26 Apr 2024, 00:35:42 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

उस परिचित परिवार ने एक आयोजन रखा था, जिसमें निकट के आत्मीय और परिचित निमंत्रित थे। आजकल ऐसे आयोजन भी किसी पांच सितारा या कम से कम तीन सितारा होटल में ही रखे जाते हैं। आयोजन का कारण पूछने पर पता चला कि उनकी अमेरिका वाली आंटी और अंकल आए हुए हैं। यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि आंटी का मतलब कौन सा रिश्ता है-मौसी, बुआ या चाची अथवा ताईजी। ‘‘इस संबंध में उठते प्रश्नों को मन में ही दबा लिया।

आयोजन में पहुंचे तो अच्छा-खासा जमावड़ा था और मेजबान बहुत उत्साह से अपने अमेरिका वाले अंकल और आंटी को बहुत गर्माहट से सबसे मिलवा रहे थे। उनका अपने परिवार के इन सदस्यों की इस तरह आवभगत करना अच्छा लग रहा था। यह तो भारतीय समाज में ही संभव है कि इस तरह परिवार के सदस्यों के साथ रिश्ते बनाकर रखे जाएं। कुछ देर बाद इधर-उधर नजर दौड़ाई तो उनके बडेÞ काका के परिवार का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था और गहरी नजरों से देखा तो बुआ और मौसी के भी परिवार के सदस्य वहां मौजूद नहीं थे। उस आयोजन में रसूख वाले और संपन्न परिवार ही आमंत्रित लगे।

अब बात समझ में आई। दरअसल प्राय: अमेरिका या विदेशों में रहने वाले परिवार के सदस्यों को तो मिलवाने का बहुत उत्साह रहता है और उन रिश्तेदारों के आने पर उन्हें अपने मित्रों और परिचितों से मिलवाने का भी जबरदस्त जोश होता है और बार-बार कहा जाता है कि आजकल हमारे यहां अमेरिका वाली आंटी और अंकल आए हुए हैं पर, अपने आसपास रहने वाले रिश्तेदारों से मिलने-जुलने का समय ही नहीं होता और उन्हें अपने परिचितों से मिलाने का कोई उत्साह भी नहीं दिखाया जाता। यह हैरान और परेशान करने वाली बात है कि भारतीय समाज जो अपने पारिवारिक संबंधों की आत्मीयता और निकटता बनाए रखने के लिए जाना जाता है वह अब इस आधार पर संबंध बनाकर रखे कि उनके परिवार का कोई सदस्य अमेरिका से आया है या भारत में ही रहता है। इस असमान व्यवहार करने की नीयत के बारे में क्या कहा जाए। यह व्यवहार और दृष्टिकोण यहां तक पहुंच गया है कि अपने बच्चों को लेकर भी गर्वोक्ति की जाती है कि उनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं अथवा किसी व्यवसाय में कार्यरत हैं। समाज में अब इस बात से भी परिवार की प्रतिष्ठा का आंकलन किया जाता है कि बच्चे विदेश में हैं कि नहीं, कुछ मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के परिवारों की तो कल्पना और सपने ही यही होते हैं कि उनके बच्चे विदेश में जाकर पढें। यह बहुत बड़ा और गर्व का विषय हो गया है। हो सकता है कि संपन्नता को लेकर हम अब भी विदेश के आकर्षण से बंधे हों पर, यह कैसे हो सकता है कि उस आकर्षण से इतना बंध जाएं कि यह भी भूल जाएं कि हमारी जड़ें कहां हैं? अपने आसपास के रिश्तेदारों से तो हम कटकर रहें पर, अमेरिका वाली आंटी और अंकल के प्रति हमारी सारी भावनाएं जोर मारने लगें। इस मानसिकता से उबरकर उन नजदीक ही रहने वाले संबंधियों से आत्मीयता बनाकर रखी जाए। आखिर दु:ख और आपदा की घड़ी में यही अपना हाथ आगे बढ़ाएंगे, जबकि अमेरिका वाली आंटी और अंकल शायद ही पहुंच पाएं और सांत्वना दे सकें।

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