-विष्णुगुप्त
राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं।
कश्मीर के हंदवाड़ा प्रपंच कांड के कई सबक हैं जिसमें देश के खिलाफ नापाक इरादें पहली बार इतनी बेशर्मी के साथ बेपर्दा हुए हैं। कोई जिम्मेदार सरकार इसे राष्ट्र की सुरक्षा का हथियार बना कर अब तक कश्मीर के अंदर में जो साजिशें हुई हैं, प्रपंच का नंगा खेल खेला गया है उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती के साथ रखा जाना चाहिए, पदार्फाश करना चाहिए ताकि दुश्मन देश के दुष्प्रचार का करारा जवाब दिया जा सके। सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई पहली बार प्रपंच नहीं हुआ है, कोई पहली बार हिंसक साजिशें नहीं हुई हैं, कोई पहली बार राष्ट्र को विखंडित करने जैसा खेल नहीं खेला गया है,बल्कि इस तरह की परिस्थितियां बार-बार बनाई जाती रही हैं। पर सबसे बड़ी विडंबना तो यही है कि साजिशों व प्रपंचों को गढ़ने वालो के खिलाफ कभी भी प्रहारक कार्रवाई नहीं हुई। यूरोप, अमेरिका और अरब जगत से आने वाले हिंसक, आतंकवादियों के पक्षधर तथाकथित मानवाधिकार संगठनों के अपराधियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती है, उन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाए जाते हैं।
अगर भारत सरकार ने तथाकथित मानवाधिकार संगठनों के अपराधियों पर कार्रवाई की होती और उन्हें भारतीय संविधान-कानून का पाठ पढ़ाया होता तो निश्चित तौर पर हमारी सुरक्षा एजेंसियों खिलाफ साजिशों के खेल पर रोक लग सकती थी और हमारी सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल भी बढ़ा होता। सुखद यह है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां न केवल दुनिया की सबसे सभ्य हैं बल्कि मानवाधिकार संरक्षण के प्रति जवाबदेह है। अगर हंदवाड़ा प्रपंच कांड से संबंधित लड़की ने गवाही नहीं दी होती, साहस-बहादुरी नहीं दिखाई होती, आतंकवादी संगठनों को बेपर्द नहीं की होती तो देश ही क्यों बल्कि दुनिया की मीडिया और दुनिया के नियामकों के अंदर भारत को खलनायक साबित करने के लिए तरह-तरह के तथ्यारोपण होते। कश्मीर घाटी में अफवाह हमेशा चिंगारी बन कर भारतीय अस्मिता को लहूलुहान करती रही है। कश्मीर में जब-जब पाकिस्तान के नापाक इरादें कमजोर पड़ते हैं, आतंकवादी संगठन हाशिए पर होते हैं तब-तब अफवाह जड़ित अप्रिय हिंसा प्रत्यारोपित की जाती है। हिंसा के लिए भीड़ जुटाओ और पाकिस्तान से शाबशी पाओ। यह नीति पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों और विघटनकारियों की है। कश्मीर घाटी में अफवाह हवा की गति से भी तेज चलती है। अफवाह फैलने भर की देरी होती है सैकड़ो नहीं बल्कि हजारों की भीड़ जुट जाती है, हिंसा की सभी हदें पार होती हैं, सरेआम सुरक्षा बलों पर हमले होते हैं, सरकारी संपत्तियां नष्ट की जाती है। पत्थर फेंको साजिश भी याद करनी चाहिए।
सुरक्षा बलों पर कई महीनों तक पत्थर बरसाओं अभियान चला था। पाकिस्तान की आईएसआई ने कश्मीर घाटी में भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाओं अभियान चलवाई थी। नेपाल के रास्ते से इसके लिए जाली करेंसी कश्मीर घाटी मे आई थी। कश्मीरी युवकों को पत्थर फेंकने और बरसाने के लिए पैसे मिलते थे। पत्थर बरसाओं अभियान में सरकारी संपत्ति को बड़ा नुकसान पहुंचा था। भारतीय सुरक्षा बलों ने बड़े संयम और वैज्ञानिक ढंग से पत्थर बरसाओं अभियान को नियंत्रित किया था। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने यह मालूम कर लिया था कि पत्थर बरसाओं अभियान दुश्मन देश की एक बड़ी साजिश थी। इस पत्थर बरसाओं अभियान के माध्यम से दुश्मन देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करना चाहता था। इस नीयत में दुश्मन देश सफल भी हुआ था। हंदवाड़ा कांड को ही देख लीजिए। जिस लड़की को छेड़ने की अफवाह उड़ी थी उसमें सेना के जवानों की संलिप्तता नहीं थी पर आतंकवादियों, और तथाकथित मानवाधिकार संगठनों के अपराधियों ने तथ्यारोपित कर दिया कि छात्रा के साथ भारतीय सुरक्षा बलों ने छेड़खानी की है। यह अफवाह तेजी के साथ फैलाई गई, मोबाइल और इंटरनेट सेवा का भी इस्तेमाल हुआ। अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे देशों ने लाख कोशिश की है पर मुस्लिम युवक इराक और सीरिया में आईएस के समर्थन में जान लेने और जान देने की हिंसा से अलग होने का नाम नहीं ले रहे हैं। कश्मीर घाटी में सक्रिय आतंकवादी संगठनों ने भी आईएस के नक्शेकदम पर चलते हुए अपनी करतूत को प्रचारित करने के लिए इंटरनेट और मोबाइल का दुरुपयोग किया हैं और कर रहे हैं। सोचने-समझने का प्रश्न है कि अफवाह पर इतनी गंभीर प्रतिक्रिया और वह भी हिंसक, अमानवीय क्यों होती हैं, हिंसा करने और संविधान-कानून को अपने हाथ में लेने के पहले संबंधित घटना की सच्चाई क्यों नहीं जानी जाती है, इसके पीछे की करतूत क्यों नहीं समझी जाती है, हिंसा में मानवता किस प्रकार से प्रताड़ित और आहत होती है, इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है। अगर कश्मीर की घाटी के लोग सोचते तो फिर सुरक्षा बलों पर इतनी हिंसक हमला करने की जरूरत ही नहीं होती। अगर सुरक्षा बलों ने संयम से काम नहीं लिया होता, आतंकवादी संगठनों की चाल नहीं समझी होती तो सिर्फ दो नहीं बल्कि कई लोग मारे गये होते। भारतीय सुरक्षा बलों ने जो आत्मरक्षक कार्रवाई की हैं उसके लिए सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी संगठनों और उसके पैरवीकार लोगों को ही दोषी ठहराया जा सकता है। अगर लड़की ने हिम्मत नहीं जुटाई होती व छेड़खानी करने वाले कश्मीरी युवकों की पहचान नहीं बताई होती तो कितना बड़ा अनर्थ होता, कश्मीर घाटी किस प्रकार से हिंसा से जल उठती,भारतीय सुरक्षा बलों को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता, भारतीय सुरक्षा बल के जवानों पर अपमान करने वाली घटनाएं घटती और भारत को किस प्रकार से अतंरराष्ट्रीय स्तर पर सफाई पेश करनी होती, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय सरकार को हंदवाड़ा प्रपंच कांड के दोषियों पर सख्त कानूनी कार्यवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में ये अफवाह फैला कर हिंसा करने से बाज आएं।