-वीना नागपाल
वह बच्चे-बच्चियां बहुत आहत होते व पीड़ा भोगते हैं जिनके साथ उनके मासूम बचपन में दुर्व्यवहार और अशिष्टता हो जाती है। लगभग रोज ही समाचार होता है कि बच्चियों के साथ न केवल गलत काम हुआ बल्कि उन्हें धमकाकर डराया भी गया यदि उन्होंने किसी को यह बात बताई तो उन्हें मार दिया जाएगा या क्रूरता से पीटा जाएगा। यह मासूम बच्चे-बच्चियां दोहरी पीड़ा भोगते हैं। एक तो उन्हें ऐसा महसूस होता रहता है कि उनके साथ जोर-जबरदस्ती की जा रही है दूसरे वह मानसिक रूप से भयग्रस्त रह कर मन ही मन घुटते रहते हैं।
जब उनकी पीड़ा व उनका दुख बर्दाश्त से बाहर हो जाता है तो वह रो-रोकर अपने माता-पिता को अपने साथ होने वाले अमानवीय दुर्दान्त व्यवहार का ब्यौरा देते हैं। अभी तो एक ही बात अच्छी हो रही है कि माता-पिता अपने बच्चों के साथ होने वाली अशिष्टता के विरुद्ध शिकायत करने पुलिस थाने तक पहुंचते हैं। पर, यहां भी एक मुसीबत व कठिनाई होती है। छोटी व भोली उम्र के बच्चे पुलिस थाने पर जाकर बहुत डर व सहमे रहते हैं। उनको वह माहौल बहुत अपरिचित व किसी हद तक खौफनाक भी लगता है। वह अपना मुंह खोलने में भी झिझकते हैं और आपबीती नहीं बता पाते। इसके लिए एक पहल की गई है और यह किसी हद तक सकरात्मक भी लग रही है। छत्तीसगढ़ पहला ऐसा राज्य है जिसने यह प्रयोग शुरू किया है। छत्तीसगढ़ के कमीशन फॉर प्रोटेक्शन आॅफ चाइल्ड राइट्स (संक्षेप में बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए बनाए कमीशन) के प्रत्येक जिले के पुलिस थाने में एक किड्स कॉर्नर अर्थात बच्चों के लिए एक विशेष स्थान बनाएं जाने की कोशिश की है। इस स्थान को सुंदर चटकीले रंगों से पेंट कर इसमें कार्टून कैरेक्टर्स का चित्रण भी किया गया है। उड़ते हुए पक्षी हैं तो फूल भी चित्रित किए गए हैं। मिकी माऊस है तो जेरी व माऊस उसकी स्थाई दुश्मन टॉम कैट भी है। रायपुर, दुर्ग व बिलासपुर के पुलिस थानों में यह किड्स कॉर्नर बना दिए गए हैं पर, महासमुंद के तो सारे पुलिस थानों पर इन्हें बना कर पूरा कर लिया गया है। इस संस्था की अध्यक्षा शताब्दी पांडे ने कहा बहुत दुख की बात है कि बच्चों के प्रति किए जाने वाले अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है व उनके अधिकारों का इतना अधिक हनन हो रहा है इसलिए इन अपराधों के विरुद्ध की जाने वाले शिकायतों के कारण बच्चों को पुलिस थानों में आना पड़ा रहा है। इसलिए बच्चों को यहां पर अधिक से अधिक सहज व स्वभाविक तथा मैत्री पूर्ण वातावरण मिलना चाहिए जिससे कि वह खुल कर अपनी बात कह सकें। बच्चों के लिए जितना अधिक सहज व संवेदनशील माहौल मिलेगा उतना ही अधिक वह अपने साथ हुए हादसे को बताने में डरे व सहमे नहीं रहेंगे। यही नहीं बल्कि पीड़ित बच्चों से बात करने वाले पुलिस अधिकारियों और यहां तक कि सिपाहियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे कि वह बच्चों से स्नेह व प्रेम से पेश आएं। इनमें महिला पुलिस की विशेष भूमिका होगी। इस सारी बात का जिक्र इस सत्य के प्रति आशान्वित करता है कि बच्चों के साथ जो अप्रिय घटनाएं हो रही हैं उनकी पूरी पड़ताल कर जल्दी से जल्दी अपराधियों तक पहुंच कर उन्हें दंड दिया जा सके जिससे समाज में यह संदेश जाएगा कि इस हद दर्जे की गिरी हुई मानसिकता को बर्दाशत नहीं किया जाएगा। कल्पना भी नहीं की जा सकती उस बच्चे के दुख-दर्द की। जिसे इस दुर्व्यवहार का टारगेट बनाया जाता है। बच्चे अपनी उम्र व मासूमियत के कारण सबसे अधिक असुरक्षित हैं। उनको ऐसे अप्रिय व्यवहार से बचाना हम सबका दायित्व है। इन बाल फें्रडली थानों को बनाने की नीति प्रत्येक राज्य को लागू करना चाहिए कि ऐसे अपराध करने का दु:साहस करने में अपराधी डरें।