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मालेगांव धमाकों की जांच का डरावना सच

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 25 2016 10:29AM | Updated Date: May 25 2016 10:29AM
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-अवधेश कुमार
विश्लेषक

जो लोग मालेगांव विस्फोटों की जांच पर लगातार नजर रख रहे थे उनके लिए साध्वी प्रज्ञा सहित छह लोगों को आरोपों से मुक्ति तथा कर्नल पुरोहित की संभावित मुक्ति की स्पष्ट आधारशिला से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी या एनआईए पिछले एक साल से ज्यादा समय से अपनी छानबीन एवं कानूनी प्रक्रिया में इस बात का साफ संकेत दे रही थी कि इन लोगों के खिलाफ वाकई आरोप को प्रमाणित करना उनके लिए संभव नहीं हो पा रहा है। जब जांच में कोई आरोप प्रमाणित ही नहीं हो रहा है तो फिर उनको आरोपी बनाए रखने का कोई मतलब नहीं था। इसलिए पूरक आरोप-पत्र में एनआईए ने इनका नाम हटा दिया। जो शेष बचे हैं उनके बारे में भी एनआईए ने यही कहा है कि मकोका के तहत इनके खिलाफ मामला नहीं बनता।

गौरतलब है कि 15 अप्रैल 2015 को ही उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि मकोका के तहत इन पर मामला नहीं बनता है। इसके बावजूद एनआईए ने 2 फरवरी 2016 को कहा कि उसने गृह मंत्रालय को इस बाबद लिखा है और महाधिवक्ता से राय मांगी है। महाधिवक्ता की राय भी यही थी कि उनके खिलाफ मकोका के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। 3 फरवरी 2016 को एनआईए ने मुंबई की विशेष अदालत से कहा कि साल 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में मकोका नहीं लगाने को लेकर एक राय थी और इस बारे में अटॉर्नी जनरल की राय ली जा रही है। कानून मकोका सिर्फ ऐसे अपराधियों के खिलाफ लगाया जाता है, जो संगठित अपराध में शामिल होते हैं और उनके खिलाफ एक से अधिक मामले दर्ज हों।

जिसको एनआईए के आरोप-पत्र और कदम पर आपत्ति है उनके लिए न्यायालय जाने और इसे चुनौती देने का दरवाजा खुला है, लेकिन एनआईए ने आरोप पत्र दायर करने में काफी समय लिया है। इसलिए वह कच्चा काम नहीं कर सकती। वर्तमान सरकार पर इन लोगों को बचाने तथा संघ परिवार को हिंदू आतंकवाद के आरोपों से मुक्त करने के लिए ऐसा करने का आरोप भी राजनीतिक तौर पर लगाया जा रहा है, लेकिन कोई यह नहीं बताता कि आखिर जिन लोगों पर पहले महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ता या एटीएस ने और बाद में 2011 से एनआईए ने आरोप लगाया या गिरफ्तार किया उनके खिलाफ सबूत क्या थे। वास्तव में आरोप-पत्र में उस समय के एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की जांच में कई खामियां होने के साथ ही गवाहों पर दबाव बनाए जाने की बात भी कही गई है। यह आरोप भी सामान्य नहीं है। इसमें जांच एजेंसी पर यह संगीन आरोप भी लगाया गया है कि कर्नल पुरोहित को गिरफ्तार करने से पहले उनके घर में विस्फोटक रखा गया था ताकि उन्हें फंसाया जा सके। आरोप-पत्र में कहा गया है कि आरोपियों को मालेगांव धमाकों की साजिश की जानकारी तक नहीं थी। एनआईए का मानना है कि कर्नल प्रसाद पुरोहित के खिलाफ पेश सबूत पूरी तरह गलत थे। एनआईए ने कहा है कि हमारे पास सबूत है कि आरडीएक्स विस्फोट के बाद प्लांट किया गया था। सेना की कोर्ट आॅफ इन्क्वायरी की जांच में भी कर्नल पुरोहित तो सैन्य खुफिया विभाग में थे, कुछ भी असंगत नहीं मिला। वे आतंकवादी संगठनों से संपर्क बनाते थे तो इसकी जानकारी बड़े अधिकारियों को होती थीं।

2011 में एनआईए के पास यह केस स्थानांतरित होने के पहले महाराष्ट्र एटीएस ने 16 लोगों को गिफ्तार किया था। साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के अलावा, शिवरानायण कालसांगरा, श्याम साहू, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय, राकेश धावड़े, जगदीश म्हात्रे, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और प्रवीण को गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में 2007 के समझौता विस्फोट के आरोपी रामचंद्र कालसांगरा और संदीप डांगे का नाम भी है। ये लोग पुलिस की पहुंच से बाहर हैं। 20 जनवरी, 2009 और 21 अप्रैल, 2011 को 14 आरोपियों के खिलाफ मुंबई  कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। एनआईए ने सभी आरोपियों, गवाहों और सबूतों की फिर से जांच की। कई लोगों के नए सिरे से बयान भी दर्ज किए। तो आज का सच यह है और 14 लोग लंबे समय से जेल में बंद हैं।

अब यह सवाल उठेगा कि अगर ये अपराधी नहीं हंै तो फिर इन हमलों के असली अपराधी कौन हैं? दूसरे यदि पूर्व की छानबीन और गिरफ्तारी गलत थी तो आज की कैसे सही मान ली जाए? उस समय यदि संप्रग सरकार ने एनआईए और एटीएस का दुरुपयोग किया तो आज इसका दुरुपयोग नहीं हो रहा यह कैसे स्वीकार कर लिया जाए? साथ ही ऐसा किया गया तो क्यों? ये सवाल स्वाभाविक हैं। दूसरे और तीसरे सवाल का उत्तर आरोप-पत्र में है जिसमें विस्तार से एक-एक बिंदु की चर्चा की गई है। और सबसे बड़ी बात की न्यायालय की मॉनिटरिंग है। वह तो गफलत में नहीं आ सकता। वास्तव में अब जो हुआ है वही सच है। ऐसा संभवत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार को आतंकवादी घोषित कर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने के इरादे से किया गया। यह देश का दुर्भाग्य था कि इस तरह हिंदू आतंकवाद शब्द के कारण हमने पाकिस्तान को बोलने का अवसर दे दिया। वह बातचीत में बार-बार समझौता एक्सप्रेस विस्फोट का मुद्दा उठाता है।
 

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