- आर.के. सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।
अचानक से देश में मेडिकल नेगलिजेंस के केस तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। मेडिकल नेगलिजेंस यानी डाक्टरों की तरफ से इलाज में गई लापरवाही। हालत बदतर होते जा रहें है। एक तो हमारे चिकित्सा क्षेत्र की हालत बेहद लचर है, ऊपर से मेडिकल नेगलिजेंस के मामले। कुछ समय पहले ही एक खबर पढ़ी। उसमें बताया गया था कि किस तरह से पंजाब में मेडिकल नेगलिजेंस के सबसे ज्यादा केस सामने आ रहे हैं। इस लिहाज से पंजाब के बाद पश्चिम बंगाल रहा फिर महाराष्ट्र और तमिलनाडु रहे। दरअसल 8 वीं सालाना मेडिको लीगल रिव्यू की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार मरीजों को अस्पताल से ही दवा खरीदने के लिए मजबूर करने के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है।
इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिसिन एंड लॉ (आईएमएल) की तरफ से जारी इस रिपोर्ट में मरीजों की ओर से की गई सामान्य शिकायतों में ज्यादातर अस्पतालों या डॉक्टरों का इलाज का पूरा खर्च बताने में नाकाम रहना, मरीजों से इलाज का ज्यादा पैसा वसूलना, जरूरत नहीं होने पर भी महंगी दवाइयां लिख देना और अलग तरह के कमरे या किसी तरह की सुविधा के लिए ज्यादा शुल्क जमा करना शामिल है। मुझे लगता है कि साल 2013 में शायद पहली बार देश को मेडिकल नेगलिजेंस के पहले किसी बड़े केस के बारे में पता चला था। सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के एक अस्पताल और तीन डॉक्टरों को साल 1998 के मेडिकल नेगलिजेंस के एक केस में आदेश दिया था कि वे अमेरिका में बसे भारतीय मूल के एक डॉक्टर कुणाल साहा को 5.96 करोड़ रुपए बतौर मुआवजा दें। इलाज में लापरवाही की वजह से डॉक्टर कुणाल साहा की पत्नी अनुराधा साहा की एएमआरआई अस्पताल में मौत हो गई थी। डॉक्टर साहा एड्स के रिसर्चर हैं।
जस्टिस एस.जे. मुखोपाध्याय और जस्टिस वी गोपाल गौड़ा की बेंच ने अस्पताल और तीनों डॉक्टरों से कहा था कि वे डॉक्टर साहा को मुआवजा दें। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने साल 2011 में डॉक्टर साहा को 1.73 करोड़ रुपए दिए जाने का आदेश दिया था। ताजा स्थिति यह है कि बेचारा रोगी ग्राहक हो गया है। उसे लूटा जा रहा है। सरकार को बेवजह टेस्ट करवाने की महामारी पर काबू पाने के अलावा मेडिकल नेगलिजेंस के बढ़ते मामलों पर भी दोषी डाक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। मेडिकल कालेजों में जितनी सीटें बढ़नी चाहिए उतनी नहीं बढ़ रहीं। दवा कंपनियों की लूट का खेल जा जारी है। सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र पर गंभीरता से फोकस करना होगा। सरकार को नए मेडिकल कालेज और नए अस्पताल गांवों से लेकर मेट्रो शहरों में बनाने होंगे। इस तरह के मामलों को लेकर एक बहस अवश्य शुरू हो गई थी। बहरहाल, डाक्टर बिरादरी को कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। चिकित्सीय लापरवाही का हर मामला इस बात की गवाही है कि कमी मेडिकल पेशे से जुड़े लोगों की है। लापरवाही डाक्टर,नर्स या किसी अन्य मेडिकल स्टाफ की हो सकती है। इस लापरवाही को हर हालत में खत्म करना होगा। अपनी जिम्मेदारी से मेडिकल क्षेत्र के पेशेवर बच नहीं सकते। यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब दिल्ली के कलावती सरन अस्पताल में मेडिकल नेगलिजेंस का एक बेहद गंभीर मामला सामने आया था। मेडिकल नेगलिजेंस से हटकर मैं एक जरुरी बात और करना चाहता हूं। क्या ये बात किसी से छिपी है कि पैसे कमाने के लिए बहुत से डाक्टर रोगियों को तमाम गैर-जरूरी टेस्ट करवाने के लिए कहते हैं? क्या मेडिकल पेशे से जुड़े संगठनों को इन धूर्त प्रवृति के डाक्टरों को कसना नहीं चाहिए? हां, अब कुछ डाक्टर भी अपनी बिरादरी के खिलाफ लड़ने लगे हैं। आवाज बुलंद करने वाले सवाल पूछ रहे हैं कि रोगियों के अनाप-शनाप टेस्ट क्यों करवाए जाते हैं। वे इन टेस्ट को बंद करने की जोरदार तरीके से वकालत कर रहे हैं। किसी डाक्टर को कायदे से रोगी को कितने टेस्ट करवाने के लिए कहना चाहिए? बेशक, इस सवाल का जवाब तो डाक्टर ही दे सकते हैं, पर रोगियों को अनेक टेस्ट करवाने के लिए कहना अब रोगियों और उनके संबंधियों के लिए जी का जंजाल बन चुका है। उस दीन-हीन रोगी को मालूम ही नहीं होता कि जिन मेडिकल टेस्ट को करवाने के लिए उसे कहा जा रहा है,उसकी कितनी उपयोगिता है।
चूंकि डॉक्टर साहब का आदेश है तो उसका पालन करना उस बेचारे रोगी के संबंधियों का धर्म है। शायद ही कोई बहुत भाग्यशाली परिवार या शख्स हो जिसे बीमार होने की हालत में डॉक्टर ने बहुत से टेस्ट करवाने के लिए नहीं कहा हो। इस प्रवृति के खिलाफ राजधानी के एम्स के प्रख्यात कार्डियालोजिस्ट डॉ. बलराम भार्गव ने मुहिम छेड़ दी है। इसमें सर गगांराम अस्पताल के गेस्ट्रो विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डा. समीरन नंदी भी पुरजोर तरीके से सक्रिय हैं। डॉ. भार्गव ने अपनी मुहिम को नाम दिया है सोसायटी फॉर लेस इनवेस्टिगेटिव मेडिसिन। डॉ. भार्गव को इस मुहिम को शुरू करने के लिए लगभग बाध्य होना पड़ा। क्योंकि उन्हें हर रोज तमाम लोग मिलने लगे जो उन्हें डाक्टरों के अनेक टेस्ट करवाने की शिकायतें कर रहे थे। पर जब पानी सिर के ऊपर से निकला तो वे रणभूमि में कूद पड़े। उसका जबरदस्त असर हुआ। उनके साथ अनेक डाक्टर आ गए। सबकी राय थी कि एक छोटे से वर्ग के कारण पूरी मेडिकल बिरादरी बदनाम हो रही है। कुल मिलाकर इस मसले पर मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को कड़े फैसले लेने होंगे। अब ये कौन नहीं जानता कि मेडिकल क्षेत्र में ईमानदारी लाने की बड़े स्तर पर जरूरत है। इस काम को कौन कर सकता है,ये भी सबको पता है। जाहिर है, सरकार और मेडिकल बिरादरी को इस लिहाज से आगे आना होगा। फिर देर किस बात की है जनता प्रभावी निर्णय के इंतजार में है।