-अश्विनी कुमार
लेखक पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक हैं।
भगवा रंग भारत का भारत का पर्यायवाची है। भगवा दिव्य ज्योति की अनुभूति है। दीप स्वयं जलता है और वह अंधकार से लड़ता है। अंधकार से लड़ते समय उसकी ज्योति भगवा हो जाती है। मुझे कांग्रेस पर अब दया आती है, क्योंकि कांग्रेस के नेताओं ने केवल वोट प्राप्त करने के लिए भगवा को आतंकवाद से जोड़ा है। कांग्रेस नेतृत्व ने ऐसा करके कितनी बड़ी भूल की इसका बोध उसके नेतृत्व को हुआ या नहीं, इस संबंध में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन कांग्रेस नेताओं पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे, राहुल बाबा और अन्य नेताओं के ‘भगवा आतंकवाद’ पर शोध की कलई खुल चुकी है। राहुल गांधी को तो राजनीति में अभी बहुत कुछ सीखना है लेकिन जिन लोगों ने यह शोध किया था वे तो राजनीति के धुरंधर नेता थे। कांग्रेस ने निहित स्वार्थ के चलते हिंदू और भगवा आतंकवाद का शब्द गढ़ा, उसे पता ही नहीं चला कि उसने ऐसा करके कितना बड़ा अपराध कर डाला। यही कारण है कि देश के हिंदुओं को लगता है कि कांग्रेस उनके विरोध में खड़ी है।
कांग्रेस नेताओं ने जैसे ही भगवा आतंकवाद का शब्द परोसा तो इसे हिंदू आतंकवाद, भगवा ब्रिगेड, सैफरन उग्रवाद जैसे उपनामों से प्रचारित किया गया था। मैंने उस समय भी लिखा था कि यह हिंदू अस्मिता को धूमिल करने का इस्लामी आतंकवाद के समक्ष सुनियोजित षड्यंत्र है। यह बात अब सच साबित हो रही है। समझौता एक्सप्रैस, मालेगांव, अजमेर में हुए बम विस्फोटों में कुछ नाम आते ही ‘हिन्दू आतंकवाद’ बन गया। साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद और कर्नल प्रसाद पुरोहित एक अरब देश के प्रतिनिधि हो गए। यहां तक कि अजमेर ब्लास्ट में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता इंद्रेश जी और कुछ अन्य को भी लपेटने की कोशिश की गई। कांग्रेस ने इस बात का जोरदार प्रयास किया कि भारत केवल इस्लामी आतंकवाद से ग्रसित नहीं वहीं हिंदू आतंकवाद से भी ग्रसित है। इस विवाद को हवा दी गई औैर समाज में ध्रुवीकरण की सोची-समझी रणनीति को अमलीजामा पहनाया जाता रहा। इसके लिए जिम्मेदार थीं कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियां। अब समझौता एक्सप्रेस में कर्नल पुरोहित को एनआईए ने क्लीन चिट दे दी है।
उनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं मिला और अभियोजन पक्ष के सारे गवाह एक-एक करके पलटते चले गए। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी सेना को कर्नल पुरोहित के सभी दस्तावेज देने को कहा है ताकि वे न्याय के लिए लड़ाई लड़ सकें। अक्टूबर 2007 में हुए अजमेर विस्फोट और फरवरी 2007 के समझौता विस्फोट मामले में कई गवाह अपना बयान पलटना चाहते हैं। कई गवाहों ने तो अपने बयानों में स्वामी असीमानंद और अन्य आरोपियों को जानने से भी इनकार कर दिया है। मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि हर समाज में ऐसे तत्व हो सकते हैं जो आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त हों लेकिन अपवाद स्वरूप ऐसी घटनाओं को आधार बनाकर ‘हिंदू आतंकवाद’ पर राष्ट्रीय बहस छेड़ना कहां तक उचित था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में देश के बहुसंख्यक हिंदुओं को अपमानित और कलंकित करने की मुहिम शुरू की गई ताकि मुस्लिमों के वोट थोक में हासिल किए जा सकें। कांग्रेस ने अपना जमीर गिरवी रख दिया और कांग्रेस का बुनियादी चरित्र ही बदल गया। महात्मा गांधी की रामधुनी वाली कांग्रेस को भगवा आतंकवाद तो नजर आया लेकिन हरा आतंकवाद नहीं दिखा।
दिल्ली की बटला हाउस मुठभेड़ से लेकर मुंबई पर हमले में हेमंत करकरे की शहादत पर दिग्विजय ने कैसे-कैसे बयान दिए कि हर कोई हैरान रह गया था। राहुल गांधी की उपाध्यक्ष पद पर ताजपोशी के समय तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आरोप लगाया था कि संघ शिविरों में हिंदू आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। पी. चिदंबरम के नाम का एक ऐसा गृहमंत्री भी देश में रहा जिसने अपने हाथों में इशरत जहां के अतीत की हकीकत के हलफनामे को अपने हाथों से बदला। क्या मनमोहन सरकार ने झूठ को सच और सच को झूठ बनवाने के लिए ही एनआईए का गठन किया था। भगवा आतंकवाद के सभी साक्ष्य बनावटी निकले—इसका क्या अर्थ निकालें। कितनी त्रासदी है कि स्वतंत्रता संग्राम लड?े वाली कांग्रेस आज कितनी सिमट कर रह गई है, कांग्रेस के मौजूदा नेताओं को किसी पुराने समझदार नेता ने नहीं समझाया कि कांग्रेस को मुस्लिम या क्षेत्रीय पार्टी बनाने के आत्मघाती नहीं बल्कि देश के बहुसंख्यक हिंदुओं में अपने प्रति पैदा हुई एलर्जी को खत्म कर उसका विश्वास जीते। अगर फिर भी उसने आत्मघाती राजनीति करनी है तो करे, उन्हें कौन रोक सकता है। कांग्रेस को बात स्वीकार करनी होगी कि गांधी, नेहरू, इंदिरा, राजीव और नरसिम्हा राव की राजनीति में हिन्दू बुनियाद थी, हिंदू कभी कांग्रेस मंच पर एकजुट था। यदि आज राष्ट्रवादी राजनीति उभर कर आई है तो इस कारण ही कांग्रेस का हिंदू विरोध है।