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तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन के आसार नहीं

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 30 2016 12:56PM | Updated Date: Apr 30 2016 12:56PM
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-कृष्णमोहन झा
-लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं


देश के जिन पांच राज्यों में इस समय विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है उनमें पश्चिम बंगाल के बाद तमिलनाडु ऐसा दूसरा राज्य है जहां चुनावों के बाद नेतृत्व परिवर्तन के आसार लगभग नहीं के बराबर है। तमिलनाडु में अभी अन्नाद्रमुक की सरकार है और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर  जयललिता का कब्जा है। चुनावों के बाद भी इस स्थिति में परिवर्तन की कोई उम्मीद उन विरोधी दलों को भी नहीं है जो राज्य में अन्नाद्रमुक सरकार को कड़ी चुनौती के इरादे से चुनाव मैदान में हैं। राज्य विधानसभा की सभी 234 सीटों के लिए एक ही दिन 16 मई को मतदान है और लगभग सभी दलों के चुनावी गणित को ध्यान में रखते हुए अपने अपने गठबंधनों को अंतिम रूप दे दिया है। सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने मात्र 7 सीटें सहयोगी दलों के लिए छोडकर शेष 227 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है जबकि मुख्य विरोधी दल द्रमुक ने कांग्रेस पार्टी के साथ गठजोड़ कर उसे 41 सीटे प्रदान की है। अन्ना द्रमुक के चुनाव अभियान की बागडोर स्वयं मुख्यमंत्री जयललिता ने थाम रखी है तो द्रमुक कांग्रेस गठबंधन पूर्व मुख्यमंत्री करूणानिधि के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रहा है।

करूणानिधि इस समय 93 वर्ष के हो चुके है और चुनावी भागदौड़ में सक्रिय भागीदारी करने की स्थिति में नहीं है परंतु पारिवारिक उठापटक के कारण गठबंधन का मुख्य चुनावी चेहरा वही बने हुए है। तमिलनाडु में एक और राजनीतिक दल पीएमके के नेता तथा पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. अंबुमणि रामदास भी मुख्यमंत्री पद की लालसा पाले हुए है। धमार्पुरी क्षेत्र से लोकसभा सांसद डॉ. अंबुमणि रामदास अपने ही एक क्षेत्र की विधानसभा सीट पर किस्मत आजमा रहे हैं। वे अपनी पार्टी में अन्नाद्रमुक और द्रमुक का विश्वसनीय विकल्प बनने की क्षमता का दावा करते है परंतु उनके सत्ता के नजदीक भी पहुंचने की संभावना नगण्य ही है। भाजपा ने तो चुनावों के पहले ही यह मान लिया है कि तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में वह मामुली उपस्थिति दर्ज कराने की स्थिति में नहीं है। इसलिए यह मान लेना गलत नहीं होगा कि सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक को चुनौती देने की स्थिति में केवल द्रमुक और कांग्रेस का गठबंधन ही है परंतु वह भी इस कड़वी और हकीकत का पवार्नुमान लगा चुका है कि अन्नाद्रमुक सरकार की मुख्यमंत्री जयललिता के हाथों से सत्ता की बागडोर छीन लेना उसके लिए अभी तो लगभग नामुमकिन ही है।

भ्रष्टाचार के आरोप में जयललिता को निचली आदलत द्वारा सुनाई सजा के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ा था और तब उन्होंने अपने विश्वासपात्र ओ. पन्नीरसेलम को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इस विश्वास के साथ बिठा दिया था कि ऊपरी अदालत से दोषमुक्त किए जाने की स्थिति में वे पन्नीरसेलम को हटाकर पुन: मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो जाएगी। हुआ भी यही कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन्हें निचली अदालत के फैसले से दोषमुक्त कर दिया और वे अपनी योजनानुसार पुन: मुख्यमंत्री पद की बागडोर थामने में वे सफल हो गई थीं। तबसे उनका आत्म विश्वास भी बढ़ा हुआ दिखाई देता है। मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए अम्मा रसोई की योजना प्रारंभ कर उसके माध्यम से अत्यंत कम मूल्य पर खाद्य सामग्री उपलब्ध करा रही है उसके कारण उन्हें राज्य की जनता के बीच मसीहा की छवि बनाने में सफलता मिली है।

गरीब तबके के लिए उनकी कल्याणकारी योजनाओं ने उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आने दी। हां, पिछले वर्ष चेन्नई में आई भयानक बाढ़ ने शहर में जो तबाही मचाई उससे बाढ़ पीड़ितों को राहत दिलाने के लिए सरकार द्वारा किए गए बचाव कार्य में सरकार की लापरवाही और अपर्याप्तता के आरोप ने मुख्यमंत्री को भी आलोचनाओं के घेरे में ला दिया था परंतु चतुर राजनेता की भांति जयललिता ने बड़े पैमाने पर राहतकारी योजनाओं की घोषणा कर स्थिति को अपने पक्ष में कर लिया। विपक्षी दल ने भयानक बाढ़ से निपटने में सरकार की असफलता के लिए उसकी आलोचना में तो कोई कसर नहीं छोड़ी परंतु वह सरकार के विरूद्ध वातावरण निर्मित करने में असफल रहा। दरअसल द्रमुक सुप्रीमो करूणानिधि की तबसे बड़ी परेशानी यह है कि वे  पार्टी के लिए समय दे पाने में असमर्थ है और अपने दोनों बेटों के बीच मतभेदों ने भी उन्हें अंदर से तोडकर रख दिया है। अपनी बेटी कनिमोझी पर 2जी घोटाले में लगे आरोपों के कारण भी वे बचाव की मुद्रा में हैं।

गौरतलब है कि राजयसभा सदस्य कनिमोझी को इसी घोटाले के सिलसिले में काफी समय जेल में गुजारना पड़ा था और यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है। करूणानिधि के पुत्रों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री जयललिता को ऐसे आरोपों से नहीं जूझना पड़ा परंतु कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले ने उन्हें पुन: आत्मविश्वास से भर दिया है। बाढ़ राहत कार्यों के लिए भारी राशि का प्रावधान करके जयललिता ने उन आरोपों को नाकाम करने में काफी हद तक सफलता पाई है जिनमें कहा गया था कि सरकार की लापरवाही के कारण ही बाढ़ पीड़ितों को भारी मुश्किलों से जूझना पड़ा। मुख्यमंत्री ने 14 लाख बाढ़ पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की है। इसके तहत बाढ़ पीड़ित परिवारों को पांच हजार रुपए की विशेष राशि के अलावा साड़ियां, चावल एवं धोतियां वितरित की जाएगी। मुख्यमंत्री जयललिता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विशेष आग्रह करके बाढ़ राहत पैकेज भी हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली है। ये सारे उपाय मुख्यमंत्री जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक की फिर से सत्ता में वापसी की संभावनाओं को बलवती बना रहे है। अगर अन्नाद्रमुक लगातार दूसरी बार अच्छे बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता में वापिसी करने में सफल होती है तो निश्चित रूप से उसका असली श्रेय पार्टी सुप्रीमो जयललिता को ही मिलना तय है और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी पुन: ताजपोशी भी सुनिश्चित है। ऐसा हुआ तो जयललिता लगातार दूसरी बार पहली महिला मुख्यमंत्री बनेंगी। यह तमिलनाडु की राजनीति में उनकी ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाएगी।
 

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