20 Apr 2024, 03:44:24 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

प्रसिद्ध फिल्मकार महेश भट्ट ने बहुत कीमती और खरी-खरी सच बात कही। उन्होंने कहा-बेवजह दीवार पर इल्जाम लगता है बंटवारे का, लोग मुद्दतों से एक कमरे में भी अलग रहते हैं।

इस बात की गहराई और गहनता को समझा जाना चाहिए। कौन सा रिश्ता व संबंध हमें अपने आसपास दिखता है जिसमें दीवारें न बनी हुई हों। मन ही मन सबसे जुदा-जुदा रहने का ही माहौल दिखता है। यह जो दिलों में दीवारें उठी हुई हैं न यह बाहर से तो नहीं दिखतीं पर, भीतर-भीतर अलगाव बना रहता है। यहां तक कि एक ही छत के नीचे रहते हुए पैरेंट्स की अपनी बच्चों से उनके बड़े होते जाने पर भावनात्मक आत्मीयता तथा निकटता नहीं दिखती। इसी अलगाव की वजह से और दिलों में बनी दूरियों से जब कोई समस्या तथा मुसीबत आती है तो परिवार के किसी सदस्य से उसे बांटने के स्थान पर फांसी लगा लेते हैं। इतने बरसों तक साथ रहते हुए भी अपने मन की बात नहीं बताते कि उनके मन में क्या उथल-पुथल चल रही है तथा कैसी खलबली मची हुई है कि उनका फांसी का फंदा कसने का या और किसी तरह मरने का उपाय सोच लिया जाता है। पति-पत्नी तक के संबंधों के बीच भी यह दीवारें चुनी हुई हैं। सही कहा महेश भट्टजी ने एक कमरे में (जिसे बहुत नफासत बेडरूम कहा जाता है) रहते हुए भी वह मन ही मन तो अलग रहते हैं। साथ खाना खाते हैं, साथ सोते हैं, साथ-साथ कहीं चले भी जाते हैं पर, भीतर अलगाव की दीवारें खिंची हुई होती हैं। हद तो यहां तक है कि  उनके आत्महत्या करने पर पता चलता है कि उन्होंने उससे पहले एक साथ खाना खाया, बातें की, टीवी देखा और फिर कमरे में जाकर फांसी पर लटक गए। पिछले दिनों दूसरे शहर में रहने वाले परिचित परिवार के जवान व स्वस्थ बेटे ने बिस्तर की चादर को गले का फंदा बनाकर फांसी लगा ली। जबकि उसने अपने कमरे में जाने से पहले अपनी मम्मी से कहा था कि - मेरा खाना लगाकर मेरे कमरे में ला दें। मां बेचारी थाली परोसकर कमरे के बाहर से आवाजें देती रही पर, बेटा तो जान दे चुका था।

यह कौन सी दीवार थी जिसे उसने अपने मन में बना रखा था और जिसकी भनक तो उसने अपने मम्मी-पापा तक को नहीं लगने  दी। यह दीवार इतनी मजबूत थी कि माता-पिता अपने बेटे के साथ रहते हुए भी उस दीवार के पार न तो देख सके और न ही उसे ढहा सके। कैसी अभेद्य दीवारें संबंधों में खड़ी हो रही हैं कि जो साथ रहने तथा ऊपर से दिखाई देने वाली निकटता और समीपता के बावजूद भी बनी हैं। इन दीवारों में न तो कोई झरोखा होता है और न ही कोई रोशनदान है कि जिसमें से झांका जा सके। र्इंट, गारे, सीमेंट की दीवारें भी इतनी मजबूत नहीं हैं जितनी मजबूत यह मन की दीवारें हैं, बहुत चर्चाएं होती हैं, विचार-विमर्श होता है, मनोवैज्ञानिक तरह-तरह के सुझाव दें रहे हैं पर, रिश्ते-नातों और भाई-भाई, भाई-बहन, माता-पिता और बच्चों तथा इन सबसे बढ़कर भी पति-पत्नी के बीच दीवारें खड़ी होती जा रही हैं और इन सुझावों का उपहास उड़ाती हैं और दिन-प्रतिदिन अलगाव की मजबूती दिखा रही हैं दीवारों को बेवजह इल्जाम न दें, अपने मन को टटोलें।

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