने तो बरसों से मछली-अंडा तक खाना बंद कर दिया था। अनाज, फल, सब्जियां और व्यायाम के सहारे वे गर्दन के नीचे तक बूढ़े हो चुके करोड़ों युवाओं के लिए एक मिसाल थे। अच्छी बात यह है कि कोलकाता का डमडम एयरपोर्ट, जिसका नाम अब नेताजी सुभाषचंद्र एयरपोर्ट हो गया है, वहां मनोहर आईच जिम तथा अखाड़े में उनके काम को, उनकी तरह ही बॉडी बिल्डर पुत्र विष्णु आईच आगे बढ़ा रहे हैं। कोलकाता जाएं, तो एक बार उस तीर्थ के दर्शन जरूर करें, जो रतन टाटा की तरह कभी विवादों में नहीं आया। अन्यथा आजकल तो देवस्थान भी विवादों में पड़े हैं। जो चिरायु होना चाहते हैं, वे तो हफ्ते दो हफ्ते के लिए जा ही सकते हैं।
 

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