24 Apr 2024, 06:27:41 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-देवेन्द्रसिंह सिसौदिया 

देश के कईं हिस्सों में अप्रैल के आरंभ में ही अधिकतम तापमान लगभग 45 डिग्री तक पहुंच चुका है। यदि ये आलम ही रहे तो मई व जून में संभव है कि सारे रिकॉर्ड टूट जाए। पिछले  बीस साल से बढ़ते तपन को महसूस किया जा रहा है। आज पूरी दुनिया इस तपन से चिंतित है। तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे है और समुद्री जल का स्तर लगातार बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों ने हमें इस चिंता से अवगत कईं वर्ष पूर्व करा दिया था किंतु विकास के नाम पर प्रकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रदूषित वातावरण का निर्माण हम लगातार कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया के देशों के मध्य चाहे जितने मतभेद हो किंतु इस बात को निर्विवाद मानना होगा कि हमें कार्बन उत्सर्जन को रोक कर पृथ्वी को बचाना होगा। यदि इसी तरह संसाधनों का दोहन होता रहा तो पचास वर्ष में दुनिया उजड़ जाएगी। ये कोरी भविष्यवाणी नहीं अपितु वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित एक चेतावनी है।  इंग्लैंड के अखबार आब्जर्वर के अनुसार कुछ सालों में जंगल उजड़ जाएंगे, मछलियां मर जाएंगी और पीने हेतु शुद्ध पानी का भयंकर संकट हमारे समक्ष रहेगा। ये चेतावनी केवल मानव जीवन के लिए ही नहीं है अपितु  350 प्रकार के स्तनधारियों, पक्षियों और मछलियों के लिए भी है। ज्ञात रहे इन प्रजातियों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में लगभग आधी रह गईं है दुनिया का औसत तापमान लगातार बड़ रहा है।

18 वीं सदी की तुलना में ये 0.6 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ चुका है। ये यदि इसी गति से बढ़ता रहा तो इस सदी के अंत में ये लगभग दस डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ सकता है संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के अनुसार जलवायु परिवर्तन का खतरा एक युद्ध के खतरे जैसा है। इस परिवर्तन में सबसे अधिक योगदान अमेरिका का है। यहां संचालित ग्रीन हाउस से निकलने वाली गैस ग्लोबल वार्मिंग को तेजी से बढ़ा रही है। इसके अतिरिक्त कोयले, पेट्रोलियम और फासिल फ्यूएल्स के अंधाधुंध उपयोग व  जंगलों की कटाई भी ओजोन परत में छेद के बड़ने का मुख्य कारण है।  अगर कार्बन उत्सर्जन न रुका तो दुनिया नहीं बचेगी, संयुक्त राष्ट्र समर्थित ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज’ का  ऐसा मानना है। हमें दुनिया को खतरनाक जलवायु परिवर्तनों से बचाना है तो जीवाश्म ईंधन के अंधाधुंध इस्तेमाल को जल्द ही रोकना होगा। पर्यावरण प्रदूषण में बढ़ोतरी के लिए विकसित  और औद्योगिक देश जिम्मेदार हैं तो अन्य देश भी आंशिक रूप से इसमें शामिल हैं, वहीं संपूर्ण मानव समाज भी इसके लिए दोषी है। जलवायु परिवर्तन के विषय पर दुनिया के देशों के मध्य गहरे मतभेद है ,बावजूद इसके कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण हेतु लगभग सभी देश सहमत है। इस हेतु सन 1992 में रियो डि जेनेरियो मे शिखर सम्मेलन हुआ किंतु आपसी मतभेदों के कारण इस सम्मेलन में जो लक्ष्य निर्धारित किए थे वो पूरे नहीं हो पाए । इसी दिशा में कदम उठाते हुए इस वर्ष पेरिस मे एक शिखर बैठक हुई। दुनिया के 195 देश पेरिस में एकत्रित हुए। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा मानवता के समक्ष एक श्रेष्ठ अवसर बताते है तो संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान जीवन देने वाले ग्रह को बचाने का समय कहते है।

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बहुत सारे जलवायु परिवर्तन हुए है जैसे गर्मी के मौसम में बढ़ोतरी, ठंडी के मौसम में कमी,तापमान में वृद्धि, बिन मौसम बरसात, बर्फ की चोटियों का पिघलना,  तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा आदि। अगर हमने इस दिशा में कदम नहीं उठाए तो आनेवाले पचास सालों में ओजोन परत की मोटाई कम होने से कैंसर जैसे रोगों में वृद्धि होगी इन सब से बचने के लिए वैश्विक प्रयासों की दरकार है । हमें डर को दूर हटाते हुए उन देशों से पृथ्वी को बचाने के लिए गंभीर कदम उठाने के लिए कहना होगा। हमें बजाए बिजली की ऊर्जा के सौर, वायु और जियोथर्मल से उत्पन्न ऊर्जा का इस्तेमाल करना होगा। वायु प्रदूषित करने वाले स्रोतों का कम उपयोग कर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को घटाया जा सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए बहुत आवश्यक है, ‘पर्यावरण बचाओ, पृथ्वी बचेगी’ विश्व स्तर पर इस समस्या से निपटने के लिए कईं कदम उठाए जा रहे है।
 

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