20 Apr 2024, 20:13:41 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-कृष्णमोहन झा
-लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं


जम्मू कश्मीर में तीन माह के राष्ट्रपति शासन के बाद भाजपा-पीडीपी गठबंधन के हाथों में सत्ता की बागडोर आने के तुरंत बाद से ही राज्य में अशांति और अस्थिरता फैलाने की कोशिशें भी तेज हो गई है और जो अलगाववादी ताकतें राज्य में अमन चैन का महौल कायम ही नहीं रहने देना चाहती वे हिंसक तत्वों को भड़काने से बाज नहीं आ रही है। बस उनका एक ही मकसद है कि राज्य में दुबारा सत्तारूढ़ हुए भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती को इतनी फुरसत कभी न मिल पाए कि वे राज्य में विकास प्रक्रिया को गति प्रदान करने के उपायों पर ध्यान केंद्रित कर सके। दरअसल राज्य की विघटनकारी और अलगाववादी ताकतों को यह बात हजम नहीं हो पा रही है कि भाजपा जैसे राष्ट्रवादी दल के साथ मिलकर पीडीपी सत्ता में भागीदारी करे। मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती को इस नए राजनीतिक प्रयोग को सफल बनाने के लिए आगे भी अनेक चुनौतियों का समाना करना पड़ सकता है।

देखना यह है कि मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने उस शुरूआती परीक्षा मेंं किस तरह सफल होती है जो टी-20 वर्ल्ड कप क्रिकेट के सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज के हाथों भारत की हार पर श्रीनगर के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में स्थानीय छात्रों द्वारा जश्न मनाने से शुरू हुआ था और उसके बाद हंदवाडा में एक स्कूली छात्रा के साथ एक सुरखा बल जवान द्वारा कथित रूप से छेड़छाड़ किए जाने की घटना ने मानों आग में घी का काम किया। छेड़छाड़ सुरक्षा बल के जवान ने नहीं बल्कि स्थानीय युवकों ने की थी। लेकिन सुरक्षा बलों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए घटना को दूसरा ही रूप दे दिया गया। सच्चाई चाहे जो हो परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जम्मू कश्मीर एक बार फिर जल उठा है और हिंसा के इस दौर मे भविष्य में मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती के सामने पेश आने वाली चुनौतियों के प्रति अभी से सचेत हो जाने की आवश्यकता का अहसास कर दिया है।

यह संतोष की बात है कि मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती ने अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए समीज रूपी कदम उठाए हैं और केन्द्र से भी उन्हें पर्याप्त मदद उपलब्ध कराई जा रही है। कश्मीर घाटी में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाने के उद्देश्य से केंद्रीय सशस्त्र बल के अतिरिक्त बलों को भेजने का फैसला निसंदेह मेहबूबा मुफ्ती को यह भरोसा दिला सकता है कि मुसीबत की इस घड़ी में केंद्र सरकार पूरी तरह उनके साथ है। मेहबूबा मुफ्ती ने सुरक्षा बलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिवारजनों से भेंट भी की है ताकि तनाव को जल्द से जल्द शांत किया जा सके। कुल मिलाकर मेहबूबा मुफ्ती को अभी से ही यह साबित करना होगा कि वे राज्य में किसी भी कीमत पर अमन चैन के माहौल को कायम रखने के लिए कृत संकल्प है और इसके लिए उन्हें राज्य की उन विघटनकारी और अलगाववादी ताकतों से सख्ती से निपटना होगा जो राज्य में विकास के रास्ते को रोकना करना चाहती है और इसके लिए आवश्यक इच्छाशक्ति का परिचय भी उन्हें अभी से ही देना होगा। कश्मीर घाटी में इस समय जो अशांति और हिंसा का माहौल बना हुआ है उसे और भड़काने की भी बराबर कोशिशें जारी है और इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। घाटी में लश्करे तैयबा और आईएस जैसे आतंकी संगठनों से प्रभावित लोग सोशल मीडिया के जरिए राज्य में नफरत का जहर फैलाने की कोशिशेंं कर रहे है। यह काम कश्मीर मूल के भारत विरोधी तत्वों द्वारा दूसरे देशों में बैठकर किया जा रहा है। पुलिस ने  ऐसे तत्वों द्वारा सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित आपत्तिजनक सामग्री से लोगों को सावधान रहने की अपील की है परंतु पुलिस को भी मालूम है कि ऐसे तत्वों को पूरी तरह नियंत्रित कर पाना आसान काम नहीं है। कश्मीर घाटी में सामन्य हालत बनाने के लिए मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती को केंद्र से मिल रहे सहयोग के जरिए यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य में जल्द से जल्द अमन चैन का माहौल बन सके। इसके लिए उनहें अपनी उस पुरानी छवि से भी बाहर निकलना होगा जो अलगाववादी तत्वों के प्रति उनके नरम रूख का आभास कराती रही है। कश्मीरियत को कायम रखते हुए राष्ट्रवाद के साथ तालमेल बिठाकर राज्य में विकास के एक नए पहल की शुरूआत करने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई हैं। देखना यह हैे कि क्षेत्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच किस तरह समन्वय बनाने में सफल होती है। राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें इतिहास रचने का जो मौका मिला है उसका उन्हें पूरा-पूरा उपयोग करना चाहिए।

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