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पठानकोट हमले पर बिल्कुल वाजिब सवाल

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 11 2016 12:22PM | Updated Date: May 11 2016 12:22PM
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-अवधेश कुमार
विश्लेषक


गृह मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति ने पठानकोट हमले के मामले में सुरक्षा विफलता को लेकर जो गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं वे हर दृष्टि से विचारणीय हैं और आंख खोलने वाले हैं। वास्तव में हम समिति की रिपोर्ट को पठानकोट हमले का वस्तुपरक निर्मम आकलन कहेंगे। यही नहीं, इसे यदि गंभीरता से लिया जाए तो ऐसे हमलों को न केवल रोका जा सकेगा बल्कि हमला होने के बाद बेहतर तरीके से मुकाबला किया जाना संभव होगा। 2 दिसंबर 2015 को पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए हमले का स्रोत पाकिस्तान था इसमें दो राय नहीं और समिति ने भी इसे स्वीकार किया है। आतंकवादी वहीं से आए थे, आने के पहले पूरी तैयारी की थी यह भी सही है। पाकिस्तान पर जांच के लिए दबाव बढ़ाना, इसके षड़यंत्रकारियों को सजा दिलाने की कोशिश करना भी बिल्कुल सही दिशा में काम करना है, किंतु दूसरी ओर यह हमें आत्मविश्लेषण को भी प्रेरित करती है कि आखिर आतंकवादी वहां तक आने और तीन दिनों तक लड़ने में सफल कैसे हो गए?

समिति ने सबसे पहले इसी प्रश्न का उत्तर तलाशा है तथा पूरी सुरक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह तो सच है कि इस हमले की सटीक खुफिया रिपोर्ट थी। यदि रिपोर्ट थी तो फिर सुरक्षा के पर्याप्त कदम समय पूर्व क्यों नहीं उठाए गए? सबसे पहले तो सीमा पर कंटीले तार, फ्लड लाइट तथा भारी संख्या में सीमा सुरक्षा बल के जवानों की तैनाती के बावजूद वे कैसे अंदर आने में सफल हुए और वह भी उतने हथियारों और गोला बारूद के साथ? यह प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर हमें अपनी विफलता के लिए शर्मसार करता है। दूसरे, यदि वे आ गए तो भी उतने हथियारों के साथ वायुसेना अड्डे तक कैसे पहुंचे? आखिर पूर्व पुलिस अधीक्षक सलविंदर सिंह का अपहरण हो गया, इसकी खबर भी फैल गई थी, लेकिन पंजाब पुलिस की कोई तैयारी है ऐसा लगा ही नहीं। यह स्थिति एक क्षण के लिए भी दिखाई नहीं दी कि पंजाब पुलिस उस घटना के बाद गंभीर हुई। यदि वह गंभीर हो जाती तो आतंकवादी रास्ते में ही घेरकर पकड़े या मारे जा सकते थे। समिति का यह कहना बिल्कुल सही है कि पंजाब पुलिस की भूमिका आरंभ से ही संदेहास्पद रही।

कुल मिलाकर संसदीय समिति का यही मानना है और यह सही भी है कि यदि सीमा से लेकर अंदर तक हमारी सुरक्षा व्यवस्था आतंकवाद के विरुद्ध जो स्तर चाहिए उस स्तर की होती तो वे हमला करने में सफल ही नहीं होते। वास्तव में पठानकोट हमले के समय ये सारे दोष स्पष्ट दिख रहे थे। यह साफ था कि खुफिया सूचना के बावजूद आतंकवाद निरोधक दस्ता को जितना सक्रिय होना चाहिए नहीं था, पंजाब पुलिस सलविंदर के अपहरण और रिहा करने के बावजूद सक्रिय नहीं थी। सबसे बढ़कर आतंकवाद से संघर्ष में जिस तरह सुरक्षा एजेंसियों में तालमेल चाहिए उसका पूरा अभाव था...। इस प्रकार निष्कर्ष यह कि पठानकोट हमला, उसमें हमारे सात जवानों की बलि तथा वायुसेना अड्डे को क्षति हमारी अपनी विफलताओं की ही भयावह परिणति थी। आखिर यह सामान्य बात है कि छह आतंकवादी उच्च सुरक्षा वाले वायुसेना अड्डे की सुरक्षा को रौंदते हुए अंदर घुस जाएं और उतने समय तक लड़ते रहें। उनका मारा जाना हमारी कोई उपलब्धि नहीं हो सकती, क्योंकि आत्मघाती आतंकवादी तो आते ही हैं मरने के लिए। वे मौत के लिए मानसिक रूप से तैयार रहते हैं, क्योंकि यह उनका लक्ष्य होता है। जो मरने आए हैं उनको मारकर आपने क्या सफलता हासिल की। सफलता तो तब मानी जाती जब सीमा पर हमारी तथाकथित उच्च स्तरीय पेट्रोलिंग की जद में वे आ जाते, या तो वहीं पकड़े जाते या मारे जाते। हमारी सुरक्षा एजेंसियां और सरकार तब पीठ थपथपा सकती थीं जब आपसी तालमेल से ट्रेस कर रास्ते में इनका काम तमाम कर देते। पहले से जारी खुफिया रिपोर्ट तो छोड़िए, पठानकोट में उनके घुसने की सूचना होने के बावजूद हम उनको अपने निशाने तक पहुंचने तथा संघर्ष करने से नहीं रोक सके। इससे बड़ी विफलता क्या हो सकती है?

हमले के बाद पंजाब सरकार को इसे प्राथमिकता में लेकर ड्रग तस्करों के खिलाफ अभियान चलाना चाहिए था जो नहीं हुआ है। केंद्र इसमें उसे सुझाव दे सकता है, आदेश नहीं। हां केन्द्र के हाथों सीमा पर सख्ती का प्रबंधन है और उसे वहां हरसंभव कदम उठाना चाहिए। समिति ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पठानकोट वायुसेना अड्डे का दौरा कर पाया कि हमले के बावजूद जिस स्तर की सुरक्षा व्यवस्था होना चाहिए, वह नहीं है। यह चिंताजनक है। वास्तव में गृह मंत्रालय को ऐसे सभी महत्वपूर्ण स्थानों की एक साथ सुरक्षा समीक्षा कराकर यथाशीध्र उसके अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था करने या कराने की पहल करनी होगी। गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा है कि सुरक्षा के जुड़े मसलों को हम गंभीरता से लेते हैं और इस मामले मेंं भी हम उचित कार्रवाई करेंगे। देखना है गृह मंत्रालय वाकई कितनी गंभीरता से संसदीय समिति की रिपोर्ट को लेता है एवं क्या-क्या कदम उठाता है। देश इसकी प्रतीक्षा करेगा।

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