29 Mar 2024, 13:49:36 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
Gagar Men Sagar

चिदंबरम के इस अपराध की सजा क्या है

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 29 2016 10:42AM | Updated Date: Apr 29 2016 10:42AM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

-अवधेश कुमार
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


अब यह किंतु परंतु से परे एक तथ्य है कि गृहमंत्री के रुप में पी. चिदंबरम ने इशरत जहां को 2009 में स्वच्छ चरित्र का प्रमाण पत्र स्वयं दिया था। न उसमें गृह सचिव की कोई भूमिका थी और न ही महाधिवक्ता की। भले चिदंबरम जो दावा करें लेकिन फाइल सामने आने के बाद उनके पाक साफ होने का दावा ध्वस्त हो जाता है। क्या कारनामा है! आप उसी इशरत जहां को न्यायालय में सौंपे शपथ पत्र में लश्कर का फिदाइन आतंकवादी बताते हैं और एक महीना के अंदर ही उसे स्वयं पाक साफ होने का प्रमाण पत्र दे देते हैं। गुजरात उच्च न्यायालय में 6 अगस्त 2009 को जो शपथ पत्र दाखिल हुआ उसमें  स्पष्ट रुप से इशरत जहां और उसके साथियों को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकवादी कहा गया था। बाद में इस शपथपत्र को वापस ले लिया गया एवं 30 सितंबर 2009 को दूसरे शपथपत्र में कहा गया कि इशरत जहां और उसके साथियों के आतंकवादी होने के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। तत्कालीन गृह सचिव जी. के. पिल्लई ने कहा था कि दूसरे शपथ पत्र का फैसला राजनीतिक स्तर पर लिया गया होगा जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं था। हालांकि यह तो संभव नहीं है कि जो फैसला हो रहा हो उसकी जानकारी गृहसचिव को हो ही नहीं, किंतु यह उनके स्तर पर नहीं हुआ यह फाइल से स्पष्ट है। चिदंबरम ने पिल्लई के बयान के बाद यह सफाई दी थी कि उन्होंने तो केवल उसमें कुछ संपादकीय परिवर्तन किए थे। यानी यहां कॉमा होगा, वहां पूर्ण विराम होगा, इस शब्द की जगह फलां शब्द बेहतर होगा आदि आदि। उनकी यह सफाई सफेद झूठ थी। अमेरिका में गिरफ्तार एवं हमारे पास लश्कर की आंतरिक जानकारी देने वाले एकमात्र गवाह डेविल कोलमेन हेडली ने अपनी गवाही में यह बता दिया कि इशरत जहां लश्कर की फिदाइन आतंकवादी दस्ते का हिस्सा थी। निश्चय ही यह जानकारी गृहमंत्री होने के नाते पी. चिदंबरम के पास थी। ऐसा न होने का कोई कारण नहीं था। खुफिया ब्यूरो या आईबी के इनपुट्स इस बारे में थे। उसके आधार पर गुजरात पुलिस ने कार्रवाई की तथा 15 जून 2004 को अहमदाबाद में इशरत की तीन अन्य साथियों के साथ गोली लगे शव पाए गए।  यहां मूल विषय यह है कि इशरत जहां का आतंकवाद से रिश्ता था या नहीं? समस्या यह है कि जिस फाइल में उन्हें पाक साफ साबित किया गया उसके 28 पन्नें गायब हैं। उनमें हो सकता है अन्य विभागों के पत्र और उसके जवाब हो। उनका विश्लेषण तथा निष्कर्ष हो। प्रश्न है कि वे पन्ने गायब कैसे हो गए? इसका सरल उत्तर तो यही हो सकता है कि जब इस पर देश में हंगामा मचा। गृह राज्य मंत्री किरण रिजजू ने कहा है कि उनको कोई सजा तो नहीं दी जा सकती लेकिन उन्होंने बहुत गलत किया। बहुत गलत छोटा शब्द है। दरअसल, पी. चिदंबरम ने देश के साथ अपराध किया। गृहमंत्री के नाते जिस व्यक्ति पर आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेवारी है वह राजनीतिक विरोधी को निचा दिखाने के लिए किसी आतंकवादी को निर्दोष साबित करने लगे औ इसके लिए अपने पद का दुरुपयोग करे तो इससे बड़ा अपराध क्या हो सकता है?

वह पूरा आॅपरेशन आंतरिक सुरक्षा का औपरेशन था, राज्य की सामान्य कानून व्यवस्था का नहीं। यदि राज्य की सामान्य कानून व्यवस्था का आॅपरेशन होता तो उसमें केन्द्रीय खुफिया ब्यूरो की कोई भूमिका नहीं होती। केंद्रीय खुफिया ब्यूरो की भूमिका का अर्थ ही है कि यह आंतरिक सुरक्षा का आॅपरेशन था। बाद में यदि केंद्रीय जांच ब्यूरो या सीबीआई उसमें आई तो इसी कारण। आतंरिक सुरक्षा के मामले से किस तरह निपटा जाता है इसकी जानकारी पी. चिदंबरम को अवश्य होगी। वे गृहमंत्री तो रहे ही इसके पहले राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में आंतरिक सुरक्षा का प्रभार भी उनके उपर था। तो चिदंबरम ने एक पूरे आॅपरेशन को मटियामेट करने का काम किया गया। पिल्लई ने अपने बयान में कहा था कि यह आईबी का बहुत सफल आॅपरेशन था। आईबी ने अपने व्यक्ति को उन आतंकवादियों के गैंग में शामिल कराया जिससे पूरी सूचना मिलती रही। आतंकवादी उसे अपना आदमी मानते रहे और हम उनकी एक-एक गतिविधि पर नजर रखे रहे। यह सामान्य काम नहीं था। कल्पना करिए, जो व्यक्ति शामिल हुआ होगा उसने कितना बड़ा जोखिम उठाया होगा। 

खैर, उनसे प्राप्त सूचनाओं से साफ हो गया था कि उनका एक निशाना  गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। इसकी पूरी जानकारी गृहमंत्रालय के पास थी।   जरा सोचिए, जो गृह सचिव की नजर में आईबी का सफल आॅपरेशन था उसे गृहमंत्री यानी पी. चिदंबरम ने राजनीतिक हस्तक्षेप से निर्दोषों की हत्या के अपराध में बदल दिया और सीबीआई को जांच सौंपकर पूरी आईबी और गुजरात सरकार को बदनाम करने का कुकृत्य किया। वास्तव में दूसरे शपथपत्र के बाद ही मामले को सीबीआई को जांच के लिए सौंपने का आधार बना। अगर पहले शपथपत्र पर सरकार कायम रहती तो फिर यह नौबत आती ही नहीं। इस तरह दूसरा शपथपत्र एक षडयंत्र का हिस्सा लगता है जिसमें गुजरात सरकार और उसके अधिकारियों को फंसाने की तैयारी थी। जो मानवाधिकारवादी छाती पीट रहे थे वे अमेरिका से यह पूछने नहीं गए कि जब पाकिस्तान के ऐबटाबाद में आॅपरेशन के बाद उसके पास ओसामा बिन लादेन को पकड़ने का विकल्प था तो उसने उसे मार क्यों दिया? मारा भी तो उसे इज्जत से दफनाया क्यों नहीं? आतंकवादियों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए। अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 के हमले का जिस तरह बदला लिया वह एक राष्ट्र की संकल्प शक्ति को दशार्ता है। देश की एकजुटता प्रमणित करता है। वहां पक्ष-विपक्ष के बीच इस पर कोई मतभेद नहीं। हमारे यहां तो पक्ष यानी सरकार ही आतंकवादियों के पक्ष में खड़ी हो गई थी। इसलिए आज यह पूछना ही पड़ेगा कि चिदंबरम और विस्तारित करें तो पूरी संप्रग सरकार के अपराधों की सजा क्या हो?
 

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »