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उत्तराखंड भाजपा पर कितना भारी पड़ेगा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 12 2016 10:03AM | Updated Date: May 12 2016 10:03AM
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-ऋतुपर्ण दवे
राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं।


उत्तराखंड में देश की सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद हरीश रावत सरकार का विधान सभा में बहुमत साबित करए 33 मत हासिल करनाए भाजपा के लिए बड़ा झटका है। लेकिन राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के तौर तरीकों पर एक बार फिर से बड़ी बहस शुरू गई है। मंगलवार को दो घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन हटाने के बाद हुए फ्लोर टेस्ट के बाद ही साफ हो गया था कि रावत सरकार ने बहुमत हासिल कर लिया है। लगता नहीं कि कहीं भाजपा खुद ही अपने बुने जाल में तो नहीं उलझ गई। बड़ा सवाल यह भी कि कितना वाजिÞब था राष्ट्रपति शासन का लगाया जाना हो सकता है कि अब वहां पर हरीश रावत आनन-फानन में विधान सभा भंग करने का फैसला ले लें और चुनाव की ओर बढ़ जाएं क्योंकि उनको लग रहा है कि सहानुभूति का फायदा मिलना तय है और वो खुद को शहीद के रूप में पेश करने से नहीं चूकेंगे। भाजपा ने यह सब इतनी जल्दबाजी में किया गया कि कांग्रेस से बागवत करने वाले 9 विधायकों का साथ लेते समयए एक तिहाई संख्या बल का भी ध्यान नहीं रखा। लगता है केंद्र में भाजपा की सरकार होने के उत्साह के चलते उत्तराखंड में मौजूदा सरकार को धराशायी करते समय राज्यपाल की भूमिका को भी नजर अंदाज किया गया क्योंकि उनकी ऐसी कोई रिपोर्ट ही नहीं थी जिससे लगे कि वहां सरकार संविधान से इतर चल रही है।

बहरहाल सबसे बड़ी चूक कहें या कानूनी त्रुटि या केंद्र में सत्तासीन होने का दंभ वो ये कि भाजपा और कांग्रेस के बागी विधायकों की ओर से राज्यपाल को दिया गया एक ही पत्र जो यह साबित करने के लिए काफी था कि दोनों मिलकर सरकार को गिराने की वो  खिचड़ी पका रहे हैं जो संवैधानिक दायरों की सीमा लांघती है। यदि यही पत्र अलग-अलग दिया गया होता तो हो सकता है कि बागी विधायकों को भी फ्लोर टेस्ट में शामिल होने का मौका मिलता और परिदृश्य कुछ अलग हो सकता था। उत्तराखंड के घटनाक्रम से देश में एक बार फिर राजनीति का पारा उछाल ले रहा  है। इधर मोदी सरकार अपने दो वर्षों के कार्यकाल को पूरा करने जा रही है उधर दिल्ली का इत्तेफाक बिहार की हार के बाद 5 राज्यों के नतीजे आने से पहले उत्तराखंड की सियासत कितनी भारी पड़ेगी कहने की जरूरत नहीं क्योंकि तीन राज्यों तमिलनाडु
केरल और पुड्डूचेरी में एक ही चरण में 16 मई को मतदान होने वाले हैं। उत्तराखंड में बागियों को दिखाए सब्जबाग से जहां कई बड़े राजनीतिक नामों के भविष्य पर गहरा धुंधलका छा गया है वहीं भाजपा खुद भी ऊहापोह की स्थिति में आ गई है। कहीं न कहीं रणनीति की कमीं या जल्दबाजी जो भी हो भाजपा अपने ही बुने जाल में खुद तो नहीं उलझ गई उधर केरल में राजनीतिक बिसात बिछा रही भाजपा के लिए चुनावी दंगल में पूरी ताकत से जुटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान पर मुख्यमंत्री ओमान चांडी का पलटवार कितना असर डालेगा इसका इंतजार है। एक चुनावी सभा में कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने केरल की तुलना सोमालिया से की थी। जवाब में चांडी ने कहा कि क्या केरल देश के बाहर है? जबकि केरल पिछले पांच सालों में आर्थिक और मानव संसाधन विकास की दर में राष्ट्रीय औसत में आगे है! ऐसे में केरल की तुलना सोमालिया जैसे देश से करना जो जबरदस्त गरीबी और आंतरिक संघर्ष से जूझ रहा है कितना उचित है। कहीं न कहीं ओमान चांडी केरल के लोगों को भावनात्मक संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। इन सबके बीच 26 मई को मोदी सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे  हो जाएंगे। सरकार की लोकप्रियता और कामकाज को लेकर बहुत से सर्वे कराए जा रहे हैं। कुछ के नतीजे सामने आ गए हैं कुछ के आने वाले हैं। सभी अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं।

मीडिया अध्ययन केंद्र सीएमएस ने 15 राज्यों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 40  हजार प्रतिभागियों के बीच एक सर्वेक्षण कराया जिसका यह नतीजा सामने आया कि लगभग एक तिहाई से कम लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री ने वादे पूरे किए हैं जबकि 48 प्रतिशत का मानना है कि आंशिक रुप से पूरे किए गए हैं। लोगों के जीवन स्तर को लेकर 49 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कोई बदलाव नहीं हुआ है।  लेकिन यदि टीम वर्क का विश्लेषण किया जाए तो सबकी अपनी अलग राय है। इसके मायने ये लगाए जाएं कि कहीं न कहीं रणनीति की कमीं या अति उत्साह कहीं भाजपा के लिए मुश्किल तो नहीं उत्तराखंड का हश्र उत्तर प्रदेश में कितना असर डालेगा इसको लेकर भी भाजपा खेमें में गहन चिंता का दौर होगा जो स्वाभाविक है। यहां पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और दिलचस्प बात यह है कि कभी नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार लिए ब्रांड वैल्यू रहे प्रशांत किशोर बिहार में नीतिश कुमार के बाद अब उत्तर प्रदेश और पंजाब में कांग्रेस के साथ हैं। प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली सिटीजन फॉर एकाउंटेबल गवर्नेन्स ने ही 2014 के आम चुनावों में भाजपा के लिए रणनीति बनाई थी जिसका युवाओं को आकर्षित करने में जबरदस्त लाभ भी मिला। देखना होगा कि राजनीति में इस नए प्रयोग का अब वो उत्तर प्रदेश और पंजाब में अपने हुनर का कितना कमाल दिखा पाते हैं। 
 

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