सुधीर कुमार
-लेखक बीएचयू वाराणसी में रिसर्च स्कॉलर है।
समाज के सक्षम वर्ग का एक छोटा सा त्याग दूसरे जरुरतमंद लोगों की जिंदगी को रोशन करने की क्षमता रखता है। इसी उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते वर्ष ‘गिव इट अप’ मुहिम के तहत सक्षम लोगों से एलपीजी सिलेंडर पर सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी। इसका सुफल यह हुआ गैस सब्सिडी छोड़ने वालों में खास के साथ आम लोग भी जुड़ते गए। यह कारवां धीरे-धीरे आगे जरुर बढ़ा किंतु आज यह इस मुकाम पर पहुंच गया है कि यह मुहिम सरकार की अन्य योजनाओं को पोषण प्रदान कर रही है। सरकारी आंकड़े पर यकीन करें तो अब तक एक साल में एक करोड़ दस लाख से भी ज्यादा लोगों ने गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दी है। गैस सब्सिडी छोड़ने वाले 1 करोड़ लोगों में से लगभग आधे लोग महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश,दिल्ली,कर्नाटक और तमिलनाडु के हैं।
इनमें सबसे आगे महाराष्ट्र है जहां के 16 लाख लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ी। जबकि यूपी के 13 लाख तथा दिल्ली के 7 लाख से ज्यादा लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी है। जैसे-जैसे लोगों में जागरुकता आ रही है और उनका अंतरमन साथ दे रहा है वैसे-वैसे लोग इस दिशा में अपना सार्थक कदम बढ़ा रहे हैं। देशभर में इतने लोगों के सब्सिडी छोड़ने की वजह से सरकार को करीब 5 हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है।अब सरकार इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए सब्सिडी छोड़ने वाले लोगों के त्याग से एकत्रित धन से देश के करोड़ों बीपीएल परिवारों को एलपीजी की मुफ्त सेवाएं देकर जलावन के परंपरागत स्रोतों पर उनकी निर्भरता को कम से कम करना चाहती है। उत्तर प्रदेश के बलिया में विश्व मजदूर दिवस के दिन आयोजित कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना पीएमयूवाई की औपचारिक शुरूआत की। यह योजना सिर्फ गृहणियों के स्वास्थ्य का ख्याल रखेगी बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी यह एक सार्थक प्रयास है। इस योजना के तहत अगले तीन वर्षो में गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीने वाले करीब पांच करोड़ परिवारों को नि:शुल्क एलपीजी कनेक्शन दिया जाएगा। ये ऐसे परिवार हैं जिनके लिए आज भी गैस से खाना बनाना कल्पनातीत है।
सरकार इस परियोजना पर 8 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। ग्रामीण विकास की दिशा में केंद्र सरकार का यह बड़ा कदम है। देश के गरीब तबके की महिलाओं को अब चूल्हा फूंकने की जरुरत नहीं पड़ेगी। दरअसल औद्योगिक विकास की दिशा में अग्रसर भारतीय समाज की यह बड़ी विडंबना रही है कि यहां आजादी के सात दशक बाद भी लगभग 60 करोड़ परिवार ऐसे हैं जहां आज भी पारंपरिक चूल्हे में उपले और लकड़ी का उपयोग कर खाना बनाने की विवशता है। गरीबी की वजह से वे एलपीजी सिलेंडर के सपने से भी दूर रह रहे हैं। सरकार की यह योजना लाखों महिलाओं को लंबा जीवन देगा क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उपले, लकड़ी आदि से खाना बनाने की वजह से सालाना पांच लाख महिलाओं की मौत हो जाती है, जबकि लाखों महिलाओं को आजीवन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझना पड़ता है। उनमें सांस संबंधी तथा सिर दर्द की परेशानी आम हो जाती हैं। महिलाएं इसे नियति मानकर बरदाश्त भी कर लेती हैं।
परंपरागत चूल्हे से निकलने वाले धुएं से बच्चों और बड़ों में फेफड़े की बीमारी ,हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारी होती हैं। यही वजह है कि सरकार ने इस योजना के तहत गैस कनेक्शन गृहणियों के नाम पर ही देने का फैसला किया है। पहले वर्ष में ही इस योजना से डेढ़ करोड़ गरीब गृहणियों की रसोई को एलपीजी से जोड़ा जाएगा। इसके लिए मौजूदा बजट में 2 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। गैस कनेक्शन लेने के लिए जरुरी सोलह सौ रुपए का भुगतान केंद्र सरकार की तरफ से किया जाएगा। लेकिन चूल्हा ग्राहक को स्वयं ही खरीदना होगा। कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर जिले के व्याचाकुरहल्ली गांव के देश का पहला धुआं रहित गांव बनने की खबर ने बीते साल खूब सुर्खियां बटोरी थीं। आज हर घर में रसोई गैस से खाना पकता है।
ऐसा ही प्रयास अन्य सरकारी व गैर सरकारी संगठनों को करना चाहिए ताकि जलावन के परंपरागत तरीकों के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान से गृहणियों समेत देशवासियों को सुरक्षित रखा जा सके। उज्जवला योजना के रुप में सरकार का यह कदम पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत हितकारी है। प्राचीन समय से भारतीय समाज जलावन के लिए पेड़ों के विभिन्न हिस्सों पर निर्भर रहा है। इस कारण बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई की जाती है। मालूम हो कि विश्व की एक तिहाई से अधिक आबादी केवल जलावन के लिए जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग करती है। जीवाश्म ईंधनों के अधिक प्रयोग से निकलने वाले जहरीली गैसें पृथ्वी के औसत तापमान को बढ़ा रही हैं और अंतत: इस वैश्विक तपन का दुष्प्रभाव पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है। एलपीजी सिलेंडर के साथ सौर कुकर के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाता है तो कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है। भारत में ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों के विकास की अपार संभावनाएं हैं लेकिन दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में सौर व पवन जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय साधनों का पर्याप्त विकास नहीं हो सका है। उज्ज्वला योजना की ही तर्ज पर सौर कुकर के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की दिशा में एक सरकारी योजना के शुरूआत की जरुरत है। यह किफायती भी होगा और पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के अनुकूल भी। फिलहाल उज्जवला योजना से करोड़ों गृहणियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की जा रही है। सरकार ने इस योजना से अनेक लक्ष्य साधने की कोशिश की है।