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बांग्लादेश में कट्टरपंथ का अर्थ

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 28 2016 10:25AM | Updated Date: Apr 28 2016 10:25AM
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-राजीव रंजन तिवारी
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


कुछ वर्ष पहले तक बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ अभियान चलाया जाता रहा, लेकिन अब वहां की कहानी दूसरी दिशा में टर्न ले रही है। अब वहां के कट्टरपंथी भले गोपनीय तरीके से हिंदुओं के खिलाफ अभियान चलाते हों, पर अब उनके निशाने पर अल्पसंख्यक हिंदू ही नहीं बल्कि वहां के सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और पत्रकार भी हैं। निश्चित रूप से किसी भी देश के लिए यह दशा ठीक नहीं है। बांग्लादेश में तीन दिनों के भीतर एक प्रोफेसर और समलैंगिकों के अधिकारों की वकालत करने वाली एक पत्रिका के संपादक समेत तीन लोगों की हत्या से साफ है कि देश में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। बांग्लादेश में इससे पहले भी धर्मनिरपेक्षता के समर्थन और कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वाले कई ब्लॉगरों की हत्या हो चुकी है। अब तक महज एक मामले में अभियुक्तों को सजा हुई है। इन हत्याओं के बाद सरकार और पुलिस की चुप्पी से स्पष्ट है कि वह भी या तो कट्टरपंथियों से पंगा नहीं लेना चाहती या फिर वह उनके खिलाफ कार्रवाई में असमर्थ है। वहां बढ़ते इस कट्टरपंथ का असर देर-सबेर पड़ोसी पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश पर पड़ना लाजिमी है। बांग्लादेश में बीते साल से ही कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वालों की हत्या की घटनाएं हो रही हैं।

इसी महीने के शुरू में एक छात्र नजीमुद्दीन समद की सरेराह हत्या कर दी गई। बांग्लादेश सरकार ने भी हत्यारों को किसी भी कीमत पर गिरफ्तार करने की बात कही है, लेकिन ऐसे मामलों में रिकॉर्ड उसके खिलाफ है। आखिर में सवाल यह उठता है कि क्या सरकार वाकई कार्रवाई करेगी अथवा केवल खानापूर्ति से ही काम चला लेगी। पिछले कुछ वर्षों तक बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ प्राय: रोज ही कुछ न कुछ ऐसी घटना होती रहती थी, जिससे यह सवाल उठना स्वाभाविक था कि क्या बंगलादेश में हिंदू होना गुनाह है? कभी राह चलती किसी हिंदू लड़की या महिला का अपहरण होता था, उसके साथ बलात्कार होता था। विरोध करने पर हत्या तक हो जाती थी। कभी किसी लड़की को जबर्दस्ती घर से उठाकर, किसी मुस्लिम लड़के के साथ निकाह कर दिया जाता था।

इन घटनाओं का हिंदू समाज विरोध करता था तो हथियारबंद लोग हिंदुओं पर हमले करते थे, उनके घरों में आग लगा देते थे, मंदिरों को गिरा देते थे। हिंदुओं की जमीन-जायदाद पर कब्जा कर लेते थे। हिंदू जब फरियाद लेकर पुलिस-प्रशासन के पास जाते थे तो वहां उनकी सुनवाई नहीं होती थी। पुलिस वाले उल्टे धमकाते थे। परिणामस्वरूप बांग्लादेशी हिंदू मुस्लिम-बहुल इलाकों से पलायन को विवश थे। बांग्लादेशी हिंदुओं के हित की संस्था बांग्लादेश माइनरिटी वॉच (बीडीएमडब्ल्यू) ने एक रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि कि वहां हिंदुओं के साथ कैसा अमानवीय व्यवहार होता रहा है। यद्यपि इधर कुछ महीनों से हिंदुओं के खिलाफ आक्रमण में थोड़ी कमी जरूर देखने को मिली है, लेकिन वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ब्लागरों व पत्रकारों पर हमले तेज हो गए हैं, जो बेहद चिंतनीय हैं। हालांकि वहां इस्लामी कट्टरपंथी तो पहले से ही सक्रिय थे। लेकिन हाल के महीनों में उनकी गतिविधियां बढ़ी हैं।

राजधानी ढाका की प्रमुख सड़कों पर दिनदहाड़े होने वाली हत्याओं से साफ है कि सरकार और पुलिस चाह कर भी इस मामले में कुछ नहीं कर पा रही है। प्रोफेसर की हत्या के मामले में पिछले दिनों एक छात्र को गिरफ्तार किया गया था। ताजा मामले में भी पुलिस ने सुराग मिलने का दावा किया है, लेकिन उसके दावे पर बुद्धिजीवी वर्ग को संदेह है। क्योंकि ब्लॉगरों व बुद्धिजीवियों की हत्या के कई मामलों का खुलासा नहीं हो सका है। वर्ष 2013 में राजीव हैदर नामक एक ब्लॉगर की हत्या से शुरू हुआ यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। अभिजीत राय, वशीकुर रहमान बाबू, अनंत विजय दास और निलय चटर्जी जैसे नाम जुड़ने की वजह से यह सूची लगातार बढ़ रही है। ये तमाम हत्याएं लगभग एक तरीके से ही हुई हैं। इनमें अलकायदा की बांग्लादेश शाखा अंसार-अल- इस्लाम का नाम सामने आया है।

देश में धार्मिक कट्टरपंथ की जड़ें काफी पुरानी हैं। हत्याओं का दौर शुरू होने के बाद से ही बांग्लादेश सरकार इनमें आईएस और अल कायदा का हाथ होने का खंडन करती रही है। उसका दावा है कि यह स्थानीय आतंकियों का काम है। बावजूद इसकेसरकार इन मामलों में किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकी है। राजीव हैदर की हत्या के मामले में कुछ लोगों को सजा मिलने के बाद अभी सरकार अपनी कामयाबी पर पीठ थपथपा ही रही थी कि कट्टरपंथियों ने तीन लोगों की हत्या कर सरकार को करारा जवाब दे दिया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन हत्याओं से पूरी दुनिया में बांग्लादेश की छवि धूमिल हो रही है। देश की साख बचाने के लिए सरकार को ऐसे तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर उपाय करने होंगे। लेकिन सवाल यह है कि तमाम प्रतिकूल हालात के बीच किसी तरह सत्ता से चिपकने की कोशिश करने वाला देश का राजनीतिक नेतृत्व क्या इसका साहस दिखा पाएगा? दरअसल, बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के हौसले बुलंद हैं। उपरोक्त घटनाओं के बाद पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरने के बावजूद सरकार इन कट्टरपंथी ताकतों पर अंकुश लगाने में नाकाम ही रही है। इससे बुद्धिजीवी तबके में भारी नाराजगी है। जानकार मानते हैं कि इन हत्याओं की जड़ें धार्मिक कट्टरपंथ में छिपी हैं। बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठन किसी भी धर्मनिरपेक्ष लेख या प्रकाशक को बर्दाश्त नहीं कर सकते। कट्टरपंथी संगठनों का असर बढ़ने की वजह से हाल में ईसाई तबके के लोगों पर भी हमले के मामले बढ़े हैं। बहरहाल, अब देखना यह है कि सरकार क्या कर पाती है।
 

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