29 Mar 2024, 07:13:50 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-ऋतुपर्ण दवे
- समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।

पांच राज्यों के चुनाव नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं, अलबत्ता कुछ अपेक्षित, कुछ अभूतपूर्व जरूर कहे जा सकते हैं। चौंकाने वाली बात अगर है तो वह यह कि तीन राज्य ऐसे हैं जहां न कांग्रेस और न ही भाजपा सत्ता में आई या लौटी। क्षेत्रीय दलों ने अपना परचम लहराया है वो भी दो ने दमदार वापसी करके। लगता नहीं कि राष्ट्रीय राजनीति में नए विकल्पों की संभावनाओं को, इन परिणामों ने बलवती कर दिया। अव्वल तो ये
कि क्या इन चुनाव परिणामों की गंभीरता या संकेतों को नजर अंदाज करना राष्ट्रीय दलों की चुनौती बन सकती है? क्या यह नहीं कि भारतीय मतदाता प्रयोगधर्मी है, उसकी यही विशेषता राजनीति के क्षत्रपों और दलों को जब-तब पटकनी देती रहती है? राष्ट्रीय राजनैतिक दल, इससे कितना चिंतित हैं नहीं पता लेकिन आंकड़े और संकेत तो यही कहते हैं कि 2017 के चुनावों के बाद राष्ट्रीय राजनीतिक धरातल पर गठबंधन की राजनीति फिर उफान मारते जरूर दिखेगी। इन नतीजों के बाद भाजपा जरूर बहुत जोश में दिख रही है, यकीनन पूर्वोत्तर में कमल का खिलना उसके लिए बड़ी उपलब्धि है। लेकिन यह नहीं भूलना होगा, पांच में से तीन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मजबूती ने यह जतला दिया है कि 2019 के आम चुनावों तक एक बार फिर गठबंधन की राजनीति देश के राजनैतिक घटनाक्रम में अहम होगी। संकेत कुछ ऐसी ही दिख रहे हैं क्योंकि 2017 में 7 राज्यों के चुनाव होने हैं, लगभग सभी जगह क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। इनमें कई जगह क्षेत्रीय दल स्वयं के बलबूते या फिर राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन करके सत्ता में भागीदार हैं और कुछ अभी से भविष्य के सपने संजो रहे हैं। 2017 में जहां चुनाव होने हैं उनमें कई जगहों पर क्षेत्रीय दलों की स्थिति बेहद मजबूत है या होती जा रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी,
पंजाब में अकाली दल, आम आदमी पार्टी, मणिपुर में मणिपुर पीपुल्स पार्टी, फेडरल पार्टी आॅफ मणिपुर, वहीं हरियाणा में  नेशनल लोकदल, हरियाणा जनहित कांग्रेस, हरियाणा विकास पार्टी,  गुजरात में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस), आम आदमी पार्टी गोवा में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, गोवा विकास पार्टी, आॅल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी का राष्ट्रीय दलों के लिए चुनौती या गठबंधन का सहयोगी बनना तय है। इससे ये नहीं लगता कि 2019 के आम चुनावों में एक बार फिर गठबंधन की राजनीति यह एक संयोग ही है कि मोदी सरकार के पहले दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान दिल्ली का इत्तेफाक, बिहार की हार और उत्तराखंड में हुई जल्दबाजी की रार के बाद 2016 में पूर्वोत्तर में पहली बार असम में भाजपा की सरकार, बहुत बड़ी उपलब्धि है।

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में सीटों में वृध्दि के साथ वोट प्रतिशत बढ़ना और केरल में खाता खुलना ऐसी उपलब्धि है जिसने पुराने सारे घावों पर मरहम का काम किया। लेकिन केन्द्र शासित पुड्डुचेरी में कांग्रेस ने जीत कर इस चुनावी दंगल में अपनी उपस्थिति को कायम रखा है। इन नतीजों के बाद सबसे रोचक बात यह सामने आई है कि जिन 3 मुख्यमंत्रियों की ताजपोशी तय है, तीनों ही कुंवारे हैं। नए चेहरे के रूप में असम के सर्वानंद सोनवाल हैं जो कि अविवाहित हैं। वहीं ममता बनर्जी और जयलिलता भी कुंवारी हैं।

असम में भाजपा गठबंधन ने जिसमें असम गणपरिषद और बोडो पीपुल्स फ्रंट साथ थे, 15 वर्षों से काबिज कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया। स्थानीय मद्दों पर ही असम में 80 प्रतिशत वोट पड़ने के बाद से ही यह लगने लगा था कि यहां पर नया वोट बैंक अपना असर दिखाएगा जो कि युवाओं और महिलाओं का था। बेदाग छवि के सर्वानंद सोनवाल  जो स्वयं ट्राइबल जाति से आते हैं। पश्चिम बंगाल में ममता की जीत की असल इबारत तो 2015 के स्थानीय चुनावों में लिखी जा चुकी थी जब 92 स्थानीय निकायों में से 70 पर तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा को 6, कांग्रेस को 5 जबकि 11 ऐसे नगरीय निकाय है जहां पर किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। राजनीतिक पंडितों ने तभी बता दिया था कि 2016 में ममता की जबरदस्त वापसी होगी लेकिन इतनी जबरदस्त होगी यह असल अंदाज, किसी को भी नहीं था। ममता  का दबदबा जस का तस रहा। ममता की लोकप्रियता और कार्यशैली उसी वक्त समझ में आ गई थी जब 2011 में उन्होंने 34 वर्षों से काबिज वाम मोर्चे की जड़ें हिलाकर रख दीं और इस बार उसे तीसरे तमिलनाडु में 32 वर्षों के बाद ऐसा हुआ है कि लगातार दोबारा किसी की सरकार बनने जा रही है। वहां उनके खिलाफ कोई एंटी इंकबेन्सी लहर भी नहीं थी। केरल में कांग्रेस नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट(यूडीएफ) जो कि अब तक सत्ता में रहा बहुत से भ्रष्टाचारों के आरोप से जूझ रहा है। ओमन चांडी की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में लिप्त रही। चुनावों में उसके लिए यही सबसे बड़ा मुद्दा रहा जो अंतत: ले डूबा।   हां इतना जरूर है कि मोदी सरकार की दूसरी सालगिरह का जश्न, भाजपा को नई उड़ान देने के लिहाज से जबरदस्त होगी। लेकिन कांग्रेस मुक्त भारत का सपना कैसे कामियाब होगा यह जरूर समझ से परे है।

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