- आर.के.सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।
तो अब भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद आंतकवादी हो गए। जिन्हें सारा भारत अपना आदर्श मानता रहा है, उन्हें आतंकवादी माना जाएगा। अफसोस कि आजाद भारत में अपने नायकों को हम ही इस अनादर के भाव से पेश कर सकते हैं। अगर बात भगत सिंह की हो तो वे संभवत: देश के पहले चिंतक क्रांतिकारी थे। वे राजनीतिक विचारक थे। वे लगातार लिख-पढ़ रहे थे। भारत में कोई इनसान किसी भी विचारधारा से प्रभावित क्यों ना हो या किसी राजनीतिक दल में शामिल क्यों न हो, वह भगत सिंह को लेकर एक प्रकार से आदर का भाव तो रखता होगा। भगत सिंह और बाकी क्रांतिकारियों को आतंकवादी बताए जाने पर विवाद तो खड़ा होगा ही। दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल एक किताब में भगत सिंह को एक क्रांतिकारी आतंकवादी बताया गया है। इससे अधिक अफसोसजनक बात कुछ नहीं हो सकती। दरअसल वामपंथी इतिहासकारों बिपिन चंद्रा और मृदुला मुखर्जी द्वारा स्वतंत्रता के लिए भारत का संघर्ष शीर्षक से लिखी इस पुस्तक के 20वें अध्याय में भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद, सूर्य सेन और अन्य को क्रांतिकारी आतंकवादी बताया गया है।
हैरानी इसलिए और भी हो रही है कि यह पुस्तक दो दशकों से अधिक समय से दिल्ली यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम का हिस्सा रही है। और तो और इसमें चटगांव आंदोलन को भी आतंकी कृत्य करार दिया गया है, जबकि अंग्रेज पुलिस अधिकारी सैंडर्स की हत्या को आतंकी कार्रवाई कहा गया है। मजे कि बात यह है कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से छपे इस पुस्तक के पहले संस्करण में हमारे महान शहीदों को सीधे-सीधे आतंकवादी शब्द से संबोधन किया गया है। वह तो बाद में विवाद बढ़ने पर बाद के लेखकों ने छलपूर्वक अताक्वादी के पहले क्रांतिकारी शब्द जोड़ दिया। बेशक, आजादी के 68 साल के बाद भी देश को आजाद कराने में अपने जीवन का बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों के लिए क्रांतिकारी आतंकवादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाना शर्मनाक है। एक बार तो क्रांतिकारी आतंकवादी जैसे शब्द सुनकर लगता है मानो बात ओसामा बिन लादेन या भिंडरावाला की हो रही हो। जरा यह भी देखिए और गौर कीजिये कि भगत सिंह को वामपंथी इतिहासकार आतंकवादी क्रांतिकारी बता रहे हैं। जब इनसे आप किसी मसले पर तार्किक विवाद कि बात करो तो ये आपको तुरंत असहिष्णु होने का खिताब दे देंगे। जरा इनकी राय से अलग बात करने का साहस तो दिखाइए। ये वामपंथी उसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं,जिसके तहत पूर्व सोवियत संघ, चीन, वियतनाम, उत्तर कोरिया, पूर्वी यूरोप, अफगानिस्तान वगैरह में करीब दस करोड़ लोगों को 1925 से 1990 तक इनके आकाओं ने बेरहमी से मौत के घाट उतारा था। इसलिए क्योंकि उन्ही के मूल विचारधारा के उन्ही के अपने देशों के इनलोगों ने जब कम्युनिस्ट शासकों का अत्याचार हद से बाहर हो गया अब इन्होंने अपने देशों की कम्युनिस्ट सरकारों की नीतियों को चुनौती देने की हिमाकत की थी। रूस से लेकर चीन की कम्युनिस्ट व्यवस्था को आदर्श बताने वाले बिपिन चंद्रा से लेकर मृदुला मुखर्जी ने कभी ये नहीं बताया कि किस तरह से स्टालिन के सोवियत संघ में पौने तीन करोड़, चीन में 6 करोड़, नार्थ कोरिया में 20 लाख, वियतनाम में 10 लाख, 30 लाख पूर्व यूरोप के देशों जैसे पोलैंड रोमानिया,चेकोस्लावाकिया में, 20 लाख अफगानिस्तान वगैरह में लोग मार डाले गए। यानी कम्युनिस्ट देशों में साल 1990 तक सरकारों से अलग राय रखने वाले 9.80 करोड़ लोग कत्ल कर दिए गए। दूसरे विश्व महायुद्ध में 40 लाख लोग मारे गए थे। इसमें हिरोशिमा और नागासाकी में एटम बम विस्फोट की विभीषिका में मारे गए लोग भी थे। यानी विश्व युधों से बीस गुना ज्यादा लोग तो कम्युनिस्ट देशों में मारे गए।
गांधी,नेताजी सुभाषचंद्र बोस,भगत सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आंबेडकर जैसी शख्सियतों को किसी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है कि वे क्या थे। कम्युनिस्टों के प्रमाण पत्र कि तो हरगिज नहीं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का खुलकर विरोध किया था और अंग्रेजों कि मुखबिरी कि थी। भगत सिंह को वे महान वामपंथी आतंकवादी बता रहे हैं, जो चीन के साथ 1962 की जंग में भारत की बजाय शत्रु के साथ खड़े थे। जरा इतिहास के पन्नों को खंगालिए तो मालूम चल जाएगा कि जिस समय हमारे योद्धा चीनी फौजों से लोहा ले रहे थे रणभूमि में, तब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी कथित विचारधारा को देश के हित से ऊपर माना था। और तो और केरल में एकाध छोटे वामपंथी नेताओं ने भारतीय जवानों के लिए रक्त दान की अपील की तो उन्हें पार्टी संगठन में पैदल कर दिया गया। ज्योति बसु, ईएमएस नंबूदरिपाद, हरकिन सिंह सुरजीत सब चीन के साथ खड़े थे। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कह रहे हैं कि कश्मीर में भारतीय सेना कर रही है वहां की औरतों के साथ रेप। इंदिरा गांधी ने प्रेस को जकड़ लिया था। तब यही वामपंथी उनके साथ थे। आपको याद होगा कि आपातकाल के दौरान वामपंथियों का सरकार पर दबदबा रहा। उन्होंने उस दौर में इंदिरा गांधी की सरकार को जो सहयोग दिया उसके बदले में उन्हें खूब मलाई खाने को मिली। बडे-बड़े पद मिले। इतिहास से छेड़छाड़ करने की छूट मिली। एनजीओ के नाम पर हजारों करोड़ के सरकारी प्रोजेक्ट मिले। और अब पता चल रहा है कि ये वामपंथी एक खास एजेंडे के तहत भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद सरीखे क्रांतिकारियों को क्रांतिकारी आतंकवादी का प्रमाणपत्र दे रहे हैं। ये शर्मनाक है। भारत सरकार को चाहिए कि एसे तमाम मानसिक तौर पर विकृत तथाकथित इतिहासकारों के पुस्तकों पर देशभर में पाबंदी लगाए।