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नीतीश का संघमुक्त भारत का दिवास्वप्न

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 26 2016 10:12AM | Updated Date: Apr 26 2016 10:12AM
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-पीयूष द्विवेदी
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


कभी भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए के महत्वपूर्ण घटक रहने वाले जेडीयू के नवनिर्वाचित अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर इन दिनों संघमुक्त भारत की एक अजीब सी धुन सवार दिख रही है और अक्सर जहां-तहां वे इस धुन का आलाप भी कर दे रहे हैं। अभी कुछ रोज पहले उन्होंने ये बयान दिया था कि भारत को संघमुक्त करके रहेंगे तो इसपर काफी हो-हंगामा हुआ था। उनका मजाक भी बना और उनके बयान पर सवाल भी उठे। लेकिन, लगता नहीं कि इन सब से उन्हें कुछ सबक मिला है क्योंकि, अब एक बार फिर अपने जेडीयू अध्यक्ष निर्वाचित होने के अवसर पर उन्होंने संघमुक्त  भारत की अपनी इसी बात को पूरे दमखम के साथ दोहराया है। विगत दिनों जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में जब नीतीश कुमार को औपचारिक रूप से जेडीयू का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, उसी अवसर पर उन्होंने ये बात कही। दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव में लालू और काग्रेस के साथ हुए उनके महागठबंधन को जिस तरह से अप्रत्याशित सफलता मिली, कहीं न कहीं उसीने उन्हें इतने आत्मविश्वास या यूं कहें कि अति-आत्मविश्वास से भर दिया है कि अब वे सीधे संघमुक्त  भारत की ही बात करने लगे हैं। यह अति-आत्मविश्वास ऐसा है कि बिहार में सफल हुए महागठबंधन की तर्ज पर अब वे राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाकर उसके द्वारा संघमुक्त  भारत की अपनी संकल्पना को फलीभूत करने की सोचने लगे हैं।

अपने अध्यक्ष बनने के अवसर पर उन्होंने कहा कि भाजपा संघ की विचारधारा पर चलती है, इसलिए वे संघमुक्त  भारत पर जोर दे रहे हैं। समझने का प्रयास करें तो नीतीश बाबू का आशय यह है कि वे मिटाना भाजपा को चाहते हैं लेकिन, इसके लिए उन्हें संघ को समाप्त करना पड़ेगा। अब नीतीश कुमार को तो देश उनके इमानदार छवि के साथ-साथ व्यावहारिक बुद्धि के लिए भी जानता है लेकिन, सवाल है कि उनकी व्यावहारिक बुद्धि कहां चली गई है कि संघ के संबंध में ऐसी बचकानी सोच उनमे उत्पन्न हो रही है कि भाजपा को समाप्त या कमजोर करने के लिए संघमुक्त भारत जैसी असंभव कल्पना करने लगे हैं। यह तो वही बात हुई कि समुद्र में रहने वाले किसी विशाल जीव को मिटाने के सारे प्रयास विफल होने पर कोई समुद्र को ही सुखाने चल दे। अब ऐसे अव्यवहारिक मार्ग पर चलने वाले को सफलता तो खैर मिल ही नहीं सकती, पर उसके विनाश की संभावना जरूर पैदा हो जाती है।

नीतीश कुमार से तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि कई एक बिंदुओं पर तो भाजपा और संघ में ही विरोध प्रत्यक्ष हो जाता है, फिर वे भाजपा और संघ को एक ही चश्मे से क्यों देख रहे हैं ? एक ताजा उदाहरण है कि बिहार चुनाव के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी, जिससे भाजपा ने सीधे-सीधे कन्नी काटते हुए आरक्षण के वर्तमान स्वरुप को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया था। ऐसे ही श्रम कानूनों में जब केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार ने संशोधन किए तो संघ के श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ ने कई बिंदुओं  पर उसका भी विरोध किया था। इसके अलावा और भी तमाम बातें हैं, जहां भाजपा और संघ आमने-सामने आते रहे हैं।  संघ सत्य सनातन धर्म अर्थात हिंदुत्व का संवाहक एक स्वयंसेवी संगठन है जिसकी देश भर में पचास हजार से अधिक शाखाएं, लगभग तीन दर्जन  आनुषांगिक संगठन और करोड़ों की संख्या में स्वयंसेवक हैं जो बिना किसी सामजिक-आर्थिक लालसा के सदैव सेवा भाव से देशभर में कार्यरत रहते हैं।

चाहें वो दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से देश के गांवों को स्वावलंबी बनाना हो जिसमे संघ के हजारों स्वयंसेवक बिना किसी लोभ-लालसा के कठिन परिश्रम और समर्पण के साथ काम कर रहे हैं या फिर विद्या भारती जैसी शिक्षा क्षेत्र की सबसे बड़ी गैरसरकारी संस्था हो, जिसके तहत देश भर में लगभग 18 हजार  शिक्षण संस्थान बिना किसी सरकारी सहयोग के कार्यरत हैं अथवा वनवासी कल्याण आश्रम जैसी संस्था को ही लीजिए जिसके द्वारा देश के वनवासी लोगों के रहन-सहन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की समुचित व्यवस्था कर उनका सर्वांगीण विकास किया जा रहा है। आंकड़े के अनुसार संघ की यह संस्था फिलहाल देश के लगभग 8 करोड़ वनवासी लोगों के लिए कार्य कर रही है। भी ठीक ढंग से नहीं पहुंची है। भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान मंच के द्वारा मजदूरों और किसानों के लिए भी संघ सदैव संघर्ष करता रहा है। इनके  अब नीतीश कुमार साहब यह बताएं कि देश की रग-रग में मौजूद इस संघ को वे कहां-कहां से और कैसे खत्म करेंगे? उनके पास कोई जवाब नहीं होगा क्योंकि, वे सिर्फ संघमुक्ति का एक दिवास्वप्न देख रहे हैं। दिवास्वप्न ही सही मगर, सवाल तो यह भी है कि ऐसे राष्ट्रव्यापी स्वयंसेवी संगठन जो देश की प्रगति के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य कर रहा है, से नीतीश कुमार साहब को तकलीफ क्यों हो रही है? अब जब संघ के सहयोग से ही भाजपा सत्तारूढ़ है तो वे दल और बेचैन हैं। इसी बेचैनी में नीतीश कुमार का संघमुक्त भारत जैसा बयान आया है, जो उन्हें हानि छोड़ लाभ नहीं दे सकता।  

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