-राजीव रंजन तिवारी
-विश्लेषक
बेशक, भारत और ईरान के बीच के नए रिश्ते की शुरुआत काबिल-ए-तारीफ है। पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान की अपनी पहली यात्रा में चाबहार बंदरगाह के विकास तथा भारत-अफगानिस्तान-ईरान पारगमन एवं परिवहन के ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर के साथ पुराने मित्र देश ईरान के साथ एक समग्र आर्थिक एवं सामरिक साझेदारी की नई इबारत लिखी है। मोदी और ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी ने आतंकवाद एवं मजहबी कट्टरपन के खिलाफ मिलकर लड़ने के एलान के साथ क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता का संकल्प लिया। इस दौरान ईरान के साथ महत्वाकांक्षी चाबहार बंदरगाह परियोजना (पोर्ट) के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे भारत की अफगानिस्तान तक सीधे संपर्क के साथ-साथ मध्य एशियाई देशों तक पहुंच बढ़ेगी।
चाबहार बंदरगाह पहुंचने के बाद इन देशों के साथ ईरान के माध्यम से रेल और सड़क संपर्क संभव हो सकेगा। मोदी तथा रूहानी की मौजूदगी में दोनों देशों ने चाबहार परियोजना के साथ 11 अन्य समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए। चाबहार बंदरगाह को विकसित करने की परियोजना पर लगभग 50 करोड़ डॉलर की लागत आएगी। इससे ईरान के सड़क मार्ग से अफगानिस्तान के जारांज तक की 883 किलोमीटर की दूरी तय की जा सकेगी। भारत साल 2009 में जारांज से देलारम तक सड़क बना चुका है, जो अफगानिस्तान के गारलैंड हाईवे तक जाती है। इससे अफगानिस्तान के चार प्रमुख शहरों हेरात, कंधार, काबुल तथा मजार-ए-शरीफ तक संपर्क बन जाएगा। उधर, इस डील और पीएम मोदी की ईरान यात्रा को लेकर पाकिस्तान की ओर से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन कहा जा रहा है कि पाकिस्तान में इसे लेकर बौखलाहट है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी लच्छेदार भाषणकला से ईरान को भी भावनात्मक रूप से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि भारत और ईरान की दोस्ती नई नहीं है, बल्कि दोनों देश सदियों से कला, वास्तुकला, विचार-परंपरा, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक रूप से आपस में जुडेÞ हैं। मित्र व पड़ोसी के नाते दोनों देश एक-दूसरे के विकास एवं समृद्धि में भागीदार हैं और एक दूसरे का दुख-सुख साझा करते हैं। मोदी ने वर्ष 2001 में गुजरात में भूकंप के समय ईरान की मदद को याद करते हुए कहा कि ईरान के मुश्किल समय में भारत को उसका साथ देने के लिए गर्व है। उधर, पाकिस्तान ने भारत के प्रोडक्ट्स को सीधे अफगानिस्तान और उससे आगे जाने की इजाजत नहीं दी है। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर तो चीन का ही कब्जा है। चाबहार पोर्ट खुलने के बाद भारत की पहुंच अफगानिस्तान और रूस के साथ-साथ यूरोपियन कंट्रीज तक होगी, पाकिस्तान और चीन को भारत का जवाब होगा। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि चाबहार के रणनीतिक बंदरगाह के निर्माण और परिचालन संबंधी वाणिज्यिक अनुबंध पर समझौते से भारत को ईरान में अपने पैर जमाने और पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान, रूस और यूरोप तक सीधी पहुंच बनाने में मदद मिलेगी। कांडला एवं चाबहार बंदरगाह के बीच दूरी दिल्ली से मुंबई के बीच की दूरी से भी कम है। इसलिए इस समझौते से हमें पहले वस्तुएं ईरान तक तेजी से पहुंचाने और फिर नए रेल एवं सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान ले जाने में मदद मिलेगी। जानकार मानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में 2003 में चाबहार बंदरगाह बनाने के लिए आरंभिक समझौता किया गया था, लेकिन यह सौदा बाद के वर्षों में आगे नहीं बढ़ पाया। पिछले एक साल में इसे तेजी से आगे बढ़ाया गया, जिसकी वजह से आज पहले चरण के लिए समझौता हुआ। यह ऐतिहासिक मौका है जो विकास का एक नया दौर शुरू करेगा। भारत अब बिना पाकिस्तान गए अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप जा सकेगा। कहा जा रहा है कि भारत अफगानिस्तान के भीतर एक और सड़क नेटवर्क के निर्माण के लिए वित्तपोषण करेगा, जिससे ईरान को अपेक्षाकृत छोटे मार्ग के जरिए ताजिकिस्तान तक जुड़ने में मदद मिलेगी।
खास बात यह है कि पंद्रह साल में पहली बार भारत के किसी प्रधानमंत्री का तेहरान जाना हुआ। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा की अहमियत केवल इस लंबे अंतराल से जाहिर नहीं होती। उनकी इस यात्रा को ऐतिहासिक माना जा रहा है, तो इसके और भी कई कारण हैं। वे तेहरान ऐसे वक्त गए, जब ईरान को अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक प्रतिबंधों से निजात मिले चार महीने हो चुके हैं। यानी अब दोनों पक्ष द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के कदम बेहिचक उठा सकते हैं। उन्हें पश्चिमी देशों की नाराजगी नहीं झेलनी होगी। अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति रहते ईरान के सबसे तकरार भरे रिश्ते अमेरिका के साथ थे। ईरान की कमान हसन रूहानी के हाथ में आने के बाद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से उसके संबंध तेजी से सुधरे। रूहानी विवादित परमाणु कार्यक्रम को बंद करने के लिए राजी हुए और बदले में ईरान पर चले आ रहे प्रतिबंध हटे। इसे ध्यान में रखना जरूरी है, क्योंकि एटमी विवाद के अरसे में ऐसे भी मौके आए जब भारत का रुख ईरान को रास नहीं आया होगा। आईएईए यानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में भारत ने दो बार ईरान के खिलाफ वोट दिया था। पर उन कड़वी यादों को पीछे छोड़ कर दोनों देश आपसी सहयोग के एक नए मुकाम पर खड़े हैं।
अब तक भारतीय चीजें पाकिस्तान के जरिए अफगानिस्तान तक पहुंचती हैं। इसी परियोजना के जरिए भारतीय सेंट्रल एशिया और पूर्वी यूरोप तक सामान भेज सकता है। ऐसे में यह पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा रणनीतिक नुकसान है। पाकिस्तान के लिए खतरा यह है कि व्यापार में भारत-ईरान-अफगानिस्तान का सहयोग, रणनीति और अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ेगा और इसके पाकिस्तान के लिए नकारात्मक नतीजे निकलेंगे।