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कहां ढूंढें कागभुसंडीजी और श्रीराम कथा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 27 2016 12:16PM | Updated Date: Apr 27 2016 12:16PM
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-वीना नागपाल

सिंहस्थ चल रहा है। श्रद्धा और भक्ति का असीम सागर उमड़ रहा है। बहुत सारगर्भित कथाएं हो रही हैं। कई पंडालों में विद्वान और श्रीराम कथा के अध्यवेता राम चरित्र का अनुपम वर्णन कर रहे हैं। श्री तुलसीकृत रामचरित मानस पर तो विद्वानों की अमृत वर्षा हो रही है।

जब-जब श्रीराम कथा का वर्णन और उसकी पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा होती है तो काकभुशुंडीजी का संदर्भ अवश्य आता है। काकभुसंडीजी ने भी बहुत सुंदर ढंग से भावनापूर्ण श्रीराम कथा सुनाई थी और यह महान विद्वान काकभुसंडीजी कौन थे। कहते हैं वे एक कौए के रूप में थे और श्रीराम कथा के प्रकांड विद्वान और उसे कहने के महान अधिकारी थे। बहुत ही अद्भुत है यह भारतीय संस्कृति! एक कौए को भी इतनी सुंदर कथा कहने का अधिकारी बनाकर उसे भी पूजनीय बना दिया और उसे इतने आदर व सम्मान का पात्र बना दिया। हम नहीं यह कह सकते कि वास्तव में कौए के रूप में काकभसंडीजी ने यह कथा कही थी या नहीं पर, इस बात की कल्पना करना की एक कौआ भी इतना सम्मानीय हो सकता है कि श्रीराम कथा कहने वाले के रूप में उसका नाम आदर से लिया जाए। प्रकृति की कृति फिर चाहे वह कौए के रूप में हो इतना सम्मान देने का उदाहरण क्या और किसी संस्कृति व सभ्यता में मिल सकता है। यह प्रकृति और पर्यावरण प्रेम का अतुलनीय उदाहरण है। इससे बढ़कर प्रकृति प्रेम का कोई और उदाहरण मिल सकता है कि एक साधारण से पक्षी जिसकी कांव-कांव की ध्वनि कर्कश लगती है, पर उसे इतना महत्व दिया जाए। विदेशी संस्कृति में तो इनकी भाषा को काकाफोनी अर्थात कौआ की कांव अप्रिय कांव-कांव कहा जाता है, पर हमारे यहां तो यह कथावाचक है। आज इन्हीं श्रीराम कथा कहने वाले काकभुसंडीजी की कांव-कांव की ध्वनि सुनने को तरस गए हैं। बहुत कोशिश करने पर भी न किसी छत और न ही किसी मुंडेर और न ही किसी डाल पर काकभुसंडीजी के वंशज दिखाई पड़ते हैं और न ही उनकी भाषा सुनाई पड़ती है। बच्चों को सुनाई जाने वाली यह अत्यंत लोकप्रिय कथा का भी संदर्भ समाप्त हो गया है, जिसमें एक प्यासा कौआ एक घडे में थोड़ा सा पानी देखकर, एक-एक करके पास पड़े पत्थर डालता है और घडेÞ में पानी ऊपर आ जाने पर उसे पीकर अपनी प्यास बुझाता है। उस सयाने कौए या अंग्रेजी में ‘‘थर्स्टी क्रो’’ के बारे में पढ़कर अब बच्चे पूछेंगे की ‘कौआ’ कैसा होता है तब उन्हें क्या जवाब देंगे? अब भी यह जवाब देना बहुत मुश्किल हो गया है।

श्रीराम कथा कहने वाले विद्वान जब काकभुसंडीजी का संदर्भ देते हैं तब उन्हें प्रकृति और पर्यावरण की बात साथ-साथ करना उचित होगा। वैसे तो पूरी श्रीराम कथा पर्यावरण और प्रकृति के साथ ही जुड़ी हुई है फिर चाहे वह सरयू तट हो या श्रीराम के वनवास में चित्रकूट तथा दणकारण्य का वर्णन अथवा शबरी के बेर हों या हनुमानजी के साथ-साथ सभी वानरों के निवास का संदर्भ हो प्रत्येक स्थान पर प्रकृति और पर्यावरण की पवित्रता की ही चर्चा साथ-साथ चलती है , इसलिए जब श्रीराम कथा कही जाए तो प्रकृति के संरक्षण का महत्व भी बताया जाए। तब काकभुसंडीजी की बात के साथ पक्षियों को बचाए रखने और उनका संरक्षण करने की बात भी की जाए। नहीं तो हमारा काकभुसंडीजी द्वारा श्रीराम कथा कहने के संदर्भ का कोई महत्व नहीं होगा। काकभुसंडीजी और श्रीराम कथा एक-दूसरे से जुडे हुए हैं। उन्हें अलग नहीं किया जा सकता, इसलिए अब भी समय है काकभुसंडीजी को ढूंढें और उनके संरक्षण में जुट जाएं।
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