25 Apr 2024, 21:11:29 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- आर.के.सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।

कितने लोग जानते हैं कि जनसंघ के संस्थापक सदस्य बलराज मधोक और बाबा साहेब आंबेडकर में बहुत घनिष्ठ संबंध थे? दोनों के बीच लगातार हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों, भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा को देश में उसका उचित स्थान दिलवाने जैसे मसलों पर गहन संवाद होता था। दरअसल एक बार बाबा साहेब ने मधोक साहब का कश्मीर पर एक लेख पढ़ा। लेख में सारे ज्वलंत विषयों का गहन विश्लेषण था। बाबा साहेब ने डी.ए.वी. कॉलेज के प्रिंसिपल से कहा कि आप मधोक से कहें कि वे उनसे मिलें। मधोक जी डी.ए.वी. कॉलेज में पढ़ते थे। मधोक जी तुरंत बाबा साहेब से मिलने गए। और पहली ही मुलाकात तीन घंटे तक चली। इसके बाद तो दोनों के बीच 26 अलीपुर रोड पर लगातार बैठकें होने लगीं। बाबा साहेब से अपने संबंधों के बारे में मधोक साहब ने एक बार मुझे बताया था। डॉ. बलराज मधोक जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे। डॉ. मधोक दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा सांसद भी रहे।

मधोक जी ने जनसंघ का संविधान लिखा था श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर। मैं मानता हूं कि मधोक साहब ने ही सबसे पहले 1968 में राम मंदिर को हिंदुओं को सौंपने की मांग की थी। वे गौ-रक्षा आंदोलन और राम जन्म भूमि मंदिर हिंदुओं को सौंपने से जुड़े आंदोलन के अगुवा थे। उन्होंने 1947 में पाकिस्तान से कश्मीर को बचाने में खासा रोल निभाया। भारतीय सेना तो बाद में पहुंची। पहला मोर्चा तो मधोक जी के नेतृत्व में हिंदू नवयुवकों और आर. एस. एस. के  स्वयंसेवकों ने ही लिखा था। उन्होंने ही भारतीय जनसंघ की 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर स्थापना की थी। मधोक जी ने देश को सबसे पहले गौ-रक्षा का नारा दिया था। उन्होंने गौ-रक्षा की मांग को राजनीतिक मुद्दा बनाया। मधोक गौ-रक्षा की मांग लगातार करते रहे। वे देशभर में घूम-घूमकर इस मुद्दे को उठाते रहे। संभवत: मधोक ने ही सबसे पहले अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को सौंपने की मांग की थी। उन्होंने गौ-रक्षा और रामजन्मभूमि हिंदुओं को सौंपने के मसलों को संसद में भी कई बार उठाया। मधोक की राय थी कि हिंदुओं को राम जन्म भूमि सौंप दी जाए। मधोक साहब नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री देखना चाहते थे।
मधोक साहब की पुत्री मधु ने मुझे उनकी अंत्येष्टि के बाद बातचीत के क्रम में बताया कि बीते लोकसभा चुनाव के समय वे एक दिन नरेंद्र मोदी से बात करने की जिद करने लगे। घरवालों ने मोदी जी से संपर्क किया। वे कैंपेन में बिजी थे। खैर बात हो गई। तब मधोक ने मोदी जी से कहा था कि चुनाव के बाद वे ही प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होंगे और भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा।  मेरी उसे पहली मुलाकात 1966 में पटना में हुई थी। मुझे तब उनसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने मिलवाया था जो भागलपुर की संघ शिक्षा वर्ग से लौट रहे थे। मधोक साहब ही आडवाणी जी को जनसंघ में लेकर आए थे।

वाकया कुछ  एसा है कि एक दिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मधोक जी को कहा कि मुझे एक अंग्रेजी का अच्छा ज्ञाता व्यक्ति चाहिए जो हमारे प्रस्तावों को अंग्रेजी में अनुवाद कर सके। तब मधोक जी ने कहा कि मैं एक अच्छे स्वंय सेवक को जानता हूं जो करांची के कॉन्वेंट में पढ़ा है। और, अडवाणी जनसंघ में आ गए। उसके बाद का इतिहास तो सबको मालूम ही है। मधोक जी के दिल्ली के राजेंद्रनगर घर में रखी हजारों पुस्तकों को देखकर समझ आया कि वे कितने बड़े सरस्वती पुत्र थे। उनकी अंत्येष्टि के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी  समेत भाजपा के तमाम आला नेता मौजूद थे। ये इस बात का संकेत था कि मधोक से वैचारिक मतभेदों के बावजूद सब उनका हृदय से सम्मान करते हैं। मैं मानता हूं कि वे महान शिक्षाविद् विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक थे।  उन्होंने फरवरी, 1973 में कानपुर में जनसंघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने एक नोट पेश किया। उस नोट में मधोक जी ने आर्थिक नीति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर जनसंघ की घोषित विचारधारा के उलट बातें कही थीं। इसके अलावा डॉ. मधोक ने कहा था कि जनसंघ पर आरएसएस का असर बढ़ता चला जा रहा है। मधोक जी ने संगठन मंत्रियों को हटाकर जनसंघ की कार्यप्रणाली को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की मांग भी उठाई थी।

लालकृष्ण आडवाणी उस समय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे। वे मधोक की इन बातों से इतने नाराज हो गए कि आडवाणी ने मधोक को पार्टी का अनुशासन तोड़ने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से उन्हें तीन साल के लिये पार्टी से बाहर कर दिया गया। इस घटना से बलराज मधोक इतने आहत हुए थे कि फिर कभी पार्टी में वापस नहीं लौटे। दरअसल मधोक जी जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के खिलाफ थे।  मधोक ने ही संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आपातकाल के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन्होंने 1979 में जनता पार्टी से इस्तीफा देकर जनसंघ को अखिल भारतीय जनसंघ का नया नाम देकर पुनजीर्वित करने का प्रयास किया। लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। तब तक गुजरे दौर के योद्धा पर बढ़ती उम्र का असर दिखाई देने लगा था। लेकिन, वे निरंतर लेखन करते रहे। अपनी बात देश के सामने रखते रहे। राजनीति से दूर होने के बाद वे आर्य समाज के लिए वक्त निकाल ही लेते थे। बेशक मधोक की मृत्यु देश ने एक सच्चे राष्ट्र भक्त को खो दिया है।

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