- अश्विनी कुमार
लेखक पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक हैं।
केरल के एर्नाकुलम जिला के पेरम्बूर में लॉ कोर्स कर रही 30 वर्षीय दलित छात्रा के साथ निर्भया जैसा ही वीभत्स रेप कांड सामने आया है। बलात्कार के बाद उसकी जिस बेरहमी के साथ हत्या की गई, उसे देखकर किसके आंंसू नहीं बहेंगे। इस छात्रा की आंतें तक बाहर निकली हुई थीं। इस घटना से आक्रोशित लोग सड़कों पर उतर आए। इसी बीच बीएससी नर्सिंग के दूसरे वर्ष में पढ़ने वाली 19 वर्षीय छात्रा से आॅटो रिक्शा में दुष्कर्म की घटना ने केरल के लोगों को हिला कर रख दिया। शर्मसार कर देने वाली घटनाओं ने 2012 के दिल्ली में हुए निर्भया कांड की याद ताजा कर दी। निर्भया कांड पर न केवल दिल्ली बल्कि पूरा देश उबल पड़ा था। केरल में छात्र और मानवाधिकार कार्यकर्ता सड़कों पर हैं, वह दोषियों को गिरफ्तार कर दंडित करने की मांग कर रहे हैं। निर्भया की तरह लॉ छात्रा के गले, छाती और कई अन्य अंगों पर 13 जख्म हैं, कुछ रिपोर्ट में उसके शरीर पर करीब 38 जख्म होने की बात कही गई है।
इस तरह की हैवानियत सबको स्तब्ध कर देने वाली है। केरल शत-प्रतिशत साक्षर राज्य है और इसे भगवान का घर कहा जाता है लेकिन इन घटनाओं से केरल के लिए यह परिचय उपयुक्त नहीं लगता। ऐसा लगता है कि अब यह शैतान का घर बन चुका है। यह मामला संसद में भी गूंजा और सांसदों ने यहां तक कहा कि ''यदि नृशंस यौन अपराधों के मामले में मृत्युदंड दिया जाए, यदि भगवान और कानून का डर पैदा किया जाए तो ऐसी घटनाएं नहीं होंगी।'' एंग्लो इंडियन समुदाय के मनोनीत लोकसभा सदस्य रिचर्ड हे ने यह मामला पूरी ताकत से उठाया। निर्भया कांड के विरुद्ध ऐसा जनांदोलन उठ खड़ा हुआ था, जिसे जनक्रांति और सामाजिक क्रांति करार दिया गया। जिससे सत्ता के पांव हिल उठे थे। लोकसभा ने कानून पारित किया था जिसमें महिलाओं के प्रति अपराध के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया था। देश में हर वीभत्स घटना पर राजनीति होनी शुरू हो जाती है क्योंकि केरल में इस समय चुनावी माहौल है इसलिए ये घटनाएं भी राजनीति से अछूती नहीं रहेंगी लेकिन सवाल यह है कि 2012 के निर्भया बलात्कार कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के मामले में कितना सुधार हुआ है। यदि घर और सार्वजनिक परिवहन प्रणाली महिलाओं के लिए असुरक्षित हैं तो फिर उनकी सुरक्षा कैसे की जा सकती है। समान रूप से यह सवाल भी उठ रहा है कि कानून लागू करने वाली व्यवस्था में कोई सुधार हुआ है या नहीं?
ऐसी दुष्कर्म की घटनाओं पर समाज तो प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगा है लेकिन पुलिस और न्यायपालिका की व्यवस्था में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। पहले प्राथमिकी दर्ज हो, फिर जांच हो, प्रमाण जुटाए जाएं और आरोपियों को पकड़ कर जेल में डाला जाए और फिर मामला फास्ट ट्रैक अदालत के हवाले किया जाए। यद्यपि कानून तो कहता है कि यह प्रक्रिया तेजी से की जाए लेकिन केरल पुलिस ऐसा करने में नाकाम रही। घटना के 5 दिन बाद तक पुलिस ने प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की, अपराधी को ढूंढना तो क्या पुलिस ने घटनास्थल को सील तक नहीं किया। पुलिस ने काम तब शुरू किया जब लोग गुस्से में आकर पुलिस प्रमुख के कार्यालय में घुसने की कोशिश की। हालात को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। पुलिस अब कह रही है कि उसके पास आरोपी को ढूंढने के लिए बहुत कम सबूत हैं। पुलिस अब प्रमुख संदिग्ध का स्कैच जारी कर अंधेरे में तीर चला रही है। इस मामले पर राजनीति तेज होने के बाद ही मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने पीड़िता की मां और बहन से मुलाकात की। उन्होंने परिवार को आर्थिक सहायता और छोटी बहन को नौकरी की पेशकश की है, लेकिन दुष्कर्म और हत्या की घिनौनी वारदात होने के बाद किसी भी परिवार को दी गई आर्थिक सहायता उनके जख्मों को भर नहीं सकती। यद्यपि केरल के चुनावों में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा चुनावी मुद्दा बनेगा। हैरानी की बात तो यह भी है कि पूर्ण साक्षर राज्य में इस तरह की हैवानियत होती रही जबकि लड़की ने मदद की गुहार भी लगाई थी। केरल में महिलाओं के प्रति अपराध पड़ोसी राज्य तमिलनाडु से 242 प्रतिशत अधिक हैं। किसी भी समाज में किसी भी महिला से बलात्कार होना केवल उस महिला के साथ ही अन्याय नहीं बल्कि उस समाज के सभ्य होने पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। मध्यकाल में मुगलों द्वारा पराजित हिंदू राजाओं की महिलाओं और साधारण महिलाओं से बलात्कार एक आम बात थी लेकिन सभ्य भारत में बलात्कार की रुग्ण मानसिकता का भयानक रूप क्यों देखने को मिल रहा है? क्या भारत में बलात्कार करने का मानसिक रोग उत्पन्न हो चुका है। समाज को इस रोग से मुक्ति के लिए उपाय खुद भी ढूंढने होंगे।