29 Mar 2024, 13:35:13 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- आर.के. सिन्हा
- लेखक राज्य सभा सदस्य हैं।

एन.नारायणमूर्ति,नंदन नीलकेणी, सुनील भारती मित्तल, सचिन बंसल पहली पीढ़ी के सफल उद्यमी हैं। क्या ये किसी को बताने की जरूरत है कि इनका संबंध किन क्षेत्रों से हैं? दरअसल नारायणमूर्ति और नीलकेणी ने देश के आई टी सेक्टर को एक नया मुकाम दिया है। उधर, सुनील भारती मित्तल ने एयरटेल नाम से देश की ग्राहक संख्या के लिहाज से सबसे बड़ी टेलीकॉम सेक्टर की कंपनी खड़ी की। एयरटेल आज एक दर्जन से ज्यादा देशों में अपनी सेवाएं दे रही हैं। चंड़ीगढ़ के सचिन बंसल की कोई अनदेखी नहीं कर सकता। उन्होंने भारत की सबसे बड़ी आॅनलाइन रिटेल कंपनी फ्लिपकार्ट को स्थापित किया। इन सबमें एक समानता है। इनसे पहले इनके परिवारों में कभी किसी ने कोई बिजनेस नहीं किया था। इनके अलावा देश में बीते बीस सालों में लाखों छोटे-बड़े उद्यमी सामने आएं हैं। अगर ये नौकरी कर रहे होते तो बमुश्किल से दो-तीन लाख रुपए मासिक पगार पा रहे होते। अब ये लाखों पेशेवरों को रोजगार दे रहे हैं।  यकीन मानिए कि ये आपके जैसे ही हैं। ये सफल इसलिए हो पाए, क्योंकि इनमें कुछ हटकर करने का जुनून था। ये धुन के पक्के थे। ये हार मानने के लिए तैयार नहीं थे।  मेहनत, लगन और जुनून के अलावा भी कुछ बात होती है,जो किसी को सफलता की मंजिल पर चढ़ने का रास्ता दिखाती है। वह है,‘‘एक खास आइडिया।’’

यही नया आइडिया आपके लिए वरदान साबित हो सकता है। आज देश के हर छोटे-बड़े शहर में फाइनेंस, रीयल एस्टेट, मीडिया, टेलीकॉम, सर्विस सेक्टर वगैरह में सफल हो चुके हजारों-लाखों उद्यमी बाकी के लिए प्रेरणा बन रहे हैं। ये कामयाब इसलिए ही हुए, क्योंकि, इनके पास कोई नया काम शुरू करने का शानदार आइडिया था। आप नया आइडिया सोचिए, और पूरी लगन और मेहनत से जमीन पर अमली जामा  पहना दीजिए। आपको सफलता मिलेगी। जब नौकरियों में आरक्षण के सवाल पर हरियाणा से लेकर गुजरात में लगातार आंदोलन चल रहे हैं, तो आपको अपना कोई बिजनेस चालू करने के बारे में विचार करना ही होगा। नौकरी के लिए अपना बायोडाटा बनाकर रोज दर्जनों जगह भेजने भर से बात नहीं बनेगी। सरकारी नौकरियां तो लगातार घट रही हैं। इन हालतों को देखते हुए ही अब सरकार नए उद्यमियों को पूंजी देने के लिए तत्पर है। ताकि, वे अपने बिजनेस का श्रीगणेश कर सकें। हाल ही में देश में मुद्रा बैंक योजना की शुरूआत की गई है। इस योजना को छोटे कारोबारियों को बढ़ावा देने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। मुद्रा बैंक यानी ‘‘माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट फंड रिफाइनेंस एजेंसी’’ है।

मुद्रा बैंक योजना में 10 लाख रुपए तक के सस्ते लोन बिना गारंटी या बिना जमीन-मकान गिरवी रखे हुए उपलब्ध कराने का प्रावधान है।  एक अनुमान के मुताबिक, मुद्रा बैंक से देश के करीब 6 करोड़ छोटे कारोबारियों को फायदा मिलेगा। छोटी निर्माण इकाई और दुकानदारों को इससे लोन मिलेगा। इसके साथ ही सब्जी बेचनेवालों, सैलून, खोमचे वालों, को भी इस योजना के तहत लोन मिल सकेगा। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में हर सेक्टर के हिसाब से स्कीम बनाई जाएगी। मुद्रा बैंक में काम शुरू हो चुका है। दरअसल कोई नया कारोबार शुरू करने वाले के रास्ते में शुरूआती पूंजी जुटाना हमेशा से चुनौती भरा कार्य रहा है। पूंजी का जुगाड़ न होने के कारण न जाने कितने लाख संभावित उद्यमियों के सपने बिखर गए। लेकिन मुद्रा बैंक की स्थापना के बाद नए उद्यमियों के सामने यह मसला नहीं रहेगा। मुझे हाल ही में बैंकिंग क्षेत्र के एक आला अधिकारी बता रहे थे कि बड़े ताम-झाम वाले कारोबारी समूह, जिन्हे मीडिया खासा फोकस में रखता है, वे देश में सिर्फ सवा करोड़ लोगों को रोजगार दे रहे हैं। इसके विपरीत  छोटे दुकानदार, बुनकर तथा ऐसा ही छोटा मोटा धंधा करने वाले 5.75 करोड़ छोटे उद्यमी करीब 12 करोड़ लोगों को रोजगार दे रहे हैं।   मुद्रा बैंक का लक्ष्य छोटी इकाइयों को वित्त उपलब्ध कराना ही तो है।  कुछ साल पहले तक हमारे यहां मारवाड़ी, पंजाबी, गुजराती या पारसी ही कारोबार के संसार में थे। अब बिजनेस का संसार अधिक समावेशी हो चुका है। दलित भी बड़ी संख्या में बिजनेस की ओर आकर्षित हो रहे हैं। दबाबा भीमराव आंबेडकर का सपना भी यही था। उन्हें सफलता भी मिल रही है। इनके तमाम सपने हैं। उन्हें ये साकार करना चाहते हैं। ओबीसी जातियों से भी तमाम उद्यमी निकल रहे हैं। देश की सबसे नामवर कम्प्यूटर हार्डवेयर कंपनी एचसीएल के चेयरमेन शिव नाडार तमिलनाडु की एक ओबीसी जाति से हैं। उनके समूह में लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है। मैं मानता हूं कि देश में 1991 से शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण ने सबको बिजनेस की दुनिया में कदम बढ़ाने के अवसर दिए। जब बेहद कठिन परिस्थितियों से दो-चार होते हुए दलित उद्यमी बन सकते हैं, तो बाकियों को इस संसार से दूर नहीं रहना चाहिए। अब तो दलितों ने फिक्की, एसोचैम और सीआईआई की तर्ज पर अपना संगठन बना लिया है। नाम रखा है दलित इंडियन चेंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डिक्की)। मैं अपने सफल कारोबारी जीवन का भी संक्षिप्त में जिक्र करने की आपसे अनुमति चाहता हूं। 1966 से 1974 तक सक्रिय पत्रकारिता की। जे.पी आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण 1974 में पटना में पत्रकार की नौकरी से निकाल दिया गया। उसके बाद मैंने महज 250 रुपए से शुरू किया था प्राइवेट सिक्युरिटी एजेंसी का बिजनेस। आज हमारी कंपनी का सालाना टर्नओवर 4500 करोड़ रुपए पहुंच चुका है। सवा लाख से ज्यादा लोग इसमें स्थायी नौकरी करते हैं। आपका धैर्य, समर्पण और कड़ी मेहनत हर चुनौती को परास्त कर देता है। इसलिए आप किसी की नौकरी करने की बजाय किसी को नौकरी दीजिए। आज ही निकल पड़े अपने सपनों को पूरा करने के लिए। सफलता आपके कदम चूमेगी।

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