-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
विश्लेषक
पिछले दिनों एक दिलचस्प रिपोर्ट प्रकाशित हुई। इसमें कहा गया कि अठारहवीं शताब्दी के बाद की वैज्ञानिक अन्वेषण में हिंदू और मुसलमानों का योगदान नाममात्र का है। इसमें भारत के अलावा सभी मुस्लिम देश शामिल हैं। यह रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित है, लेकिन इसे फिलहाल अधूरी ही कही जा सकती है, क्योंकि इसमें संस्कृत भाषा गं्रथों में समाहित ज्ञान-विज्ञान पर विश्व में हुई रिसर्च का उल्लेख नहीं है। यह सही है कि आजादी के बाद भारत अपनी इस धरोहर का लाभ नहीं उठा सका। गुलामी के लंबे दौर की बात तो बिल्कुल अलग थी। तब मुस्लिम और अंग्रेज शासकों ने अपने ढंग से देश को चलाया था। बड़ी संख्या में भारतीय ज्ञान-विज्ञान की अमूल्य धरोहरों को नष्ट किया गया था। ऐसे में उसके लाभ उठाने की संभावना ही नहीं थी।
क्या इस तथ्य को नजरअंदाज किया जा सकता है कि नासा में आज भी इन साठ हजार संस्कृत की पांडुलिपियों पर शोध चल रहा है। अनेक पश्चिमी वैज्ञानिकों ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में उल्लेखित विज्ञान को समझा है। गुलामी के कालखंड में स्थितियां पूरी तरह से प्रतिकूल थीं, लेकिन स्वतंत्रता के बाद यह माना गया कि अब संस्कृत भाषा और उसके ज्ञान पर रिसर्च को बढ़ावा दिया जाएगा, लेकिन कथित धर्मनिरपेक्षता के विचार से संस्कृत को सांप्रदायिक मान लिया गया। संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहन की बात तो दूर, इसकी पैरवी करने वाले भी सांप्रदायिक घोषित कर दिए गए। वामपंथी विद्वानों के वर्चस्व ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया। ये सभी विद्वान राष्ट्रीय आत्मगौरव से विहीन थे। ये साबित करना चाहते थे कि भारत के पास अपना कुछ नहीं है। विदेशी आक्रांताओं ने आकर हमको सभ्य बनाया। वस्तुत: ये विचारक या तो अज्ञानता में ऐसा कह रहे थे या विदेशी चश्मे से भारत को देख रहे थे। अज्ञानता इस मामले में कि इन्होंने प्राचीन ग्रंथों को समग्रता के सथ समझने का प्रयास नहीं किया।
यह अच्छी बात है कि वर्तमान केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस मामले में दृढ़ता दिखाई है। वह संस्कृत भाषा और उसके ग्रंथों पर शोध को बढ़ावा देने का फैसला कर चुकी हैं। उनके बयान से स्पष्ट है कि वह इसका विरोध करने वालों का मुकाबला करने को तैयार हैं। स्मृति जानती हैं कि जिस देश में आतंकियों के पक्ष में कार्यक्रम करने वाले छात्रों को राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का समर्थन मिल जाता है। इसमें सांसद तक शामिल होते हैं। वहां संस्कृत की बात करना आसान नहीं होता। इसीलिए उन्होंने दृढ़ता दिखाई है। स्मृति ईरानी ने तर्कपूर्ण ढंग से बड़ा मसला उठाया है। उन्होंने कहा कि हम भाषा-संस्कृति की बात करते हैं तो भगवाकरण का आरोप लगता है, लेकिन जब कोई विदेशी ऐसा कहता है, तो उसकी तारीफ होती है। इस प्रकार स्मृति ईरानी ने उन नेताओं को करारा जवाब दिया है, जो राष्ट्रवाद से जुड़े मामलों को भगवाकरण करार देते हैं। वर्तमान केंद्र सरकार संस्कृत और संस्कृति दोनों का महत्व समझती है। विश्व में इन दोनों के प्रति जागरूकता बढ़ी है। पिछले दिनों एक रिपोर्ट में बताया गया कि रूस के छह प्रतिशत लोगों ने हिंदू धर्म अपना लिया है। यह संख्या बढ़ रही है। ऐसे में भारत की जिम्मेदारी बढ़ी है। हमको अपने यहां संस्कृत भाषा और मानवतावादी संस्कृति की पुनर्स्थापना करनी होगी। इसी क्रम में स्मृति ईरानी ने भारतवाणी पोर्टल और मोबाइल एप का लोकार्पण किया। मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे होने की पूर्व संध्या पर लखनऊ के भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में इसका लोकार्पण किया गया। उन्होंने यहां तक कहा कि वह आईआईटी में संस्कृत पढ़ाना चाहती हैं। विदेशी विद्वानों ने संस्कृत को जीवित भाषा कहा, अमेरिकी गणितज्ञ ने कहा कि विश्व में ज्यामैट्री की सबसे पुरानी किताब संस्कृत में है, लेकिन कोई भारतीय यह कह दे तो वह सांप्रदायिक हो जाता है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। नासा के वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि संस्कृत विश्व की सर्वाधिक स्पष्ट भाषा है। इसके शब्दकोष की कोई भाषा बराबरी नहीं कर सकती। इसमें एक सौ दो अरब अठहत्तर करोड़ पचास लाख शब्द हैं। संस्कृत को कम्प्यूटर की सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा माना गया है। किसी अन्य भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दों में वाक्य पूरे हो जाते हैं। अमेरिकन हिंदू विश्वविद्यालय ने एक दिलचस्प शोध किया है। इसके अनुसार संस्कृत में बात करने से शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। इससे रक्तचाप, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोगों से मुक्ति में सहायता मिलती है।
युग निर्माण योजना मथुरा का शोध भी यही कहता है। यहां संस्कृत के गायत्री मंत्र पर विशेष शोध हुआ। इसके अनुसार गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर शरीर की चौबीस ग्रंथियों को प्रभावित करते हैं। इससे एकाग्रता बढ़ती है। यह स्पीच थैरेपी में भी सहायक होती है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष यात्रियों को भेजे जाने वाले मैसेज उलट जाते थे। इस कारण उनका अर्थ भी बदल जाता था। इस भाषायी समस्या का समाधान केवल संस्कृत में है। इसके शब्द उलटने या इधर-उधर होने से भी अर्थ नहीं बदलता। कम्प्यूटर द्वारा गणित के सवालों को हल करने वाली विधि संस्कृत में ही बनाई गई है। छठी व सातवीं जनरेशन के सुपर कम्प्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे। जो अगले दो दशक में बन जाएंगे। इनका निर्माण नासा करेगा। स्मृति ईरानी ने संस्कृत और संस्कृति के मामले में जो दृढ़ता दिखाई है, उसके दूरगामी परिणाम होंगे। यह तय है कि उन्हें धर्मनिरपेक्षता के दावेदारों का मुकाबला करना होगा। यदि वह अपने मंसूबे में सफल रहीं तो भारत का विश्व में सम्मान बढ़ेगा।