-वीना नागपाल
दूर के एक परिचित का परिवार सिंहस्थ के लिए आया और पर्व स्नान के लिए उज्जैन पहुंच गया। इस यात्रा से वापस आकर जो कुछ उन्होंने बताया वह वास्तव में एक सुखद आश्चर्य का विषय था और उस पर गर्व करने जैसा भी लगा।
इस परिवार में लगभग 11-12 सदस्य थे और कुछ मित्र भी शामिल थे। पर्व स्नान के दौरान भीड़ थी पर, घाट पर जाने के लिए स्वयंसेवक व पुलिस वाले पंक्तिबद्ध रहकर जाने की समझाइश दे रहे थे। आश्चर्य की बात यह थी कि सब शांति से पंक्तिबद्ध हो रहे थे और कोई किसी को धकेलकर आगे जाने की कोशिश नहीं कर रहा था और धक्का-मुक्की भी नहीं हो रही थी। सब अपनी बारी आने की प्रतिक्षा कर घाट पर पहुंच रहे थे। पंक्तियां तो दो या तीन की बनाई गई थीं, पर किसी पंक्ति में जल्दबाजी नहीं हो रही थी। पंक्ति में बच्चे, बूढे, जवान सभी शामिल थे, पर किसी ने भी आगे जाने की बेसब्री नहीं दिखाई। इस बात को सुनकर बहुत आश्चर्य हो रहा था नहीं तो ऐसा सामान्यता या भारतीय चरित्र में संभव नहीं होता। सबको बहुत जल्दबाजी रहती है, सब्र से प्रतीक्षा करना आता ही नहीं है। पता नहीं उनका कौन सा कार्य रुका होता है कि उसे पूरा करने की जल्दबाजी उन्हें क्यूं (पंक्ति) में ही सूझती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सड़कों पर लगे रेड सिग्नल हैं, जिन पर इन्हें रुकना ही नहीं आता और उसे तोड़कर पता नहीं किस काम को करने की शीघ्रता दिखाते हैं। यदि सामने वाला वाहन एक सेकंड भी देरी कर दे तो यह हॉर्न बजा-बजाकर आसमान सिर पर उठा लेते हैं। खैर! बात हो रही थी सिंहस्थ की। मेला स्थल पर जगह-जगह डस्टबिन (कूड़ेदान) लगाए गए हैं। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं मेला क्षेत्र में घूम-घूमकर लोगों को कूड़ा तथा कचरा कूडेÞदान में डालने की समझाइश दे रहे हैं। इन संस्थाओं में अच्छी-खासी संख्या में बच्चे भी सदस्य हैं, जो सफाई रखने की गुजारिश लोगों से करते हैं और लोग भी मुस्कराकर उनकी बात सुन रहे हैं। मेला क्षेत्र में इधर-उधर पन्नियां नहीं उड़ रही हैं। घाटों पर लोग केवल पुण्य अर्जित करने के लिए डुबकियां अवश्य लगाते हैं, पर शेम्पू व साबुन का प्रयोग स्वयं ही नहीं कर रहे हैं। घाटों की सीढ़ियां धुलती हैं और साफ रहती हैं। शेष सारी व्यवस्था पर जो भी बात की जाए वह तो अपनी जगह है पर, विशेष बात तो बच्चों को लेकर है जो स्वच्छता अभियान से जुड़कर इस तरह उसे सफल बना रहे हैं। यह बहुत बड़ी बात है, क्योंकि इन बच्चों की पूरी भावी पीढ़ी तैयार हो रही है, जिसका समर्पण स्वच्छता बनाए रखने में है। इन्हें सिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि इन्हें पंक्तिबद्ध रहना है। अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करना है बल्कि इन्हें स्वभाविक रूप से पंक्तिबद्ध खड़े होना आ जाएगा। यह तो वह पीढ़ी तैयार हो जाएगी जो स्वयं कहीं भी गंदगी या अस्वच्छता देखेगी तो उसे तुरंत साफ करने की चेष्ठा करेगी। जो स्वयंसेवी संस्थाएं यह कार्य कर रही हैं वह तो बधाई की पात्र हैं ही, पर उन्होंने अपने साथ जो बच्चों को जोड़ा है वह उससे भी बड़ा बधाई का मूल्यवान कार्य है, क्योंकि उन्होंने पाठ्यक्रम सफाई का पाठ रटने के स्थान पर बच्चों को उसकी व्यवहारिक शिक्षा का पाठ पढ़ा दिया है।
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