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फिर चली बात वेस्टलैंड के सौदे की

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 29 2016 10:45AM | Updated Date: Apr 29 2016 10:45AM
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-अश्विनी कुमार
लेखक पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक हैं।


अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे को लेकर एक बार फिर हंगामा खड़ा हुआ है। इस मामले को लेकर जरा भी भावुक होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका संबंध इटली की अदालत से है। इटली की अदालत ने इस सौदे को लेकर जो फैसला दिया है उसका आधार यह है कि भारत को हेलीकॉप्टर बेचने के लिए वहां की कंपनी ने भारतीय खरीदारों को लालच देने के लिए रिश्वत देने जैसे रास्ते का उपयोग किया।

पूरे सौदे में एक बिचौलिए ‘क्रिश्चियन मिलेश’ की मुख्य भूमिका रही जिसके भारत व इटली में सत्ता से जुड़े लोगों के साथ अच्छे संबंध थे परंतु यह भी ध्यान रखना होगा कि 2012 में इटली में जब इस सौदे में 12 हेलीकॉप्टरों की कुल कीमत लगभग 3600 करोड़ रुपए वसूलने के लिए रिश्वत के तौर पर 360 करोड़ रुपए की अदायगी हेलीकॉप्टर बनाने वाली कंपनी ‘फिनमेक्केनिका’ द्वारा भारत में किए जाने का मामला इटली की अदालत में उठा था तो उसी समय मनमोहन सरकार में रक्षा मंत्री के पद पर बैठे ए.के. एंटनी ने इस सौदे को रद्द करने की घोषणा कर दी थी और पूरे मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को सौंप दी थी मगर मूल प्रश्न 1998 से 2004 तक भारत की सत्ता पर काबिज रही भाजपा नीत वाजपेयी सरकार से भी जाकर जुड़ता है क्योंकि उसने ही इन हेलीकॉप्टरों को खरीदने की मंशा जाहिर की थी और 2003 में पहली बार खरीदारी के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किए थे और केवल एक ही कंपनी के प्रस्ताव निर्दिष्ट मानदंडों के अनुरूप आने पर इनमें संशोधन इस प्रकार किया था कि प्रतियोगी माहौल में कई कंपनियां अपने हेलीकॉप्टरों की कार्यक्षमता और दक्षता व विशिष्टताओं का प्रदर्शन कर सकें और भारत फिर उनमें से किसी एक का चुनाव कर सके।

इसमें किसी प्रकार भी नीयत में खोट होने का अंदेशा व्यक्त नहीं किया जा सकता है। 2006 में इसी प्रक्रिया के अनुरूप मानदंडों को रखा गया और इस हकीकत के बावजूद रखा गया कि पूरी दुनिया में फिनमेक्केनिका द्वारा उत्पादित ‘वेस्टलैंड हेलीकॉप्टरों’ का कोई दूसरी कंपनी मुकाबला नहीं कर सकती।  हेलीकॉप्टरों की दक्षता मापने के लिए भारतीय वायुसेना के विशेषज्ञ भी शामिल किए गए और 2008 में उन्होंने वेस्टलैंड हेलीकॉप्टरों का अंतिम चुनाव किया। सौदे को 2010 में जाकर हरी झंडी दी। 2012 तक तीन हेलीकॉप्टरों की सप्लाई भी फिनमेक्केनिका ने कर दी। इसके बाद 2012 में जब पहली बार इस सौदे में रिश्वत देने का मामला इटली में उठा तो वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री का नाम भी घसीटा गया और उन पर फिनमेक्केनिका कंपनी से अपनी पार्टी के लिए चंदा वसूलने तक के किस्से सामने आने लगे। इटली के कानून के तहत विदेशी सौदों में रिश्वत देना जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है। इसके बाद मामला अदालत में चलता रहा और उसने अब जाकर अपना फैसला देते हुए बिचौलिए मिलेश द्वारा सौदे की बाबत कंपनी के प्रमुख समेत अन्य उच्च अधिकारियों से हुई बातचीत के टेप व उसके हाथ के लिखे पत्रों का संज्ञान भी लिया जिसमें उस समय की भारत सरकार को चलाने वाले प्रमुख राजनीतिज्ञों के नाम हैं। इनमें से कुछ के नाम के आगे उसने रकम तक लिखी हुई है। यह मामला तब गंभीर बन जाता है जब भारत में ही इस मामले की सीबीआई जांच चल रही है। इटली ने बिचौलिए मिलेश के खिलाफ  रेड कार्नर नोटिस जारी करा रखा है। अब सीबीआई ने भी मिलेश को गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटेन की सरकार से कहा है। पूरे मामले पर राजनीति की गुंजाइश इस तथ्य के बावजूद नहीं है कि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम भी लिया गया है और भारत की वायुसेना के तत्कालीन प्रमुख एयर चीफ मार्शल एस.के. त्यागी का भी नाम है और कांग्रेस के नेता आस्कर फर्नांडीज से लेकर सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को ए.पी. कह कर बताया गया है । वाजपेयी शासनकाल में कारगिल युद्ध के समय तहलका प्रकरण के बारे में 2004 के चुनावों में उन्हीं की पार्टी ‘कांग्रेस’ सत्ता में यह मुद्दा उछाल कर आई थी कि वाजपेयी मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री रहे जार्ज फर्नांडीज ने सैनिकों के ‘साजो-सामान’ की खरीद में घपले की इजाजत दी थी। भाजपा को तब कांग्रेस ने चुनावी बाजार में ‘कफन का सौदागर’ तक की संज्ञा दे दी थी मगर प्रणव दा ने रक्षामंत्री का ओहदा संभालने के बाद जब सभी फाइलों की छानबीन की तो साफ घोषणा कर दी कि जार्ज फर्नांडीज के विरुद्ध कोई मामला नहीं है। बेशक इटली की अदालत ने सोनिया गांधी के बारे में मिलेश के लिखे खत व टेप से इस बात का जिक्र किया है कि वह हेलीकॉप्टर सौदे के पीछे मुख्य उत्प्रेरक थीं। जाहिर है कि वह यूपीए सरकार की चेयरमैन थीं और उनके इशारे पर प्रधानमंत्री बनता और बिगड़ सकता था अत: यह निष्कर्ष कक्षा दस का राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी तक निकाल सकता है।  मगर एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इटली की अदालत ने रिश्वत देने वालों को सजा तक सुना दी है। तो क्या भारत में रिश्वत लेने वालों को नहीं पकड़ा जाना चाहिए लेकिन यह कार्य संसद नहीं कर सकती, भारत के न्यायालय ही करेंगे और वे पुख्ता सबूतों के आधार पर करेंगे। अत: इटली से पहले पुख्ता प्रमाण हस्तगत किए जाने चाहिए।
 

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