23 Apr 2024, 15:18:22 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-रमेश ठाकुर
समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


आपसी रिश्तों को सलामत रखने के लिए कोहिनूर हीरे की बली चढ़ाना उचित नहीं है। पुराने लोगों के मुंह से तो सालों से सुनते आए हैं कि कोहिनूर हीरा हमारा है जिसे अंग्रेज चुराकर ले गए थे। लेकिन अब नई थ्योरी सामने आई है कि हीरा उन्हें भेंट किया गया था। यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। केंद्र सरकार की एक दलील जिसमें कहा गया है कि कोहिनूर हीरे को उपहार में दिया गया था। जबकि सभी को पता है कि कोहिनूर हीरे को चुराकर लंदन ले जाया गया था। जिसे वापस लाने के लिए दशकों से मांग की जा रही है। इस मुद्दे को लेकर हाल ही में एक जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई है, याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जवाब भेजा है कि वह कोहिनूर हीरो को वापस लाने की मांग नहीं करेंगे। केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि हीरे को न तो चुराया गया है, न लूट कर ले जाया गया है, बल्कि इसे भेंट किया गया था। भेंट के बाद इंग्लैंड की महारानी ने हीरे को अपने ताज में जड़वा लिया था।

आम चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने चुनावी वायदों में इंग्लैंड से कोहिनूर को वापस लाने को शामिल किया था। लेकिन अब उनके इस तर्क से असहज की स्थिति बन गई है। विरोधियों को सरकार को घेरने का नया मुद्दा हाथ लग गया है। कोहिनूर हीरे की अगर सच्चाई जाने तो साफ है कि कोहिनूर को भेंट में नहीं दिया गया था। बल्कि उसे चतुराई से कब्जाया था। लाहौर संधि समझौता के तहत यह सब घटना घटी थी। पूरा सच्चाई से अगर पर्दा उठाएं तो राजा दिलीपसिंह ने लाहौर की संधि के तहत यह हीरा इंग्लैंड की महारानी को सौंपा, राजा दिलीप उसी समय ब्रिटिश की सेना से युद्ध हार गए थे। हारने के बाद एक समझौते के तहत राजा से लार्ड डलहौजी ने उनसे संधि करवाई थी।

राजा दिलीप सिंह तब बहुत छोटे हुआ करते थे। इस तरह देखा जाए तो कोहिनूर इंग्लैंड ने सैन्यशक्ति के बल पर जबरन हथियाया था। देखा जाए तो कोहिनूर हीरे का मसला आजादी के बाद से अब तक का एक पेचिदा मुद्दा रहा है। हर भारतीय की चाह है कि उनकी अमानत वापस आए। मौजूदा समय में केंद्र सरकार का तर्क हीरे को लेकर तकनीकी तौर पर सही हो सकता है लेकिन भारत की भौतिक सांस्कृतिक लिहाज से सही नहीं होगा। हीरे से हमारी प्राचीनतम आस्था जुड़ी हुई है। हीरा 105 कैरेट का है जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत खरबों की है। बावजूद इसके हीरा हिंदुस्तान के लिए बेहद अनमोल धरोहर है। कोहिनूर हीरा पर अफगानिस्तान, ईरान व पाकिस्तान सरकारों ने भी दावा किया है। वह कहते हैं कि हीरा उनका है। उन्होंने भी ब्रिटिश सरकार से कई बार इसे वापस करने को कहा है। यह सच्चाई है कि जब पूरा एशिया भारत का हिस्सा हुआ करता था। सन् 1304 से लेकर 1849 तक कोहिनूर अलग-अलग शासकों के पास रहा था।

कोहिनूर भारतवासियों के लिए एक आस्था से जुड़ा पहलू है। कोहिनूर अगर वापस आता है तो हमें हमारी संग्रहित वस्तुओं की तरह याद दिलाएगा। मौजूदा पीढ़ी यह जान पाएगी कि उपनिवेशवाद का दौर कितना भयंकर, कितना बुरा था और दुनिया में सभ्यता को बचाए रखने के लिए औपनिवेशिक मानसिकता को खत्म करना कितना जरूरी है। जिस तरह गुलाम देशों की संपत्ति साम्राज्यवादी देशों के पास चली गई, उसी तरह राजशाही के दौर में आम जनता की संपत्ति राजमहलों और किलों के पास चली गई। आज भारत में ही जो राजमहल हैं, उनके वैभव में इतिहास में किए गए शोषण की झलक देखी जा सकती है।  हिंदुस्तान में जब ब्रिटिश शासन था तो उस समय अंग्रेजों की नजरें हमारी धरोहरों पर सबसे ज्यादा थी जिसमें कोहिनूद मुख्य रूप से शामिल था। सैन्य शक्ति  से हासिल किए गए कोहिनूर को भेंट नहीं कहा जा सकता। कोहिनूर हमारे लिए भावनात्मक और अब शायद राष्ट्रवादी मुद्दा है। कोहिनूर को वापस लाने की मांग समय-समय पर उठती रही है। इस बार कोहिनूर के साथ-साथ टीपू सुल्तान की तलवार, अंगूठी, बहादुरशाह जफर, झांसी की रानी, नवाब मीर आदि से संबंधित धरोहरें वापस लाने का अनुरोध किया गया है।

अच्छी बात है कि इस याचिका के बहाने इतिहास के पृष्ठों को पलटा जा रहा है और याद किया जा रहा है कि आज का जो भारत है, वह किसी एक धर्म, संस्कृति या वाद से नहीं बना है, बल्कि इसके निर्माण में अनेकानेक सांस्कृतिक धाराओं का योगदान रहा है। छह साल पहले केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार ने ब्रिटिश सरकार को एक खत लिखा था जिसमें हीरे का वापस करने की मांग की गई थी। पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने किसी भी सूरत में कोहिनूर को वापस करने से इनकार किया था। उन्होंने मजाकिया लहजे में भारत सरकार को जबाव दिया था कि अगर हम कोहिनूर को वापस कर देते हैं तो हमारा म्यूजियम ही खाली हो जाएगा। उनकी इस स्पष्टोक्ति से सभी को निराशा हुई थी। लेकिन सच्चाई यही है कि उपनिवेशवाद के दौर में जो चीजें साम्राज्यवादी देशों में चली गई हैं, उनकी वापसी की राह लगभग बंद है। एशिया और अफ्रीका के कई देशों की बेशकीमती ऐतिहासिक वस्तुएं साम्राज्यवादी देशों के संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही हैं ,जिन्हें शायद कोई कभी हासिल नहीं कर सकता। 
 

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